जेएनयू

युवाओं के लिए प्रेरणा का माध्यम बनेगी स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा

स्वामी विवेकानंद की जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रतिमा के होने का मतलब है इस विश्वविद्यालय के हर छात्र का भारतीयता के रंग में रंग जाना,

जेएनयू में नए युग का आगाज

उम्मीद जगती है कि अब जेएनयू में आयातित वामपंथी विचारधारा का वर्चस्व कम होगा तथा भारतीयता के विचारों को प्रोत्साहन मिलेगा।

जेएनयू में प्रधानमंत्री मोदी ने किया स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण

संघर्ष एक शास्वत सत्य है जो हर महान कार्य में संलग्न होता ही है। जेएनयू में स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा की स्थापना भी इस सत्य को स्थापित करती है।

पिंजरा तोड़ अभियान से उपजते सवाल

छोटे-छोटे शहरों से बड़े सपने लेकर देश की राष्ट्रीय राजधानी आने वाले लड़के-लड़कियों को वामपंथी ताक़तें किस क़दर बहलाती-फुसलाती हैं, उसकी कहानी आप इस संगठन के बनने के पीछे की कहानी को जानकर समझ सकते हैं।

कन्हैया कुमार पर केस चलाने की अनुमति देने के पीछे क्या है ‘आप’ की राजनीति?

आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली में जेएनयू के पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार  के खिलाफ केस चलाने की मंजूरी देकर नेक काम किया है, लेकिन यह फैसला लेने में हुई देरी पर सवाल भी उठ रहे हैं। कन्हैया कुमार सहित अन्य 10 छात्रों पर आरोप था कि इन लोगों ने संसद पर हमले के दोषी अफज़ल गुरु को सजा दिए जाने के विरोध में भारत विरोधी नारे लगाए थे। यह मामला 2016

साईबाबा की सज़ा पर उनकी पत्नी की प्रतिक्रिया से निकलते संदेश

उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और उसके नतीजों के कोलाहल के बीच एक बेहद अहम खबर लगभग दब सी गई । राजनीतिक विश्लेषकों ने इस खबर को उतनी तवज्जो नहीं दी जितनी मिलनी चाहिए थी । उस खबर पर प्राइम टाइम में उतनी बहस नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी । वह खबर थी दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज के शिक्षक जी साईबाबा और चार अन्य को देश के खिलाफ युद्ध

वैचारिक स्वतंत्रता की आड़ में ख़तरनाक साज़िशों का जाल

एक चर्चित पंक्ति है, ‘जब तलाशी हुई तो सच से पर्दा उठा कि घर के ही लोग घर के लूटेरे मिले’। यह पंक्ति अभी दो दिन पहले आई एक ख़बर पर सटीक बैठती है। हालांकि चुनावी ख़बरों के बीच वह ज़रूरी खबर दब सी गयी। दिल्ली विश्वविद्यालय से एक प्रोफ़ेसर जीएन साईबाबा को वर्ष २०१४ में नक्सलियों से संबंध होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और अब गढ़चिरौली की अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई

देश के शिक्षण संस्थानों पर वामपंथियों की कुदृष्टि

इन दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत अवस्थित रामजस महाविद्यालय विवादों में बना हुआ है। विषय को आगे बढ़ाने से पूर्व आवश्यक होगा कि हम रामजस महाविद्यालय के इतिहास के विषय में थोड़ा जान लें। इस महाविद्यालय की स्थापना सन 1917 में प्रख्यात शिक्षाविद् राज केदारनाथ द्वारा दिल्ली के दरियागंज में की गयी थी। जहाँ से 1924 में स्थानांतरित करते हुए इसे दिल्ली के आनंद परबत इलाके में महात्मा

रामजस कॉलेज प्रकरण पर हंगामा, तो केरल की वामपंथी हिंसा पर खामोशी क्यों ?

रामजस महाविद्यालय प्रकरण से एक बार फिर साबित हो गया कि हमारा तथाकथित बौद्धिक जगत और मीडिया का एक वर्ग भयंकर रूप से दोमुंहा है। एक तरफ ये कथित धमकियों पर भी देश में ऐसी बहस खड़ी कर देते हैं, मानो आपातकाल ही आ गया है, जबकि दूसरी ओर बेरहमी से की जा रही हत्याओं पर भी चुप्पी साध कर बैठे रहते हैं। वामपंथ के अनुगामी और भारत विरोधी ताकतें वर्षों से इस अभ्यास में लगी

मैं विद्यार्थी परिषद् बोल रहा हूँ…..!

कम्युनिस्ट अपने मूल चरित्र में जितने हिंसक हैं, उतने ही फरेब में माहिर भी हैं। वो रोज नए झूठ गढ़ते हैं। जबतक उनके एक झूठ से पर्दा उठे तबतक दूसरा झूठ ओढ़कर पैदा हो जाते हैं. दरअसल झूठ की लहलहाती फसल के रक्तबीज हैं। आजकल इनके निशाने पर देश के विश्वविद्यालय हैं। कुछ भी रचनात्मक कर पाने में असफल यह गिरोह अब ध्वंसात्मक नीतियों के चरम की ओर बढ़ चला है।