बलात्कार पर राजनीति की परम्परा तो इस देश में नेहरू-इंदिरा के समय से रही है!

देखा जाए तो देश में बलात्‍कार जैसे घृणित और अमानवीय कृत्‍य को राजनीतिक हानि-लाभ से देखने की लंबी परंपरा रही है। देश विभाजन के समय जब हिंदू-सिख महिलाओं के साथ मानव इतिहास का वीभत्‍सतम अत्‍याचार हो रहा था, तब तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू चुपचाप देख रहे थे। उन्‍हें महिलाओं की अस्‍मत से ज्‍यादा चिंता अपनी सेकुलर छवि की थी, इसलिए उन्‍होंने खामोश रहना बेहतर समझा। इसी तरह हैदराबाद के निजाम की सेना ने सत्‍याग्रहियों को कुचलने और हिंदुओं के मान-मर्दन के लिए हिंदू महिलाओं का बड़े पैमाने पर बलात्‍कार किया। उस समय हैदराबाद रियासत में एक भी हिंदू महिला ऐसी नहीं बची थी, जिसका चीरहरण न हुआ हो। लेकिन, नेहरू इस चीरहरण को चुपचाप देखते रहे, क्‍योंकि बलात्‍कारी मुसलमान थे।

उन्‍नाव और कठुआ में हुई बलात्‍कार के मामले सामने आने के बाद एक बार फिर वोट बैंक की राजनीति करने वालों को उर्वर जमीन प्राप्त हो गयी। हालांकि इन दोनों मामलों में आरोपियों पर कार्यवाही हो रही है, लेकिन राजनीति करने वालों को तो बस अपनी राजनीति से मतलब है। वैसे यदि उन्नाव की घटना किसी गैर-भाजपा शासित राज्य में घटी होती, तो ये कथित मानवाधिकारवादी और कांग्रेसी घरों से बाहर न निकलते। इसी प्रकार यदि कठुआ में पीड़ित लड़की हिंदू होती, तो सभी की जुबान सिल जाती।

इसका ज्‍वलंत उदाहरण है 10 अप्रैल को बिहार के सासाराम में छह साल की मासूम बच्‍ची के साथ हुई बलात्‍कार की घटना। इस मामले में चूंकि बलात्‍कारी मेराज आलम मुसलमान था और बलात्‍कार का शिकार हुई लड़की हिंदू थी, इसलिए अधिकतर लोगों ने खामोशी की चादर ओढ़ ली। ऐसे ही असम के नगांव में एक मुस्लिम द्वारा हिन्दू लड़की से किए गए बलात्कार पर भी मौन ही पसरा हुआ है। 

सांकेतिक चित्र

जनवरी में हुए आसिफा के बलात्‍कार पर कैंडल मार्च निकालने वाले जम्‍मू के ही नगरोटा में 12 अप्रैल को सात साल की बच्‍ची से हुई बलात्‍कार पर चुप क्‍यों हैं। गौरतलब है कि सात वर्षीय पीड़िता मदरसे में कुरान पढ़ने के लिए गई थी, लेकिन मौलवी ने बच्‍ची को अकेला पाकर इस शर्मनाक वारदात को अंजाम दिया। इसी तरह केरल, कर्नाटक, पश्‍चिम बंगाल में मुस्‍लिम गुंडों द्वारा हिंदू महिलाओं के साथ आए दिन होने वाले गैंग रेप पर भी सेकुलरिज्‍म के झंडाबरदारों की जबान सिल जाती है। आधी रात को कैंडल मार्च निकालने वाले राहुल गांधी और उनका कुनबा तब कहां था जब 2012 में निर्भया से हुए वीभत्‍स बलात्‍कार के बाद पूरी दिल्‍ली सड़कों पर उतर आई थी ?  

देखा जाए तो देश में बलात्‍कार जैसे घृणित और अमानवीय कृत्‍य को राजनीतिक हानि-लाभ से देखने की लंबी परंपरा रही है। देश विभाजन के समय जब हिंदू-सिख महिलाओं के साथ मानव इतिहास का वीभत्‍सतम अत्‍याचार हो रहा था, तब तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू चुपचाप देख रहे थे। उन्‍हें महिलाओं की अस्‍मत से ज्‍यादा चिंता अपनी सेकुलर छवि की थी, इसलिए उन्‍होंने खामोश रहना बेहतर समझा।

इसी तरह हैदराबाद के निजाम की सेना ने सत्‍याग्रहियों को कुचलने और हिंदुओं के मान-मर्दन के लिए हिंदू महिलाओं का बड़े पैमाने पर बलात्‍कार किया। उस समय हैदराबाद रियासत में एक भी हिंदू महिला ऐसी नहीं बची थी, जिसका चीरहरण न हुआ हो। लेकिन, नेहरू इस चीरहरण को चुपचाप देखते रहे क्‍योंकि बलात्‍कारी मुसलमान थे।  

नेहरू-इंदिरा के समय से होती रही बलात्कार पर राजनीति

1971 में पूर्वी पाकिस्‍तान (अब बांग्‍लादेश) में उठे राष्‍ट्रवाद के ज्‍वार को रोकने के लिए पाकिस्‍तानी फौज ने लाखों हिंदू महिलाओं के साथ बलात्‍कार किया था। सेना द्वारा इतने बड़े पैमाने पर संगठित बलात्‍कार का उदाहरण इतिहास में शायद ही कहीं देखने को मिले। इसके बावजूद तत्‍कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बहुत ही बेशर्मी से इस घटना को ब्‍लैक आउट करा दिया। भारवासियों की इस घटना की जानकारी महीनों बाद विदेशी मीडिया के जरिए मिली। दरअसल इंदिरा गांधी को डर था कि इस घटना से हिंदुओं में ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिलेगा जिसका राजनीतिक फायदा जनसंघ उठा लेगा। स्‍पष्‍ट है, उन्‍हें महिलाओं की अस्‍मत से ज्‍यादा चिंता अपनी कुर्सी की थी।

देश विभाजन जैसा व्‍यवहार 1990 के दशक में कश्‍मीर में हिंदू महिलाओं के साथ हुआ। नर्स कमला भट्ट को इस्‍लामी चरमपंथियों ने पांच दिन बंधक बनाकर सामूहिक बलात्‍कार किया। जब सामूहिक बलात्‍कार से मन भर गया तब कमला भट्ट के शरीर को तीन हिस्‍से में काटकर कश्‍मीर के मुख्‍य चौराहे पर फेंक दिया गया था। इसी तरह का वीभत्‍स, अमानवीय व्‍यवहार सैकड़ों हिंदू महिलाओं के साथ किया गया ताकि हिंदू समुदाय अपनी आन बचाने के लिए कश्‍मीर छोड़ दें। वोट बैंक की राजनीति और सेकुलर छवि के कारण देश के अधिकतर नेता और बुद्धिजीवी खामोश रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि कश्‍मीरी चरमंपथी अपने मिशन में कामयाब रहे। अब उसी तरह का षडयंत्र जम्‍मू क्षेत्र में भी रचा जा रहा है।

कांग्रेसियों, वामपंथियों और जातिवादी राजनेता तो बलात्‍कार को सियासी नजरिए से देखते ही थे, लेकिन ईमानदार राजनीति का ढिंढोरा पीटने वाले अरविंद केजरीवाल ने तो अति ही कर दी। उन्‍होंने निर्भया कांड के दोषी को सिलाई मशीन और दस हजार रूपये देकर बलात्‍कारियों को महिमामंडित करने की एक नई मुहिम शुरू कर दी। इसी तरह बुजुर्ग मुलायम सिंह यादव ने तो बलात्‍कार को लड़कों की गलती बताकर इस वीभत्‍स घटना पर एक नई बहस ही छेड़ दी थी। इन्‍हीं सब का नतीजा है कि बलात्‍कारियों में सजा का खौफ नहीं रह गया है।

(ये लेखिका के निजी विचार हैं।)