ऑस्कर में भारतीयता के सुरों की अनुगूँज

वृत्तचित्र में एक जगह बोम्मन कहता है कि – ‘मुझे गर्व है कि मैं पुजारी और महावत दोनों हूँ। मुझे दोनों ही कामों से ख़ुशी मिलती है। हम गणपति भगवान् की पूजा करते हैं। हमारे लिए इन हाथियों को देखना भगवान् को देखने के बराबर है।’ इस फिल्म में ऐसे और भी कई संवाद तथा पूजा आदि के अनेक दृश्य हैं, जो दर्शाते हैं कि यह फिल्म भारतीय संस्कृति के चित्रण को लेकर पूरी तरह से सजग और गंभीर है। बॉलीवुड को यह चीज विशेष रूप से सीखने की जरूरत है।

गत दिनों अमेरिका के लॉस एंजेलिस में 95वें ऑस्कर पुरस्कारों की घोषणा हुई, जिसमें दो पुरस्कार भारत के खाते में भी आए। विश्व भर में धूम मचाने वाली फिल्म आरआरआर के गीत ‘नाटू नाटू को सर्वश्रेष्ठ मौलिक गीत की श्रेणी में ऑस्कर मिला तो वहीं दक्षिण में ही निर्मित वृत्तचित्र ‘द एलीफैंट व्हिस्पेरर्स’ को सर्वश्रेष्ठ लघु वृत्तचित्र की श्रेणी में ऑस्कर दिया गया। यह उपलब्धियां इस मायने में बड़ी हैं कि अबसे पूर्व किसी भारतीय फिल्म को किसी श्रेणी में कभी ऑस्कर प्राप्त नहीं हुआ था।

गांधी और स्लमडॉग मिलेनेयर जैसी फिल्मों के लिए देश को ऑस्कर पुरस्कार अवश्य प्राप्त हुए, लेकिन भारत पर आधारित होते हुए भी ये फ़िल्में भारतीय नहीं थीं। इनके निर्माता-निर्देशक सब विदेशी थे। मगर आज एस. एस. राजामौली कृत आरआरआर और कार्तिकी गोंसाल्वेज व गुनीत मोंगा कृत द एलीफैंट व्हिस्पेरर्स को ऑस्कर मिलने के बाद अब भारतीय सिनेमा में ऑस्कर का सूखा समाप्त हो चुका है।

यह देश के लिए गर्व और प्रसन्नता का विषय है, वहीं भारत की मुख्यधारा सिनेमा होने का दावा करने वाले बॉलीवुड के लिए आत्ममंथन का विषय भी है कि भारी-भरकम बजट और तामझाम के बाद भी वे ऑस्कर लाने लायक सिनेमा क्यों नहीं बना पा रहे ? गीत के नाम पर आज बॉलीवुड के पास पुराने गानों का रिमेक करने का हुनर ही क्यों बचा रह गया है ?

बॉलीवुड के निर्माता-निर्देशक आरआरआर और द एलीफैंट व्हिस्पेरर्स को अगर ध्यान से देखें तो उन्हें काफी हद तक यह समझ में आ जाएगा कि वे कौन-से तत्व हैं जिनसे अलग होने के कारण बॉलीवुड न केवल लोगों की आलोचना झेल रहा है अपितु उसकी अधिकांश फ़िल्में भी सिनेमाघरों में दर्शकों के लिए तरसती नजर आ रही हैं।   

इसी क्रम में यह भी विचारणीय है कि ‘नाटू नाटू और ‘द एलीफैंट व्हिस्पेरर्स’ में क्या ख़ास है कि चरणबद्ध ढंग से चयनित होते हुए ये ऑस्कर के अंतिम दौर में पहुंचकर विजेता बनने में कामयाब रहे। आरआरआर के जिस गीत ‘नाटू नाटू को ऑस्कर मिला है, वो फिल्म में विदेशी पर देशी की विजय के उद्घोष के रूप में आता है।

अंग्रेजों की एक पार्टी चल रही है, जिसमें दो भारतीय मित्र पहुँचते हैं। सालसा और फ्लेमिन्को जैसे विदेशी नृत्यों का दंभ पालने वाले अंग्रेज एक भारतीय का विदेशी नृत्य न आने को लेकर मजाक बनाने लगते हैं। इसके उत्तर में दोनों भारतीय ठेठ देशी नाच प्रस्तुत कर पूरी महफ़िल लूट लेते हैं। उनके समक्ष कोई अंग्रेज देशी नाच में ठहर नहीं पाता। इस गीत में नाचते जूनियर एनटीआर और राम चरण को देखकर ऐसा लगता है जैसे परदे पर बिजली दौड़ रही हो। गीत के बोल जितने तड़कते-फड़कते और माटी की महक लिए हुए हैं, वैसा ही इसपर फिल्माया गया नृत्य भी है। यह गीत सही मायने में ऑस्कर जैसे सम्मान का हकदार था, जो इसने प्राप्त भी किया।  

अब द एलीफैंट व्हिस्पेरर्स की बात करें तो मात्र चालीस मिनट की यह फिल्म अपने परिवार से बिछड़े एक रघु नामक हाथी के बच्चे और एक बुजुर्ग आदिवासी दंपत्ति बोम्मन व बेल्ली के बीच उपजे प्रेम और लगाव की खूबसूरत  कहानी है। ये दंपत्ति अपने बच्चे की तरह उसका लालन-पालन करते हैं। इस खूबसूरत वृत्तचित्र के माध्यम से हाथियों के जीवन की कठिनाइयों तथा उनके संरक्षण में आने वाली चुनौतियों की भी बेहद संवेदनशील प्रस्तुति देखने को मिलती है।

हाथियों के खाने-पीने से लेकर बोली-व्यवहार तक छोटी-छोटी बारीकियों को फिल्म में बहुत सुंदर ढंग से दिखाया गया है। फिल्म में दक्षिण भारतीय जंगलों के मनोरम दृश्यों का भी सुंदर संयोजन किया गया है। विशेष यह भी है कि इस पूरे वृत्तचित्र में भारतीय संस्कृति और परंपरा का अत्यंत गरिमामय चित्रण हुआ है। फिल्म में रघु के अस्तित्व को बचाने के लिए दक्षिण भारतीय जोड़ा तमाम कोशिशें करता है। वे न सिर्फ रघु को सुरक्षा देते हैं, बल्कि उसे भगवान का दर्जा देते हुए उसकी पूजा भी करते हैं।

वृत्तचित्र में एक जगह बोम्मन कहता है कि – ‘मुझे गर्व है कि मैं पुजारी और महावत दोनों हूँ। मुझे दोनों ही कामों से ख़ुशी मिलती है। हम गणपति भगवान् की पूजा करते हैं। हमारे लिए इन हाथियों को देखना भगवान् को देखने के बराबर है।’ इस फिल्म में ऐसे और भी कई संवाद तथा पूजा आदि के अनेक दृश्य हैं, जो दर्शाते हैं कि यह फिल्म भारतीय संस्कृति के चित्रण को लेकर पूरी तरह से सजग और गंभीर है। बॉलीवुड को यह चीज विशेष रूप से सीखने की जरूरत है। 

उपर्युक्त वर्णनों का सारांश यही है कि ‘नाटू नाटू और ‘द एलीफैंट व्हिस्पेरर्स’ को ऑस्कर मिलने से विश्व पटल पर भारतीयता के भावों की अनुगूंज हुई है। इसके बाद भारतीय सिनेमा को देखने के विदेशी नजरिये में बदलाव आने की उम्मीद है। अमृतकाल की इस पावन वेला में प्राप्त हुई यह उपलब्धि न केवल राष्ट्र के आत्मविश्वास को बल देगी अपितु हमारी वैश्विक प्रतिष्ठा को भी और अधिक सुदृढ़ करेगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)