शुभम तिवारी

तीन तलाक बिल : ये देश कट्टरपंथियों के फतवों से नहीं, संविधान से चलेगा!

भारत की संसद का देश की सर्वोच्च विधायिक संस्था होने के नाते देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में अपना एक महत्व है, हमारी संसद की आवाज़ पूरे देश की आवाज़ है। एक लोकतंत्रात्मक गणराज्य में संसद देश की संप्रभुता का प्रतीक है, ये कभी भी किसी बाहरी या आंतरिक दबाव के आगे नहीं झुकती, पर ये विडम्बना ही है कि कांग्रेसी सरकार की वोट बैंक की राजनीती ने कल्याणकारी राज्य की सबसे बड़ी विधायिक संस्था को एक

गुजरात चुनाव में बदल गया भारतीय राजनीति का वैचारिक धरातल

हाल ही में संपन्न हुए गुजरात चुनाव वैसे तो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में किसी राज्य के सामान्य चुनाव जैसा ही था, परन्तु एक राजनीतिक विश्लेषक की नज़र से देखा जाए तो स्पष्ट होता है कि शायद ये चुनाव सामान्य नहीं था। भारतीय राजनीती के वैचारिक परिद्रश्य से तो कतई ये चुनाव सामान्य नहीं था, कभी जिनके पूर्वजों ने सोमनाथ के जीर्णोद्धार का विरोध किया था, उनके वंशज उसी सोमनाथ बाबा के सामने साष्टांग