सच की अनदेखी का ये कैसा प्रपंच?

 बलबीर पुंज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार ने अपने दो वर्ष पूरे कर लिए हैं, परंतु सार्वजनिक विमर्श में इस महत्वपूर्ण विषय पर कितनी चर्चा है? दादरी कांड, modi-ptiरोहित वेमुला की आत्महत्या देश ही नहीं अपितु अंतरराष्ट्रीय मीडिया जगत की सुर्खियां बनी। किंतु केरल में हुई दुष्कर्म की दो घटनाओं, जिसमें एर्नाकुलम में वीभत्सता की हदें पार कर दी गईं, उसे तथाकथित सेक्युलर मीडिया द्वारा महत्व नहीं दिया जा रहा है। क्यों?

देश में कई ऐसे गंभीर विषय हैं जिसका सीधा सरोकार देश की आम जनता और उनकी रोजमर्रा की जिंदगी से है, किंतु मसालेदार खबरों की खोज में लगा और किसी खास विचारधारा से ओतप्रोत मीडिया का बड़ा हिस्सा ऐसे मसलों को या तो सार्वजनिक विमर्श से दूर रख रहा है या उसे उचित महत्व नहीं दे रहा है। दो वर्षों में मोदी सरकार द्वारा लागू की गई जनहित से जुड़ी योजनाएं व परियोजनाएं मीडिया में चर्चा का विषय नहीं बनतीं। उदाहरण के रूप में काले धन का मामला लें तो हम देखेंगे कि तथाकथित सेक्युलर मीडिया इसे लेकर प्रधानमंत्री पर व्यंग्य कसता है, क्योंकि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा द्वारा काला धन वापस लाने का वादा किया गया था, परंतु काले धन को बाहर निकालने के लिए मोदी सरकार ने क्या कदम उठाए, इस पर कोई विशेष चर्चा नहीं होती। क्यों?

वित्त मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में दावा किया गया है कि अप्रत्यक्ष कर चोरी के रूप में 50000 करोड़ रुपए और अघोषित आय के रूप में 21000 करोड़ रुपए का विगत दो वर्षों में पता लगाया गया है। इसे मीडिया ने अधिक महत्व नहीं दिया। काले धन की जांच के लिए राजग सरकार ने दो वर्ष के भीतर लगभग 1400 मामले दर्ज किए और इसकी जांच के लिए एक विशेष जांच दल का भी गठन किया है। परंतु टीआरपी की दौड़ में भाग रहे सेक्युलर मीडिया के पास संभवत: इसके लिए कोई समय नहीं है।

मीडिया के बड़े वर्ग के लिए उन योजनाओं का कोई खास महत्व नहीं है, जिसका सीधा लाभ देश की आम जनता तक पहुंच रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की देश के संपन्न् वर्ग से रसोई गैस सबसिडी का त्याग करने की अपील ने व्यापक असर दिखाया। एक करोड़ से अधिक उपभोक्ताओं ने स्वेच्छा से गैस सबसिडी का त्याग किया, ताकि इसका लाभ गरीब परिवारों को मिल सके।

राजग सरकार मध्य और पूर्वी भारत के पिछड़े क्षेत्रों में गैस पाइपलाइन बिछाने की योजना तैयार कर रही है। इससे दो लाभ होंगे। पहला यह कि गैस वितरण प्रणाली पर वर्तमान समय में सरकार द्वारा व्यय हो रहे 8000 करोड़ रुपयों की बचत होगी और दूसरा यह कि सरकार इस राशि से एलपीजी रसोई गैस का वितरण समाज के उस वर्ग के बीच करेगी, जो आज भी सेहत के लिए अत्यंत हानिकारक जलावन और गाय के गोबर से घर का चूल्हा जलाते है।

देश में दवाओं के दाम तय करने वाले नियामक राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने 10 मई को 54 आवश्यक दवाओं के दाम में 55 प्रतिशत की कटौती की है। इनमें कैंसर सहित उच्च रक्तचाप, मधुमेह और दिल संबंधी रोग के उपचार के लिए दवाएं भी सम्मिलित हैं। दामों में इस तरह की कटौती पिछले तीन हफ्तों में दूसरी बार की गई है। 28 अप्रैल को भी एनपीपीए ने 54 अन्य दवाओं के दामों में भारी कमी की थी। मोदी सरकार द्वारा लिए गए इस साहसिक कदम से निश्चित रूप से अनगिनत भारतीयों को लाभ होगा। परंतु क्या टीआरपी के लिए हंगामेदार खबर के भूखे न्यूज चैनलों ने इसकी जानकारी जनता को दी?

स्वच्छ भारत का नारा केवल स्वच्छता तक सीमित नहीं था, इसका एक व्यापक अर्थ है। वर्ष 2014 में भ्रष्टाचार की घृणित श्रंखला की पृष्ठभूमि में राजग को जनादेश मिला। 26 मई 2014 से अब तक मोदी सरकार ने शासन और कार्यप्रणाली में पारदर्शिता पर बल दिया है, जिसका परिणाम विश्व में भारत की छवि में व्यापक सुधार के रूप में दिखाई भी देता है। यह उसी पारदर्शिता का असर है कि आज केंद्र सरकार और नौकरशाहों के बीच आपसी सामंजस्य बढ़ा है। राजनीतिक स्तर पर सरकार क्या चाहती है, उसे नौकरशाहों द्वारा पूरा किया जा रहा है।

हाल ही में नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत के नेतृत्व में कई विभागों के सचिवों की महत्वपूर्ण बैठक हुई, जिसमें देश की योजना को लेकर एक दस्तावेज तैयार किया गया। सामान्यत: इस तरह के दस्तावेजों में जिसमें देश की अर्थव्यवस्था को 2 खरब डॉलर से 10 खरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया हो, उसे पढ़ने और समझने के लिए काफी परिश्रम करना पड़ता है। परंतु नीति आयोग की बैठक में तैयार पावर प्वाइंट प्रस्तुति इतनी सरल है कि उसे पलभर में समझा जा सकता है कि सरकार की क्या योजना है और उसका क्रियान्वयन किस रूप में करना है।

सही अर्थ में हम पहली बार सरकार में पारदर्शिता का अनुभव कर रहे है। सरकार की वेबसाइट से आप सीधे प्रधानमंत्री सहित सभी विभागों से संपर्क साध सकते है। सरकार मोबाइल ऐप के माध्यम से भी जनता से जुड़ी हुई है। सरकार की महत्वाकांक्षी योजना डिजिटल इंडिया केवल एक विचार नहीं, अपितु यह लोगों को सरकार से जोड़ने का अतुल्य प्रयास है। सरकार का अधिकतर कामकाज ऑनलाइन हो चुका है। यह मोदी सरकार के अथक प्रयासों का परिणाम है कि आज भारत अद्भुत बदलाव के दौर से गुजर रहा है। लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो यह देखना नहीं चाहता। यह बदलाव इनके निहित स्वार्थों के आड़े आ रहा है और यही कारण है कि वास्तविकता को सार्वजनिक विमर्श से दूर करने का प्रपंच रचा जा रहा है।

(लेखक भाजपा के पूर्व राज्यरसभा सदस्य हैं,यह लेख ३१ मई  को दैनिक  नईदुनिया में  प्रकाशित हुआ था )