विपक्ष की नकारात्मक राजनीति के बावजूद मानसून सत्र की रिकॉर्ड सफलता सरकार की बड़ी कामयाबी है!

पिछले चार वर्षों में केंद्र की भाजपानीत एनडीए सरकार ने हर विषय पर विपक्ष के साथ सार्थक चर्चा की पहल की है। विषय नोटबंदी का रहा हो, जीएसटी का हो, ब्लैकमनी का हो, बैंक एनपीए का हो या वर्तमान में चल रहा एनआरसी का विषय हो, सभी विषयों पर सरकार चर्चा के लिए सदन के अंदर तैयार रही है, लेकिन विपक्ष हंगामा करने में लगा रहा है। विपक्ष की इस नकारात्मक राजनीति के बावजूद मानसून सत्र में कामकाज का स्तर रिकॉर्ड ढंग से बेहतर रहना सरकार की बड़ी सफलता है।

संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है, जहाँ जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि जनता से सरोकार रखने वाले विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर सार्थक बहस करके उनका समाधान निकालते हैं। फिर चाहे वह राज्यसभा हो अथवा लोकसभा, दोनों सदनों में सत्तापक्ष तथा विपक्ष के बीच नोक-झोंक, सहमति-असहमति की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है।

गौरतलब है कि मौजूदा सरकार के गठन के बाद से बीते चार वर्षों में अनेक मुद्दों पर संसद की कार्यवाही विपक्ष के हंगामे के कारण स्थगित होती रही है। लेकिन इस मामले में संसद का मानसून सत्र सार्थक एवं सफलतम सत्र सिद्ध हुआ है। इस दौरान लोकसभा ने करीब दो दशक के कामकाज का पुराना रिकॉर्ड धवस्त करते हुए कामकाज की एक नई मिसाल स्थापित की है।

पिछले 18 सालों का सबसे सफल सत्र रहा मानसून सत्र

चूंकि, इससे पहले शीतकालीन और बजट सत्र भी लगभग-लगभग विपक्षी हंगामे की भेंट चढ़ गया था। इसलिए भी यह आशंका थी कि मानसून सत्र भी जनता के हितों के परिप्रेक्ष्य में अनुपयोगी ही न रह जाए। लेकिन इसके विपरीत मानसून सत्र में लोकसभा में 21 और राज्यसभा में 14 महत्वपूर्ण विधेयक पारित हुए हैं। लोकसभा में कार्यसम्बन्धी उत्पादकता जहां 110 प्रतिशत रही तो वहीं राज्यसभा में भी 66 प्रतिशत काम हुआ।

इस सत्र में भगोड़ा आर्थिक अपराधी बिल, राष्ट्रीय खेलकूद विश्वविद्यालय बिल, भ्रष्टाचार निवारण संशोधन बिल, संपत्ति अधिग्रहण बिल, मानव तस्करी रोकथाम बिल, ओबीसी कमीशन बिल, एससी-एसटी संशोधन बिल समेत आम लोगों के हितों से जुड़े और कई बिल सदन द्वारा पास करवाने में मोदी सरकार ने सफलता पाई है।

कुल मिलाकर अगर देखें तो यह सत्र सामाजिक न्याय प्रदान करने वाला सत्र साबित हुआ है, जिसमें राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने संबंधी संशोधन विधेयक तथा एससी-एसटी अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक के माध्यम से गरीब, वंचित व पिछड़े वर्ग को न्याय देने की दिशा में सरकार द्वारा जरूरी कदम उठाए गए हैं।

गौरतलब है कि संसद को चलाने की जिम्मेदारी सत्तापक्ष की होती है, लेकिन अगर विपक्षी दल संसद के भीतर आने से पूर्व ही तय करके आएं कि चाहे कुछ भी हो हम यह बिल या संशोधन पारित नहीं होने देंगे और उसमें अड़ंगा डालेंगे तो इसका एक ही अर्थ होता है कि देशहित को दरकिनार करते हुए अपने राजनीतिक लाभ को ध्यान में रखकर रणनीति तैयार की जा रही है। इसका सबसे सटीक उदाहरण विपक्ष द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव था। यह अविश्वास प्रस्ताव कांग्रेस मुख्यतः अपने निजी स्वार्थ, घमंड और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ अपनी नफरत के कारण ही  लेकर आई थी।

कांग्रेस के अहंकार का सूचक साबित हुआ अविश्वास प्रस्ताव

कांग्रेस पार्टी का अहंकार तभी उजागर हो गया था, जब उनकी पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने कहा कि “कौन कहता है हमारे पास संख्या नहीं है?” जाहिर है, यह अविश्वास प्रस्ताव कांग्रेस पार्टी की सत्ता के प्रति लालसा और उसपर अपना एकाधिकार समझने के अहंकार को दर्शाता है, जिसने उसे सवा सौ करोड़ देशवासियों के जनादेश के खिलाफ जाकर मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए मजबूर किया।

बेशक मानसून सत्र सबसे सफल सत्र रहा जिसमें सामाजिक सरोकार से जुड़े कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित हुए। लेकिन विडंबना यह है कि मुस्लिम समाज के हितैषी होने का दावा करने वाले विपक्षी दलों ने मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने वाले तीन तलाक बिल को पास नहीं होने दिया। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इन तथाकथित मुस्लिम हितैषी दलों को क्या सिर्फ मुसलमानों का वोट ही दिखाई देता है, उनका हित नहीं? राफेल डील पर निरंतर झूठ फैलाकर विरोध प्रदर्शन कर तीन तलाक बिल को विपक्ष ने संसद में पास नहीं होने दिया।

बहरहाल, पिछले चार वर्षों में केंद्र की भाजपानीत एनडीए सरकार ने हर विषय पर विपक्ष के साथ सार्थक चर्चा की पहल की है। विषय नोटबंदी का रहा हो, जीएसटी का हो, ब्लैकमनी का हो, बैंक एनपीए का हो या वर्तमान में चल रहा एनआरसी का विषय हो, सभी विषयों पर सरकार चर्चा के लिए सदन के अंदर तैयार रही है, लेकिन विपक्ष हंगामा करने में लगा रहा है। विपक्ष की इस नकारात्मक राजनीति के बावजूद मानसून सत्र में कामकाज का स्तर रिकॉर्ड ढंग से बेहतर रहना सरकार की बड़ी सफलता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)