अनिल पाण्डेय

सेकुलर पत्रकारों की पाखंडी पत्रकारिता का खोखला चरित्र

बिहार विधानसभा चुनाव के बाद थोड़े दिन शांति रही। लगा कि अब “असहिष्णुता” खत्म हो गई है। लेकिन उत्तर प्रदेश चुनाव नजदीक आते ही एक बार फिर “छदम सेकुलरवादी” सक्रिय हो गए हैं और देश में फिर से असहिष्णुता का हौवा खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में फिर से “लोकतंत्र खतरे में है… आपातकाल से भी बुरी स्थिति हो गई है