गायत्री दुबे

धर्मनिरपेक्षता की आड़ में मुस्लिमपरस्ती के कांग्रेसी खेल को अब जनता समझ चुकी है!

हाल ही में “इंकलाब” नामक उर्दू अखबार को दिए इंटरव्‍यू में कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस “मुसलमानों” की पार्टी है। भले ही इस इंटरव्‍यू के बाद खंडन-मंडन का दौर चला हो, लेकिन इस बयान से राहुल गांधी की कांग्रेस का असली चरित्र ही उजागर होता है।

सलमान खुर्शीद से पल्ला झाड़ने वाली कांग्रेस अपने दंगों के इतिहास से पल्ला कैसे झाड़ेगी !

सलमान खुर्शीद के बयान से किनारा करने वाली कांग्रेस पार्टी क्‍या यह कहेगी कि हाशिमपुरा, मलियाना, मेरठ, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, भागलपुर, अलीगढ़ जैसे हजारों दंगे कांग्रेस पार्टी के शासन काल में नहीं हुए थे? जो कांग्रेसी 2002 के गुजरात दंगों के लिए तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहते रहे हैं, वही लोग कांग्रेस शासित राज्‍यों में हुए सांप्रदायिक दंगों के लिए किस आधार पर वहां के

बलात्कार पर राजनीति की परम्परा तो इस देश में नेहरू-इंदिरा के समय से रही है!

उन्‍नाव और कठुआ में हुई बलात्‍कार की घटनाओं ने एक बार फिर वोट बैंक की राजनीति करने वालों को उर्वर जमीन मुहैया करा दी। यदि यही उन्‍नाव की घटना किसी गैर-भाजपा शासित राज्‍य में घटी होती, तो मानवाधिकार के स्‍वयंभू नेता घरों से बाहर न निकलते। इसी प्रकार यदि कठुआ में पीड़ित लड़की हिंदू होती, तो सभी की जुबान सिल जाती। इसका ज्‍वलंत उदाहरण है 10 अप्रैल को बिहार के सासाराम में छह साल की मासूम

इस्‍लामी वर्चस्‍ववाद का नतीजा हैं सांप्रदायिक दंगे

इसे वोट बैंक की ताकत ही कहेंगे कि एक ओर पश्‍चिम बंगाल कई हिस्‍से सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलस रहे हैं तो दूसरी ओर वहां की मुख्‍यमंत्री दिल्‍ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपदस्‍थ करने के लिए साझा मोर्चा बनाने में जुटी हैं। वोट बैंक की राजनीति के चलते स्‍थानीय प्रशासन दंगाइयों का साथ दे रहा है और दंगा पीड़ित असहाय होकर पलायन करने पर मजबूर हो रहे हैं। दंगों के कारण सबसे बुरा हाल पश्‍चिम

अगर ऐसे ही बढ़ती रही तो 2050 तक भारत में होगी दुनिया की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी !

भारत की वोट बैंक की राजनीति को मोहम्‍मद इकबाल के एक शेर के जरिए आसानी से समझा जा सकता है जिसमें उन्‍होंने कहा है “जम्‍हूरियत वो तर्जे हुकुमत है, जिसमें बंदों को गिना करते हैं, तौला नहीं करते।” दूसरे शब्‍दों में कहें तो जिसकी जितनी संख्‍या भारी उसकी उतनी हिस्‍सेदारी। यदि सकारात्‍मक दृष्‍टि से देखें तो इसे जम्‍हूरियत की खासियत कहेंगे, क्‍योंकि इससे बहुमत की आवाज को मुखर होने का मौका मिलता है, लेकिन