समाज-संस्कृति

लोक मंथन : सनातन धर्म ही है भारतीयता की प्राणवायु

दुनिया की हर सभ्यता का विकास और उसका संचार मंथन से ही होता है। सभ्यताएं भी इसी से जीवित और गतिमान रहती है। मंथन भारतीय परंपरा का भी हिस्सा रहा है। पौराणिक कथाओं और उपनिषदों में ऐसे हजारों उदाहरण मिल जाएंगे। प्रायः मंथन से हर बार देश और समाज को नयी दिशा मिलती है और वह समाज अथवा देश दोगुने उत्साह से अपने कर्म पथ पर आगे बढ़ता है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता की

भारतीय अस्मिता और विकास को समर्पित थे दत्तोपंत ठेंगड़ी

भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने अपने पूरे जीवन को राष्ट्र पुनर्निमार्ण के लिए समर्पित कर दिया। उनका हर प्रयास भारतीय अस्मिता और विकास के लिए प्रेरित था। वो भारत के सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति भी सजग रहते थे। अपने लेखन और उद्बोधनों में वह अक्सर कहा करते थे कि हमारी संस्कृति का उद्देश्य संपूर्ण विश्व को मानवता की पथ पर अग्रसर करना है, जहां से हमारी राष्ट्र पुननिर्माण की

लोक मंथन : औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति का सार्थक प्रयास

लोकहित में चिंतन और मंथन भारत की परंपरा में है। भारत के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं, जिनमें यह परंपरा दिखाई देती है। महाभारत के कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद से लेकर नैमिषारण्य में ज्ञान सत्र के लिए 88 हजार ऋषि-विद्वानों का एकत्र आना, लोक कल्याण के लिए ही था। भारत में चार स्थानों पर आयोजित होने वाले महाकुम्भ भी देश-काल-स्थिति के अनुरूप पुरानी रीति-नीति छोड़ने और

लोक मंथन : अतीत की शिक्षाओं से उज्ज्वल भविष्य के निर्माण का प्रयास

आगामी 12, 13 और 14 नवंबर को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में लोक मंथन कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है। जैसा कि इस आयोजन का नाम अपने विषय में स्वयं ही बता रहा है, लोक के साथ मंथन। किसी भी समाज की उन्नति में विचार-विमर्श एवं चिंतन का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है और जब इस मंथन में लोक शामिल हो जाता है तो वह उस राष्ट्र के भविष्य के लिए सोने पर सुहागा सिद्ध होता है। लेकिन, यहाँ

लोक मंथन : लोक का अर्थ, मंथन की परंपरा और राष्‍ट्रीय आयोजन

मंथन भारत का आधारभूत तत्‍व है, इसलिए विमर्श के बिना भारत की कल्‍पना भी की जाएगी तो वह अधूरी प्रतीत होगी। यहां लोकतंत्र शासन व्‍यवस्‍था की सफलता का कारण भी यही है कि वेद, श्रुति, स्‍मृति, पुराण से लेकर संपूर्ण भारतीय वांग्‍मय, साहित्‍य संबंधित पुस्‍तकों और चहुंओर व्‍याप्‍त संस्‍कृति के विविध आयामों में लोक का सुख, लोक के दुख का नाश, सर्वे भवन्‍तु सुखिन: और जन हिताय-जन सुखाय की भावना ही

भारतीय लोक संस्कृति और परम्पराओं का अनूठा महापर्व है छठ

भारत विविधताओं का देश है। यहां हर त्यौहार बड़ी ही खुशी और उल्लास के साथ मनाया जाता है। होली, रक्षाबंधन, दशहरा, दिवाली, भाईदूज, गुरु पर्व और ईद का जश्न यहां बहुत ही जोर—शोर से मनाया जाता है। यहां तक की विदेश में भी भारतीय संस्कृति अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रही है। वहां रहने वाले भारतीय प्रवासी इन त्यौहारों का जमकर लुत्फ उठाते हैं। दिवाली की रौनक के छह दिन बाद हर

दीपावली के पर्व में छिपे हैं जीवन के अनेक सन्देश

प्रकाश का पर्व दीपावली बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। इस दिन लोग अपने घर-आंगन को दीपों से सजाते हैं,और धन-धान्य की प्राप्ति के लिए देवी लक्ष्मी का पूजन करते हैं। कार्तिक मास की अमावस्या के दिन दीयों का प्रकाश किसी भी व्यक्ति को अमावस्या की काली रात का एहसास नहीं होने देता है। दीयों का पर्व दीवाली सिर्फ एक दिन का त्योहार नहीं है, बल्कि इस त्योहार की एक श्रृंखला है। यह त्योहार दीवाली

विश्व की अनेक समस्याओं का एक समाधान है एकात्म मानव-दर्शन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मानना है कि भारतीय चिंतन के आधार पर प्रतिपादित विचार ‘एकात्म मानवदर्शन’ ही दुनिया को सभी प्रकार के संकटों का समाधान दे सकता है। संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल ने हैदराबाद की बैठक में इस आशय का प्रस्ताव रखा है। संघ का मानना है कि आज विश्व में बढ़ रही आर्थिक विषमता, पर्यावरण-असंतुलन और आतंकवाद मानवता के लिए गंभीर चुनौती का कारण बन रहे

अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक-पर्व है दीपावली

इस प्रार्थना में अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की कामना की गई है। दीपों का पावन पर्व दीपावली भी यही संदेश देता है। यह अंधकार पर प्रकाश की जीत का पर्व है। दीपावली का अर्थ है दीपों की श्रृंखला। दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों ‘दीप’ एवं ‘आवली’ अर्थात ‘श्रृंखला’ के मिश्रण से हुई है। दीपावली का पर्व कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है। वास्तव में दीपावली एक दिवसीय पर्व नहीं है, अपितु यह

राष्ट्रीयता को मजबूत करेगा ‘लोक मंथन’ : विनय सहस्त्रबुद्धे

भोपाल, 18 अक्टूबर। एक नए भारत का उदय हो रहा है। इस उदीयमान भारत की कुछ आकांक्षाएं और अपेक्षाएं हैं। यह आकांक्षावान भारत किसी प्रकार के भ्रम में नहीं है, अपने गंतव्यों के प्रति पूर्णतः स्पष्ट है। जनमानस में अब तक यह धारणा बन रही थी कि सब हमें ठगने के लिए आते हैं। यह धारणा टूट रही है। पहली बार है जब यह धारणा बन रही है कि कुछ अच्छा होगा। देश में ऐसा वातावरण बनता दिख रहा है कि