भ्रम से बाहर आएं राहुल गांधी, देश की एकता-अखंडता उनके वायनाड जाने की मोहताज नहीं है!

राहुल गांधी सामान्य स्थिति में अमेठी के अलावा कहीं और से चुनाव लड़ने के विषय में सोच नहीं सकते थे। स्मृति ईरानी की लोकप्रियता से उनका परेशान होना स्वभाविक था। उन्होंने वायनाड से अपने चुनाव लड़ने को देश की एकता, अखंडता और संस्कृति से जोड़ा है। वह बताना चाहते हैं कि देश की एकता-अखंडता, संस्कृति, भाषा, विविधता की रक्षा के लिए वे यह  महान त्याग कर रहे हैं। राहुल को कोई गलतफहमी नहीं पालनी चाहिए। भारत की एकता-अखंडता व संस्कृति उनके वायनाड जाने की मोहताज नहीं हैं, यह अनंत वर्षों से चली आ रही सनातन  संस्कृति है।

अमेठी में स्मृति ईरानी की सक्रियता से पहले यह कल्पना भी कठिन थी कि राहुल गांधी किसी अन्य क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से राहुल गांधी ने स्मृति ईरानी को पराजित किया था।। लेकिन इसके बाद चुनावी इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा। स्मृति ईरानी हार कर भी अनौपचारिक रूप में यहां जनप्रतिनिधि वाली भूमिका का निर्वाह करती रहीं। उनकी पहल पर यहां के लोगों को कई सुविधाएं प्राप्त हुईं। लोगों की कठिनाई के समय वह यहां उपस्थित रहने का प्रयास करती थीं।

इसके विपरीत राहुल विजयी होने के बाद भी इतना सक्रिय नहीं रहे। उनका पिछला रिकार्ड भी उत्साहजनक नहीं था। दस वर्ष उनकी पार्टी केंद्र की सत्ता में रही। यद्यपि इस दौरान उत्तर प्रदेश में बसपा, सपा की सरकार थी। लेकिन राहुल गांधी ने अमेठी के विकास हेतु प्रदेश सरकार को एक पत्र तक नहीं लिखा, न किसी जिम्मेदार व्यक्ति से वार्ता की। केंद्र की मनमोहन सरकार पर राहुल गांधी का प्रभाव जगजाहिर था। अमेठी को इसका कोई लाभ नहीं मिला।

मेगा फूड पार्क और सम्राट साइकिल की प्रस्तावित फैक्ट्रियों पर भी राहुल को फजीहत उठानी पड़ी थी। दोनों योजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहित की गई। वर्षों तक प्रस्ताव लंबित रहे, अंततः निरस्त हुए। स्मृति इन मुद्दों पर भी राहुल को घेरती रही हैं। जबकि उपलब्धि के नाम पर राहुल के पास कहने के लिए कुछ नहीं।

यही वह प्रमुख कारण था, जिसके चलते राहुल को किसी सुरक्षित स्थान की तलाश थी।  स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी  के वायनाड से लड़ने को अमेठी में मुद्दा बना दिया है। उनका आरोप है कि राहुल ने यहां कोई विकास नहीं किया है, उन्हें हार का डर सता रहा है, इसलिए वह हार के डर से वायनाड चुनाव लड़ने गए हैं। वायनाड वालों को यदि राहुल गांधी का विकास देखना है तो उन्हें  एक बाद अमेठी आकर देखना चाहिए।

स्मृति ईरानी ने राहुल के कदम को अमेठी की जनता के साथ धोखा बताया है। इसके लिए जनता कांग्रेस अध्यक्ष को माफ नहीं करेगी। अमेठी में राहुल गांधी की लोकप्रियता अब खत्म हो गई है और यही कारण है कि वह वायनाड से चुनाव लड़ रहे हैं। अमेठी की जनता की वजह से वह पिछले पन्द्रह वर्षों से सांसदी पाते रहे हैं, लेकिन अब  कहीं और से चुनाव लड़ रहे हैं। यह अमेठी की जनता का अपमान है और इस बार यहां की जनता उन्हें माफ नहीं करेगी।

राहुल गांधी सामान्य स्थिति में अमेठी के अलावा कहीं और से चुनाव लड़ने के विषय में सोच नहीं सकते थे। स्मृति ईरानी की लोकप्रियता से उनका परेशान होना स्वभाविक था। ऐसे में राहुल गांधी द्वारा दिये जा रहे तर्को पर विश्वास नहीं किया जा सकता।उन्होंने वायनाड से अपने चुनाव लड़ने को देश की एकता, अखंडता और संस्कृति से जोड़ा है। वह बताना चाहते हैं कि देश की एकता, अखंडता, संस्कृति, भाषा, विविधता की रक्षा के लिए यह  महान त्याग कर रहे हैं। राहुल के अनुसार वह यह सन्देश देने के लिए केरल आये हैं कि भारत एक है, वो चाहे उत्तर हो, दक्षिण हो, पश्चिम हो या फिर पूरब।       

राहुल को कोई गलतफहमी नहीं पालनी चाहिए। भारत की एकता व संस्कृति उनके वायनाड जाने की मोहताज नहीं है। विश्व की सबसे प्राचीन भारतीय संस्कृति किसी के चुनाव लड़ने से सुरक्षित नहीं है। यह शास्वत संस्कृति है। किसी राजनीतिक पार्टी का अध्यक्ष बनने से ही कोई संस्कृति का रक्षक नही हो जाता। 

राहुल अपने ही तर्क को काटते हैं। वह पूर्व-पश्चिम, उत्तर दक्षिण को सन्देश देने का दावा करते है। उनकी बात को सही मानें तो दो दिशाएं फिर भी छूट रही हैं। जहां तक एकता व संस्कृति की बात है, इसका सन्देश तो बिना चुनाव लड़े या एक क्षेत्र से ही दिया जा सकता है। 

राहुल के दो जगह से लड़ने की तुलना नरेन्द्र मोदी से नहीं की जा सकती। मोदी ने पिछला चुनाव दो स्थानों से लड़ा था। वह गुजरात के किसी भी क्षेत्र से चुनाव लड़कर सांसद बन सकते थे। लेकिन वह जीत का बड़ा लक्ष्य लेकर चल रहे थे। इसलिए उन्होंने सर्वाधिक सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ने का निर्णय किया था। मोदीं ने इस पर एकता अखंडता संस्कृति का ऐलान नहीं किया, जैसा राहुल गांधी कर रहे हैं।

इसी के साथ राहुल संघात्मक शासन से अपने वायनाड जाने को जोड़ने का प्रयास करते हैं। वह कहते हैं कि वे निरंकुश केंद्र से  दक्षिण के राज्‍यों के अधिकारों को बचाना चाहते हैं। यह तर्क भी बचकाना है। मोदी सरकार बनने के बात केंद्रीय सहायता में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ी है। दूसरी बात यह कि राहुल यदि दो स्थानों से जीते तो एक से त्यागपत्र देना होगा। यदि राहुल के चुनाव लड़ने मात्र से आस पास के राज्यो में संघात्मक शासन सुरक्षित रहता है, तो दूसरे इलाके को वह कैसे बचाएंगे?

यह भी कहा जा रहा है कि राहुल ने खुद भाजपा के खिलाफ गठबन्धन की हवा निकाल दी है। पश्चिम बंगाल से वामपंथी पार्टियों के पांव उखड़ चुके हैं। ले दे कर केवल केरल में उनका वजूद ठीक है। यहां भी राहुल पहुंच गए। मतलब वह भाजपा से नहीं, वामपंथियों से भिड़ेंगे। इसका नुकसान कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ कांग्रेस को भी होगा। वैसे राहुल ने कहा है कि  वह अपने पूरे चुनाव प्रचार अभियान में वामपंथियों  के खिलाफ एक भी शब्‍द नहीं बोलेंगे। जबकि वामपंथी राहुल के वायनाड विपक्षी एकता के खिलाफ बता रहे।

वामपंथियों के खिलाफ एक शब्द न बोलने की राहुल की बात बेतुकी है। केरल की सभी सीटों पर कांग्रेस का मुकाबला कम्युनिस्टों से है। राहुल के कथन का मतलब है कि उन्नीस स्थानों पर कांग्रेस उम्मीदवार वामपंथियों के खिलाफ बोलेंगे, लेकिन उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद ऐसा नहीं करेंगे। वह केरल के वायनाड में मोदी और भाजपा पर हमला बोलेंगे। जाहिर है कि इसका लाभ भाजपा को मिलेगा। केरल में उंसकी जड़ें इससे गहरी हो सकती हैं।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)