क्वाड के तेवर से सहमा चीन

क्वाड का उद्देश्य प्रशांत महासागर, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया  में विस्तृत नेटवर्क के जरिए जापान और भारत के साथ मिलकर इस क्षेत्र में एक ऐसा वातावरण निर्मित करना है जिससे एक स्वतंत्र, खुली और समावेशी विकास का मार्ग प्रशस्त हो। नेविगेशन की स्वतंत्रता हो तथा ओवर-फ्लाइट एवं आसियान के निर्माण को लेकर काम किया जाए। क्वाड के इस उद्देश्य से चीन बौखालाया हुआ है।

जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक के तुरंत बाद क्वाड (क्वाड्रिलेटरल सेक्युरिटी डायलाग) के सदस्य देशों (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ) ने संयुक्त रुप से चीन और पाकिस्तान को ताकीद कर दिया है कि उनकी विस्तारवादी और आतंकी नीति स्वीकार नहीं है। सदस्य देशों ने दो टूक कहा कि वे आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए क्वाड वर्किंग ग्रुप के जरिए आतंकवाद पर नकेल कसेंगे। सदस्य देशों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती दादागिरी से निपटने की प्रतिबद्धता व्यक्त कर आतंकवाद और चरमपंथ की निंदा भी की।

इससे चीन का तिलमिलाना और भयभीत होना लाजिमी है। लिहाजा उसने भी क्वाड का नाम लिए बिना कहा कि छोटे-छोटे समूह दुनिया में स्थिरता के लिए खतरा हैं। गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब क्वाड के सदस्य देशों ने चीन की आक्रामक नीति के खिलाफ सख्त तेवर अपनाए हैं। याद होगा क्वाड के पहले वर्चुअल सम्मेलन के दौरान भी सदस्य देशों ने चीन को अपने हद में रहने की सलाह दी। तब अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने कहा था कि ऑस्ट्रेलिया  के साथ चीन की आक्रामकता, जापान के सेनकाकू द्वीपों के आसपास उत्पीड़न और भारत के साथ सीमा पर तनातनी को लेकर अमेरिका किसी भ्रम में नहीं है।

वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सभी परिस्थितियों से निपटने को तैयार है। जानना आवश्यक है कि वर्ष 2007 में जब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन ने अपना वर्चस्व बढ़ाते हुए पड़ोसी देशों को धमकाना शुरु किया तब जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने एक ऐसे संगठन का प्रस्ताव दिया जिसमें इस सामुद्रिक क्षेत्र में आने वाले ताकतर देश शामिल हो सकें। उनके सुझाव पर क्वाड संगठन मूर्त रुप लिया जिसकी पहली बैठक 2019 में संपन्न हुई।

क्वाड का उद्देश्य प्रशांत महासागर, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया  में विस्तृत नेटवर्क के जरिए जापान और भारत के साथ मिलकर इस क्षेत्र में एक ऐसा वातावरण निर्मित करना है जिससे एक स्वतंत्र, खुली और समावेशी विकास का मार्ग प्रशस्त हो। नेविगेशन की स्वतंत्रता हो तथा ओवर-फ्लाइट एवं आसियान के निर्माण को लेकर काम किया जाए। क्वाड के इस उद्देश्य से चीन बौखालाया हुआ है। उसे लग रहा है कि क्वाड में शामिल देश उसके खिलाफ साजिश रच रहे हैं। वह क्वाड को एक उभरता हुआ ‘एशियाई नाटो’ के तौर पर देख रहा है।

वह जानता है कि क्वाड की मजबूती से इस क्षेत्र में उसकी मनमानी पर नियंत्रण लगेगा और समुद्र के जरिए दुनिया पर राज करने की उसकी मनोकामना पूरी नहीं होगी। यह तथ्य है कि चीन की नजर साउथ चाइना सी पर भी है। वह उस पर कब्जा के लिए मुहिम छेड़ रखा है। यहां नकली द्वीप बनाकर अपने सैनिकों को तैनात कर रहा है। इसी खतरे को भांपते हुए क्वाड के सदस्य देशों ने रणनीति के तहत इस क्षेत्र में संतुलन बनाए रखने की नीति में तेजी लायी है। गौर करें तो क्वाड के सदस्य देशों में कोई ऐसा नहीं है जिसका चीन से तनातनी न हो।

चीन की जापान से नाराजगी की मुख्य वजह सेनकाकू द्वीप है जिस पर वह अधिकार चाहता है। जबकि जापान इसके लिए तैयार नहीं है। इसके अलावा पूर्वी चीन सागर में विवादित द्वीपों के उपर एक हवाई क्षेत्र बनाए जाने के बीजिंग के एकपक्षीय कदम को लेकर भी दोनों देशों के बीच टकराव है। चीन जापान को दुर्लभ मृदा खनिजों के निर्यात में बाधा डाल रहा है जो कि उसके हाई टेक्नोलाजी के काम आता है। इसी तरह दक्षिणी चीन सागर को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तनातनी है। इस तनातनी का मुख्य वजह अक्टुबर 2015 में अमेरिका द्वारा चीन को ताकीद करने के लिए भेजा गया वह गाइडेड मिसाइल है जो चीन के मानव निर्मित आइलैंड्स की 12 मील सीमा तक पहुंच गया था।

इसके अलावा दोनों देशों के बीच अमेरिकी युद्धपोत यूएसएस लेसन सुबी रीफ के 12 मील के दायरे में पहुंचने से भी तनातनी बढ़ी। तब चीन ने नाराजगी जताते हुए अमेरिका को कड़ी हिदायत दी कि वह आगे से ऐसा न करे। लेकिन अमेरिका ने उसकी चेतावनी को दरकिनार कर स्पष्ट किया कि वह इस क्षेत्र में आवाजाही सुनिश्चित करने का प्रयास जारी रखेगा। याद होगा तब अमेरिका के तत्कालीन रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने ऑस्ट्रेलिया  यात्रा के दौरान कहा था कि जहां भी अंतर्राष्ट्रीय कानून इजाजत देते हैं, वहां से अमेरिका उड़ान भरेगा, पोत भेजेगा संचालन करेगा जैसा कि वह पूरी दुनिया में करता है। उसके लिए दक्षिणी चीन सागर अपवाद नहीं होगा।

उल्लेखनीय है कि अमेरिका स्प्रैटली चेन के आसपास बनाए गए द्वीपों के 12 नाॅटिकल माइल जोन में अपनी जंगी जहाज ले जाने को अधिकार समझता है। लेकिन चीन का दावा है कि यह क्षेत्र हजारों वर्षों से उसके आधिपत्य में है। इस क्षेत्र में चीन की हरकतों का अमेरिका को तब भान हुआ जब उसने 2014 में सूबी और मिसचीफ रीफ जो कि हाईटाइड में डूब चुके थे, को आइलैंड में बदलने की कोशिश की। अमेरिका ने चीन के इस प्रयास को दक्षिणी चीन सागर में अपना आधिपत्य बढ़ाने के तौर पर देखा और उसका जमकर विरोध किया।

दक्षिण चीन सागर प्रशांत महासागर का हिस्सा है जिसके 35 लाख वर्ग किलोमीटर के इलाके में कई छोटे-बड़े द्वीप हैं। यह दुनिया का सबसे व्यस्ततम समुद्री व्यापारिक मार्ग है और यहां भारत, अमेरिका तथा जापान समेत कई अन्य देशों के सामरिक व आर्थिक हित दांव पर हैं।

इसी तरह ऑस्ट्रेलिया  और चीन के बीच भी तनातनी चरम पर है। गत वर्ष पहले ऑस्ट्रेलिया  के सिडनी हार्बर में चीन के तीन जंगी जहाज देखे जाने के बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था। यह भी खुलासा हो चुका है कि चीन ऑस्ट्रेलिया ई पायलटों पर लेजर से निशाना रख रहा है।

उधर, कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर भी दोनों देशों के बीच संबंध बिगड़े हुए हैं। इसी दौरान ऑस्ट्रेलिया  पर साइबर हमला हुआ। उसके अस्पताल, स्कूल और सरकारी संस्थानों को हैकरों ने निशाना बनाया। इसमें चीन की संलिप्तता पायी गयी। ऐसे में अगर चीन के खिलाफ क्वाड की गोलबंदी में ऑस्ट्रेलिया  शामिल है तो यूं ही नहीं है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र वैश्विक अर्थव्यवस्था की मुख्य धुरी है और इसकी जनसंख्या विश्व की जनसंख्या के एक तिहाई से ज्यादा और विश्व के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 60 फीसद है। यह विश्व व्यापार का तकरीबन 47 फीसद के करीब है। ऐसे में अगर इस क्षेत्र में चीन अपनी विस्तारवादी नीति पर आगे बढ़ता है तो स्वाभाविक रुप से उसके खिलाफ गोलबंदी तेज होगी।

चूंकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आसियान को भारतीय नीति का केंद्रीय बिंदु माना जाता है ऐसे में भारत की भूमिका स्वतः बढ़ जाती है। ऐसे में भारत के लिए आवश्यक है कि वह इस क्षेत्र में क्वाड जैसे महत्वपूर्ण मंच के जरिए अपने सैन्य व कूटनीतिक प्रभाव का विस्तार कर चीन को करारा जवाब दे। भारत इस दिशा में कार्य कर भी रहा है।

(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)