नेहरू

‘कांग्रेस पटेल को लेकर मोदी सरकार पर जितने हमले करेगी, उसकी नीयत पर उतने ही सवाल उठेंगे’

गुजरात में लौह पुरुष सरदार पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा के अनावरण के साथ ही देश का इतिहास एक बार फिर से गौरवान्वित हुआ है। सरदार के कृतित्व और यशोगाथा को और अधिक प्रकाशवान बनाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है।

35ए : वह अनुच्छेद जिसे नेहरू ने संसद में पारित किए बिना ही संविधान का हिस्सा बना दिया

अनुच्छेद 35-ए को लेकर पिछले कुछ दिनों से लगातार बहस-मुबाहिसो का दौर जारी है। यह एक ऐसा विधान है, जिसने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान किया है। लेकिन इसे एक ऐसे संवैधानिक धोखे का नाम भी दिया जा रहा है, जिसकी वजह से वहां के लाखों लोग वर्षों से नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।

कांग्रेस आज जिस अहंकार से ग्रस्त दिखती है, उसकी जड़ें नेहरू के जमाने की हैं!

कल लोकसभा में तेदेपा द्वारा लाया गया और कांग्रेस आदि कई और विपक्षी दलों द्वारा समर्थित अविश्वास प्रस्ताव प्रत्याशित रूप से गिर गया। अविश्वास प्रस्ताव पर हुए मतदान में कुल 451 सांसदों ने मतदान किया जिसमें सरकार के पक्ष में 325 और विपक्ष में 126 मत पड़े। इस प्रकार 199 मतों से सरकार ने विजय प्राप्त कर ली। लेकिन इससे पूर्व अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा में पक्ष-

सिंधु जल समझौता : नेहरू की ऐतिहासिक भूल को सुधारने में जुटी मोदी सरकार

सत्‍ता के लिए तुष्टिकरण के तो कई उदाहरण मिल जाएंगे, लेकिन अपनी संप्रभुता को गिरवी रखने के उदाहरण भारत के अलावा पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलेंगे। कोको द्वीप म्‍यांमार को उपहार में देना, संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद की स्‍थायी सदस्‍यता ठुकराना, पंचशील समझौता, अपनी जमीन को बंजर बताना, सिंधु जल समझौता ऐसे ही कुछेक उदाहरण हैं।

नेहरू की महानता के भ्रमजाल से मुक्त होता देश

पिछले दिनों ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ के अवसर पर संसद में देश के स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया गया। संप्रग अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने अपने वक्तव्य में महात्मा गाँधी, पं जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल का जिक्र किया, लेकिन उनके वक्तव्य के केंद्र में नेहरू ही रहे। नेहरू का नाम उन्होंने सबसे अधिक लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने वक्तव्य में गांधी, पटेल, लाल बहादुर

लौह पुरुष सरदार पटेल जो धर्मपत्नी की मृत्यु की सूचना के बाद भी केस लड़ते रहे !

स्वतन्त्रता संग्राम से लेकर मजबूत और एकीकृत भारत के निर्माण तक में सरदार वल्लभ भाई पटेल का  योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।  उनका जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व सदैव प्रेरणा के रूप में देश के सामने रहेगा। उन्होने युवावस्था में ही  राष्ट्र और समाज के लिए अपना जीवन समर्पित करने का निर्णय लिया था। इस ध्येय पथ पर वह निःस्वार्थ भाव से लगे रहे। गीता में भगवान कृष्ण ने कर्म को योग रूप में समझाया है।

आजादी के बाद नेहरूवादी नीतियों के अंधानुसरण के कारण अपेक्षित विकास नहीं कर सका भारत

इस पंद्रह अगस्त हमने अपनी आजादी का 70वां वर्ष पूरा कर लिया। सवाल का उठना लाजिमी है कि क्या हमने 70 सालों में वह सबकुछ हासिल कर लिया, जो खुशहाली के लिये जरूरी है। चीन 1 अक्टूबर, 1949 को आजाद हुआ था, लेकिन आज वह बहुत सारे मामलों में भारत से आगे है। भारत ने आजादी के बाद बहुत कुछ हासिल किया लेकिन अभी उससे बहुत अधिक हासिल करना है।

नेहरूवादी मुस्लिपरस्ती के कारण कांग्रेस ने इजरायल से रखी दूरी, राष्ट्रीय हितों को किया अनदेखा

नेहरू-गांधी खानदान ने मुस्‍लिम वोटों के लिए हिंदू हितों की बलि ही नहीं चढ़ाई बल्‍कि ऐसी विदेश नीति भी अपनाई जिससे राष्‍ट्रीय हित तार-तार होते गए। इसे भारत की मध्‍य-पूर्व नीति से समझा जा सकता है। प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में नेहरू ने पश्‍चिम एशिया के संबंध में भारतीय विदेश नीति में तय कर दिया था कि फिलीस्‍तीन से दोस्‍ती इजरायल से दूरी के रूप में दिखनी चाहिए। नेहरू की इस आत्‍मघाती नीति को

भारत को मिल रही थी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की सदस्यता, नेहरू ने चीन की झोली में डाल दिया !

भारत-चीन के बीच आजकल सीमा विवाद बेहद गंभीर रूप ले चुका है। स्थिति युद्ध वाली बन रही है। चीन का रुख बेहद आक्रामक है। यह वही चीन है, जिसे भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य बनवाने में अहम रोल अदा किया था पंडित जवाहर लाल नेहरु के सौजन्य से। उनका चीन प्रेम जगजाहिर था।

बाबा साहब की उपेक्षा करने वाली कांग्रेस रामनाथ कोविंद को भला कैसे स्वीकार कर सकती है !

कल यानी सोमवार 19 जून को जब भारत के अगले राष्ट्रपति के चुनाव के लिए राजग की ओर से बिहार के मौजूदा राज्यपाल रामनाथ कोविंद जी को उम्मीदवार घोषित किया गया, तब से विपक्षी पार्टियां खासकर कांग्रेस और वामपंथी दल सन्नाटे में आ गए हैं। दरअसल यह रामनाथ कोविंद अथवा भाजपा-संघ का विरोध नहीं है, यह एक सामंतवादी मानसिकता है जो समय-समय पर उभर कर सामने आती है, उसका स्वरूप अलग