केरल की वामपंथी हिंसा का जवाब देने के लिए अब मिशन मोड में भाजपा

ईश्वर की धरती कहलाने वाला केरल दानव की धरती बन चुका है। संघ और भाजपा के कार्यकर्ता यहाँ लगातार वामपंथी गुंडों का निशाना बन रहे हैं। मगर, इसपर मीडिया से लेकर बुद्धिजीवी वर्ग तक खामोशी पसरी है। क्या केरल में मारे जाने वाले इंसान नहीं हैं? क्यों केरल में हो रही हत्याओं पर कथित प्रगतिशील लेखक बिरादरी अपने पुरस्कार वापस नहीं करती? मीडिया या दिल्ली के  सेमिनार सर्किट से जुड़े तत्व  केरल सरकार से चुभने वाले सवाल क्यों नहीं पूछते? क्यों नहीं पूछा जाता कि केरल में कब बंद होंगी राजनीतिक हत्याएं?

केरल गॉड्स ओन कंट्री यानी ईश्वर का अपना देश। अपनी नैसर्गिक खूबसूरती के लिए पूरी दुनिया में मशहूर केरल । यहां की हरियाली आंखों को सुकून देती है। आप यहां इतनी बड़ी संख्या में नारियल और केलों के पेड़ देख सकते हैं जितने शायद आपने पूरी जिंदगी में नहीं देखे होंगे। पर, खूबसूरत केरल को नजर लग गई है। इधर भाजपा या संघ से जुड़ा होना खतरे से खाली नहीं है। इनके नेताओं  और कार्यकर्ताओं की नृशंस हत्याएं आम बात हो चुकी हैं। इन हत्याओं को अंजाम देने में सत्तासीन लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) के मुख्य घटक माकपा के कार्यकर्ता आगे रहते हैं। उनका बाल भी बांका नहीं होता, क्योंकि उन्हें सरकारी संरक्षण हासिल है।

बीते पांच दशकों के दौरान माकपा केरल में हर रोज और अमानवीय, और हिंसक होती जा रही है भाजपा तथा संघ के कार्यकर्ताओं को लेकर। माकपा के गुंडे उपर्युक्त संगठनों से  संबंध रखने वालों को नृशंस तथा क्रूरतापूर्ण तरीके से कत्ल कर रहे हैं। बीते दस-पंद्रह सालों में केरल में हजारों  संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं को चुन-चुनकर मारा गया है।

(सांकेतिक चित्र) साभार : गूगल

बेशक, ईश्वर की धरती दानव की धरती बन चुकी है। और दुर्भाग्य से इतनी हिंसा पर देश के मीडिया ने आंखें मूंदी हुई हैं। क्यों? क्या केरल में मारे जाने वाले इंसान नहीं हैं? क्यों केरल में हो रही हत्याओं पर कथित प्रगतिशील लेखक बिरादरी अपने पुरस्कार वापस नहीं करती? मीडिया या दिल्ली के  सेमिनार सर्किट से जुड़े तत्व  केरल सरकार से चुभने वाले सवाल क्यों नहीं पूछे जाते? क्यों नहीं पूछा जाता कि केरल में कब बंद होंगी राजनीतिक हत्याएं?

अपने को मानवाधिकारों का सबसे जुझारू प्रवक्ता कहने वाले माकपा नेता जैसे सीताराम येचुरी या प्रकाश करात ने कभी केरल में संघ या भाजपा के नेताओं/कार्यकर्ताओं पर हमलों  के विरोध में जुबान नहीं खोली। क्या इन संगठनों के कार्यकर्ताओं के मानवाधिकार नहीं है? यह इन वामपंथी नेताओं और इनके वामपंथ के दोहरे चरित्र को दिखाने के लिए पर्याप्त है।

कहीं न कहीं लगता है कि माकपा को भय है कि केरल में संघ और भाजपा का बढ़ता असर उनके पतन का संकेत है। वैसे ही माकपा को सारा देश खारिज करता जा रहा है। केरल में लाल क्रांति के नारे देने वालों के न जाने कितने मासूम लोगों के खून से हाथ सने हैं। रूस में 1917 को शुरू हुई लेनिन की लाल क्रांति, स्टॅलिन तक आते-आते विरोधियों की हत्या की क्रांति में बदल गयी। केरल में भी यही हुआ। वहां पर माकपा ने विरोधियों का कत्लेआम जारी रखा है। दरअसल वामपंथ का मूल चरित्र ही हिंसात्मक है। इसमें विरोधियों को ख़त्म करने के तरीके के तौर पर हिंसा को पहले स्थान पर रखा गया है। केरल के वामपंथी वही कर रहे हैं।

सांकेतिक चित्र (साभार : गूगल)

सन 1967 के बाद जब से संघ एवं भाजपा ने केरल में अपने पैर जमाने शुरू किये तब से ही इनके कार्यकर्ताओं की हत्या बदस्तूर जारी है। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि साल 1969 में केरल में संघ के एक कार्यकर्ता की हत्या में राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री पी. विजयन शामिल थे। केरल में किसी संघ कार्यकर्ता की वो पहली हत्या थी। 28 अप्रैल 1969 को संघ के एक ‘मुख्य शिक्षक’ रामकृष्णन की हत्या की गयी थी।

दरअसल पिछले साल मई में जब केरल में लेफ्ट फ्रंट सरकार सत्तासीन हुई तो लग रहा था कि अब केरल में अमन होगा। राजनीतिक विरोधियों की हत्याएं नहीं होंगी। और सरकार राज्य के समावेशी विकास पर जोर देगी। पर हुआ इसके विपरीत। लेफ्ट फ्रंट की मुख्य घटक तो संघ और भाजपा की जान की दुश्मन होकर उभरी। इसने एक ठोस रणनीति के तहत संघ-भाजपा के कार्यकर्ताओं पर हमले चालू करवा दिए। आप जरा फुर्सत मिलने पर केरल में संघ-भाजपा की हत्याओं के पेज खोजिए गूगल पर। यकीन मानिए आपके सामने दर्जनों इस तरह की घटनाएं सामने आ जाएंगी जब माकपा के गुंडों ने अपनी सरकार के संरक्षण में कत्लेआम किया।

चालू साल के शुरू में  राजनीतिक रूप से संवेदनशील माने जाने वाले कन्नूर जिले में कथित तौर पर माकपा कार्यकर्ताओं ने भाजपा के 30 वर्षीय एक कार्यकर्ता की चाकू मारकर हत्या कर दी। इसी तरह से एक अन्य घटना में थालीपरंबा स्थित आरएसएस के कार्यालय पर एक देसी बम फेंका गया। अपने कार्यकर्ताओं की हत्याओं से विचलित भाजपा अब भी लोकतांत्रिक तरीके से ही लड़ रही है। भाजपा ने केरल में सत्ताधारी माकपा पर अपने कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा करने का आरोप लगाते हुए इस  साल जनवरी में विरोध दिवस भी मनाया। फिर भी केरल में राजनीतिक हिंसा जारी है। फरवरी में भाजपा  नेता और कन्नूर मंडल उपाध्यक्ष सुशील पर हमला हुआ। हाल फिलहाल केरल में जमकर राजनीतिक हिंसा के मामले आ रहे हैं। संघ-भाजपा  कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया है।

सांकेतिक चित्र (साभार : गूगल)

बेशक, केरल की स्थिति को जानता है भाजपा का शीर्ष नेतृत्व। इसलिए केरल में भाजपा ने वामपंथी विचारधारा से निपटने के लिए मिशन मोड में काम करने का फैसला किया है। उड़ीसा में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कार्यकारिणी की बैठक में इस मुद्दे को उठाया और पार्टी नेताओं से कहा कि वामपंथी विचारधारा की पकड़ वाले राज्यों में पार्टी अपना अभियान तेज करेगी। उन्होंने कहा कि अगले चुनाव में वहां राजनीतिक स्थिति मजबूत की जाएगी। भाजपा नेतृत्व का फैसला स्वागत योग्य है। उसे केरल में अपने विरोधियों को मात देनी होगी।

अब भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार हर 15 दिन में कम से कम एक केंद्रीय मंत्री को केरल और त्रिपुरा भेजेगी। त्रिपुरा में अगले साल ही चुनाव होने हैं।  यानी भाजपा केरल  में माकपा की गुंडई से लड़ने के लिए कमर कस रही है। पर, भाजपा खूनी लड़ाई न कभी लड़ी है न लड़ेगी, वो तो वैचारिक स्तर पर माकपा को धूल में मिलाएगी। लोकतंत्र में विरोधियों को धूल में मिलाने का रास्ता हिंसा का नहीं है। भाजपा इस तथ्य को भली प्रकार से समझती है। इसलिए ही उसकी तरफ से अब केरल में लड़ी जाएगी वैचारिक लड़ाई।

(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)