अगर ऐसे ही बढ़ती रही तो 2050 तक भारत में होगी दुनिया की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी !

मुस्‍लिम आबादी कैसे बढ़ती है, इसे असम के नौगांव जिले के उदाहरण से समझा जा सकता है। 1901 में यहां मुस्‍लिम जनसंख्‍या मात्र 4 फीसदी थी, जो कि अब 51 फीसदी से ज्‍यादा हो गई है। यह आबादी बम और जम्‍हूरियत की खासियत का ही दुष्‍परिणाम है कि पाकिस्‍तान-बांग्‍लादेश में ही नहीं, भारत के मुस्‍लिम बहुल सूबों व इलाकों में भी हिंदू दूसरे दर्जे के नागरिक बन गए हैं। इसे असम, पश्‍चिम बंगाल, केरल और जम्‍मू-कश्‍मीर के उदाहरण से समझा जा सकता है।

भारत की वोट बैंक की राजनीति को मोहम्‍मद इकबाल के एक शेर के जरिए आसानी से समझा जा सकता है जिसमें उन्‍होंने कहा है “जम्‍हूरियत वो तर्जे हुकुमत है, जिसमें बंदों को गिना करते हैं, तौला नहीं करते।” दूसरे शब्‍दों में कहें तो जिसकी जितनी संख्‍या भारी उसकी उतनी हिस्‍सेदारी। यदि सकारात्‍मक दृष्‍टि से देखें तो इसे जम्‍हूरियत की खासियत कहेंगे, क्‍योंकि इससे बहुमत की आवाज को मुखर होने का मौका मिलता है, लेकिन भारतीय नेताओं ने इस खासियत को वोट बैंक की राजनीति और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में तब्‍दील कर डाला।

कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों ने तो शुरू से मुस्‍लिम वोट बैंक के जरिए अपनी राजनीति चमकाने का काम किया। आगे चलकर क्षेत्रीय पार्टियों और जातिवादी राजनीति के उदय और विकास ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को और बढ़ाया, क्‍योंकि ये नए-नवेले राजनीतिक दल इस बात को मान चुके हैं कि बिना मुसलमानों के सत्‍ता हासिल नहीं की जा सकती। यही कारण है कि मुसलमानों को हर तरह की सहूलियत मुहैया कराने की जो परिपाटी कांग्रेस व वामपंथी पार्टियों ने शुरू की थी, वह बढ़ती ही गई।

सांकेतिक चित्र

मुसलमानों की गैर कानूनी गतिविधियों और धर्मांधता को ही प्रश्रय नहीं दिया गया, बल्‍कि वोट बैंक की राजनीति के चलते लाखों बांग्‍लादेशी घुसपैठियों को सुनियोजित तरीके से बसाकर जनांकिकीय संतुलन मुसलमानों के पक्ष में किया गया। यह सब पश्‍चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा जैसे सीमावर्ती राज्‍यों में ही नहीं, देश की राजधानी दिल्‍ली में भी हुआ। आखिर बांग्‍लादेश सीमा से सैकड़ों मील दूर जम्‍मू में रोहिंग्‍या मुसलमानों की बस्‍ती कैसे बस गई? मुस्‍लिम वोट बैंक की बढ़ती अहमियत का ही प्रमाण है कि संप्रग शासन के दौरान देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सार्वजनिक मंच से कहना पड़ा “देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है।”

वोट बैंक की राजनीति का दुष्‍परिणाम यह हुआ कि मुस्‍लिम समुदाय शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान से दूर होकर आबादी बढ़ाने में जुटा रहा। 1947 में जब देश आजाद हुआ था, तब कुल जनसंख्‍या में 84 फीसदी हिंदू और 9 फीसदी मुसलमान थे; लेकिन 2011 में यह अनुपात क्रमश: 79.8 और 14.2 फीसदी हो गया। कुछ राज्‍यों में तो मुसलमानों की तादाद में बहुत ही तेजी से इजाफा हुआ।

मुस्‍लिम आबादी कैसे बढ़ती है, इसे असम के नौगांव जिले के उदाहरण से समझा जा सकता है। 1901 में यहां मुस्‍लिम जनसंख्‍या मात्र 4 फीसदी थी, जो कि अब 51 फीसदी से ज्‍यादा हो गई है। यह आबादी बम और जम्‍हूरियत की खासियत का ही दुष्‍परिणाम है कि पाकिस्‍तान-बांग्‍लादेश में ही नहीं, भारत के मुस्‍लिम बहुल सूबों व इलाकों में भी हिंदू दूसरे दर्जे के नागरिक बन गए हैं। इसे असम, पश्‍चिम बंगाल, केरल और जम्‍मू-कश्‍मीर के उदाहरण से समझा जा सकता है।

असम में 2001 में मुस्‍लिम आबादी 30.9 फीसदी थी जो कि 2011 में बढ़कर 34.2 फीसदी हो गई। इसी तरह पश्‍चिम बंगाल में 2001 में जो मुस्‍लिम आबादी 25 फीसदी थी वह 2011 में बढ़कर 27 फीसदी हो गई। केरल में तो धार्मिक कट्टरपंथी लव जेहाद के जरिए आबादी बढ़ाने की सुनियोजित चाल चल रहे हैं। जम्‍मू-कश्‍मीर के एक बड़े हिस्‍से से हिंदुओं का सफाया ही हो चुका है। कमोबेश यही हालात केरल, उत्‍तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्‍यों में है, जहां मुसलिम आबादी भारी संख्‍या में मौजूद है।

वोट बैंक की राजनीति के पहरुए और सेकुलर बुद्धिजीवी अक्‍सर यह तर्क देते रहते हैं कि मुसलमानों की आबादी में बढ़ोत्‍तरी की रफ्तार कम हो रही है। उदाहरण के लिए 1981-91 के बीच मुस्‍लिम आबादी की वृद्धि दर जहां 32.88 फीसदी थी वहीं 1991-2001 के बीच यह दर घटकर 29.51 फीसदी और 2001-11 में 24 फीसदी रह गई। स्‍पष्‍ट है मुसलमानों के एक वर्ग ने छोटे परिवार की अवधारणा को स्‍वीकार किया है लेकिन बहुसंख्‍यक मुसलमान अभी भी आबादी बम के जरिए गजवा-ए-हिंद को अमलीजामा पहनाने में जुटे हैं। फिर जमात-ए-इस्‍लामी जैसे संगठनों के फतवों से पढ़े-लिखे मुसलमान भी कब ज्‍यादा बच्‍चें पैदा करने लगें, कहना मुस्‍किल है। इसके अलावा लव जेहाद, अवैध घुसपैठ जैसे हथकंडे भी आबादी बढ़ाने के सशक्‍त हथियार रहे हैं।

भारत के इस आबादी बम का सटीक विश्‍लेषण अमेरिकी थिंक टैंक पियू ने किया है। संस्‍था के मुताबिक भारत में 2050 तक मुसलमान की कुल आबादी बढ़कर 31.1 करोड़ हो जाएगी। इसके लिए मुस्‍लिम महिलाओं की ऊंची जन्‍म दर जिम्‍मेदार है। गौरतलब है कि देश में मुस्‍लिम महिलाओं के औसतन 3.2 बच्‍चे होते हैं, जबकि हिंदुओं व इसाइयों में यह अनुपात क्रमश: 2.5 और 2.3 ही है। यह केवल भारत में ही नहीं हो रहा है। पूरी दुनिया में इस्‍लाम, आबादी बम के जरिए तेजी से बढ़ने वाला धार्मिक समुदाय बन चुका है; लेकिन भारत में तथाकथित सेक्युलर दलों की वोट बैंक की राजनीति के चलते इसका प्रकोप कुछ ज्‍यादा ही है। माना जा रहा कि अगर मुस्लिम आबादी ऐसे ही बढ़ती रही तो 2050 तक दुनिया की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी भारत में होगी।

पियू के आंकड़ों की पुष्‍टि भारतीय जनगणना विभाग के आंकड़े भी करते हैं। इसके मुताबिक 2001-11 के दौरान देश के हिंदुओं की आबादी जहां 16.76 फीसदी की दर से बढ़ी वहीं मुसलमानों की आबादी 24.6 फीसदी की दर से। इसके कारण कुल जनसंख्‍या में हिंदुओं का अनुपात घट रहा है और मुसलमानों का बढ़ रहा है। गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ेपन, अपराध, आतंकवाद आदि की जड़ तलाशी जाए तो वह आबादी की तेज बढ़ोत्‍तरी में ही मिलेगी, लेकिन इसके बावजूद देश में कुछ राजनीतिक दल और नेता ही इस पर मुंह खोलते हैं। मुसलमानों के आबादी बम पर तो सेक्युलर नेताओं के मुंह सिल जाते हैं, आखिर वोट बैंक की राजनीति का सवाल जो है।

(ये लेखिका के निजी विचार हैं।)