केजरीवाल

‘सर्जिकल स्ट्राइक’ पर सियासत से बाज आएं विपक्षी दल

देश में हो रहें पाक प्रायोजित आतंकी हमलों के विरुद्ध माहौल बनता हैं, और उसके कृत्यों का जवाब उसी की भाषा में सेना के पैरा कमांडो द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में दिया जाता हैं। शुरुआती दौर में तो देश की सभी विपक्षी पार्टियां इस मुद्वे पर सहमत रहती हैं, उसके कुछ दिन बाद जिस तरह सेना के बाहुबल पर शक करते हुए सरकार और सेना से सबूत मांग रही हैं, यह साबित करता हैं कि देश में अपनी

सेना पर भरोसा नहीं है क्या कि सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो मांग रहे हैं केजरीवाल ?

देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ के नेता और बुद्धिजीवी राष्ट्रीय मुद्दों पर भी बेतुकी बयानबाजी करने से बाज नहीं आते हैं। वक्त की नजाकत कहती है कि इस वक्त भारत और पाकिस्तान के संबंध में बहुत संभलकर बोलने की जरूरत है। इस वक्त कोई भी विचार प्रकट करते वक्त यह ध्यान रखना ही चाहिए कि उसका क्या असर होगा ? कहीं हमारा विचार दुश्मन देश को मदद न पहुँचा दे। अपने किसी भी बयान से भारत सरकार,

अब तो दिल्ली के तुगलक का दरबार छोड़ दीजिये मैत्रेयी पुष्पा जी!

हिंदी दिवस पर दिल्ली सरकार के अतर्गत आने वाली हिंदी अकादमी एकबार फिर विवादों में है। विवाद की वजह सम्मान-वापसी से जुड़ा है। घबराइये मत, यह सम्मान वापसी अवार्ड वापसी वाले उस असहिष्णुता इवेंट जैसा नहीं है। इसबार आम आदमी पार्टी सरकार के अंतर्गत आने वाली दिल्ली हिंदी अकादमी ने हिंदी दिवस पर तीन साहित्यकारों

दिल्ली में तो सरकार चल नहीं रही और पंजाब में खूंटा गाड़ने चले हैं केजरीवाल!

दिल्ली चुनाव के समय दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शिला दीक्षित के घोटालों के खिलाफ तीन सौ पन्ने के सबूत अपने साथ लेकर घूमने वाले अरविन्द केजरीवाल जब पूर्ण बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता में आए तो वे तीन सौ पन्ने के सबूत की बात केजरीवाल ऐसे भूले कि फिर कभी उनके श्रीमुख से उनका जिक्र भी सुनने में नहीं आया। आज वे लगभग डेढ़ साल से दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन शिला दीक्षित के विरुद्ध एक

खुलीआम आदमी पार्टी की पोल, सामने आई नई राजनीति की हकीकत!

गरीबी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार आदि को ख़त्म कर देने के वायदो के साथ भोले-भाले लोगों के दिलो मे विश्वास घोलने वाली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी धीरे-धीरे अपने असली रंग में आती जा रही है। जन-लोकपाल और भ्रष्टाचार को हथकण्डा बनाकर लोगों के दिलो में जो विश्वास आम आदमी पार्टी ने कायम किया था, वह पार्टी की आंतरिक खामियों की भेंट चढ़ता दिखाई दे रहा है। जिन लोगों ने जनता को यकीन

उतर गया आम आदमी पार्टी के चेहरे से नैतिकता का नकाब, सामने आया असल चरित्र!

जब भी आम आदमी पार्टी के किसी नेता पर कुछ आरोप लगता है तो समूची पार्टी उसके साथ खड़ी होती है,आरोपों को झूठा साबित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ती। ताज़ा मामला यूँ है कि आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री संदीप कुमार का एक आपत्तिजनक विडियो का मामला प्रकाश में आया है। इस विडियो में संदीप कुमार कुछेक महिलाओं के साथ बेहद

राजनीतिक मूल्यों और विचारों से हीन है आप, पतन तो होना ही है!

आम आदमी पार्टी (आप) गत फ़रवरी में जब सत्ता में आई तबसे अबतक वो अपने कामों के लिए कम कारनामों के लिए अधिक चर्चा में रही है। राजनीतिक शुचिता, पारदर्शिता और कर्तव्यनिष्ठा की बड़ी-बड़ी कसमें खाकर सत्ता में आने वाली आप ने सत्ता का रसपान करते ही कैसे इन कसमों को तिलांजलि दे दी, उसकी गवाही उसके शासन का ये लगभग डेढ़ साल का समय देता हैं।

ईमानदार राजनीति की निकली हवा, दिल्ली सरकार के पदों की बंदरबाँट करने में डूबे केजरीवाल!

अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन का सहारा लेकर अरविन्द केजरीवाल व उनकी टीम ने मौका देख धीरे-से पूरे आंदोलन को एक-तरफ़ कर अपना नया राजनीतिक एजेंडा आम आदमी पार्टी के रूप में देश में लांच किया।

कोर्ट के फैसले के बाद अब रार छोड़ें और दिल्ली में कुछ काम भी करें केजरीवाल

दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल सरकार की अपील पर जो फैसला सुनाया है, वह उसके लिए झटका भी है और बचाव का रास्ता भी। हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि दिल्ली के असल प्रशासक दिल्ली के उपराज्यपाल ही है। जिस 69वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत दिल्ली में विधानसभा है और सरकार बनी है, उसके मुताबिक दिल्ली का उपराज्यपाल ही दिल्ली का असल प्रशासक है और वह केंद्रीय गृहमंत्रालय के अधीन प्रशासन चलाता है। रही बात विधानसभा की तो उसकी वह हैसियत नहीं है, जो हैसियत संघ के दूसरे राज्यों की है।

अराजकता का ध्वस्त होता अधिकारवाद, केजरीवाल को कोर्ट का तमाचा

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल को संवैधानिक मर्यादाओं के विधिक विवेचन और स्थापन के बीच अधिकारों की ‘जंग’ में दिल्ली हाईकोर्ट से वाजिब सबक मिलने के साथ ही बड़ा सियासी झटका लगा है। दिल्ली हाईकोर्ट ने आज केजरीवाल सरकार की याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट रूप से कहा है कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के संवैधानिक प्रमुख हैं और वह कैबिनेट की सलाह मानने को बाध्य नहीं हैं। दरअसल आज दिल्ली हाईकोर्ट के सामने प्रश्न था कि दिल्ली पर किसका कितना अधिकार है यानी दिल्ली सरकार का या फिर उपराज्यपाल का।