गायत्री प्रजापति को बचाना कौन-सी क़ानून व्यवस्था है, अखिलेश जी ?

यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री और अमेठी विधानसभा क्षेत्र से सपा प्रत्याशी गायत्री प्रजापति जो पहले से ही खनन घोटाले सम्बन्धी आरोपों से घिरे थे, पर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का आरोप सामने आना सपा की मुश्किलें बढ़ा सकता है। दरअसल मामला कुछ यूँ है कि विगत दिनों एक महिला द्वारा गायत्री प्रजापति पर यह आरोप लगाया गया है कि २०१४ में उन्होंने उसे प्लाट दिलाने के बहाने अपने लखनऊ स्थित आवास पर बुलाया जहां चाय में नशीला पदार्थ पिलाकर उसका अश्लील विडियो बनाया गया। फिर अश्लील विडियो के जरिये उसे ब्लैकमेल कर गायत्री प्रजापति व उनके सहयोगी दो साल तक उसके साथ यौन शोषण करते रहे। वो अबतक चुप क्यों रही और अभी अचानक सामने क्यों आई, इस सवाल पर महिला का कहना है कि अपने ऊपर होने वाले जुल्मों को तो वो सहती रही, पर जब गायत्री प्रजापति और उनके आदमियों ने उसकी बेटी पर भी अपनी बुरी नज़र डालनी शुरू की तो उसके लिए चुप रहना संभव नहीं रह गया और उसे सामने आना पड़ा। पीड़िता द्वारा जिस तरह से पूरे ठोस और तथ्यात्मक ढंग से गायत्री प्रजापति पर यह आरोप लगाए गए हैं, उसे देखते हुए ये आरोप प्रथमद्रष्टया सही प्रतीत होते हैं। मामले से सम्बंधित एक-एक स्थान, समय और व्यक्तियों को लेकर पीड़िता द्वारा जिस तरह से जानकारी दी गयी है, उसे देखते हुए उसके आरोपों में दम नज़र आता है। लेकिन, यह दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि इस पीड़ित महिला की प्राथमिकी तक दर्ज करने से यूपी पुलिस ने इंकार कर दिया। मजबूरन उसे सर्वोच्च न्यायालय में जाना पड़ा और तब जाके न्यायालय के आदेश पर प्राथमिकी दर्ज हुई।

अखिलेश यादव को बताना चाहिये कि क्या इसी तरह की क़ानून व्यवस्था वे प्रदेश में कायम करेंगे जिसमें एक बलात्कार पीड़िता को प्राथमिकी दर्ज कराने तक के लिए सर्वोच्च न्यायालय से गुहार लगानी पड़े ? क्या ऐसी ही व्यवस्था के बलबूते वे महिला सुरक्षा के लिए बड़े-बड़े वादे और दावे करते नज़र आते हैं ? पत्नी डिम्पल यादव को चुनाव प्रचार के मैदान में उतारकर सपा को महिलाओं की समर्थक पार्टी के रूप में प्रस्तुत करने का स्वांग रच रहे अखिलेश यादव और उनकी सरकार की महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता की कलई इस ताज़ा गायत्री प्रजापति प्रकरण में एकबार फिर खुलकर सामने आ गयी है। अखिलेश यादव, इस प्रकरण में उठने वाले सवालों की आंच से बच नहीं सकते। जवाब तो उन्हें देना ही होगा, वर्ना चुनाव में जनता ढंग से जवाब दे देगी।

सोचकर ही कितना विचित्र और शर्मनाक लगता है कि बलात्कार जैसे संगीन मामले में एक महिला को प्राथमिकी तक दर्ज कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय से आदेश लाना पड़ रहा है। लेकिन, इससे भी अधिक त्रासद ये है कि प्राथमिकी दर्ज होने के बाद भी ऐसे गंभीर आरोप के बावजूद यूपी पुलिस ने गायत्री प्रजापति की गिरफ्तारी तो दूर उनसे सामान्य पूछताछ तक करने की ज़रूरत नहीं समझी। जबकि नियम तो यह कहता है कि इस तरह के संगीन और प्रथमद्रष्टया गलत नहीं प्रतीत होने वाले मामले में आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार कर उससे पूछताछ कर मामले की तह तक जाने की कोशिश की जाए। मगर, यूपी पुलिस तो इस मामले में ऐसे हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई है, जैसे कि मंत्रीजी पर कार्रवाई करने के लिए किसी विशेष मुहूर्त की प्रतीक्षा कर रही हो। कहने की ज़रूरत नहीं कि इस मामले में यूपी पुलिस का रवैया बेहद ढुलमुल और गायत्री प्रजापति को बचाने का ही नज़र आ रहा है। पुलिस के इस सुस्त रवैये के कारण अब सर्वोच्च न्यायालय में गायत्री प्रजापति की गिरफ़्तारी का आदेश देने के लिए पुनः याचिका दी गयी है। अब शायद न्यायालय का आदेश आने पर ही प्रजापति पर कोई कार्रवाई होती नज़र आये।

वैसे, यूपी पुलिस के इस ढुलमुल रवैये को समझना कोई राकेट साइंस नहीं है। आखिर वे उसी सपा सरकार के मंत्री और विधायक प्रत्याशी हैं, जिसके सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव ने कभी बलात्कारियों के विषय में ‘लड़के हैं, गलती हो जाती है’ का ज्ञान दिया था। बस प्रजापति से भी शायद ‘गलती’ हो गयी। उसपर प्रजापति तो मुलायम के अतिप्रिय होने के साथ-साथ अब अखिलेश यादव के भी बेहद नज़दीकी हो गए हैं। इतने नज़दीकी कि कभी जिन अखिलेश यादव ने उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया था, आज वे खुद उनके लिए रैली में वोट मांगते नज़र आ रहे हैं। अब यूपी में जिस नेता के प्रचार के लिए खुद अखिलेश उतर रहे हों और हर आरोप पर मीडिया के समक्ष उसका बचाव भी कर रहे हों, ऐसे नेता पर हाथ डालने की अपेक्षा यूपी पुलिस से करना बेमानी ही होगी। कहने की आवश्यकता नहीं कि गायत्री प्रजापति को यूपी में सत्ता का पूरा संरक्षण मिला हुआ है। इसी कारण पहले तो उनके ख़िलाफ़ एक प्राथमिकी तक दर्ज करने में यूपी पुलिस हिचकती रही, लेकिन जब सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर मजबूरी में प्राथमिकी दर्ज करनी पड़ी तो प्राथमिकी दर्ज करके कान में रुई डालकर सोई पड़ी है।

गायत्री प्रजापति सपा के अमेठी क्षेत्र से विधायक प्रत्याशी हैं, ऐसे में उनपर कानूनी कार्रवाई होने से उनकी चुनावी गतिविधियों के प्रभावित होने की आशंका अखिलेश यादव को होगी। इसी कारण बलात्कार जैसे संगीन आरोप के बावजूद उनपर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। इन सबके बीच यूपी में क़ानून व्यवस्था का जो मखौल बन रहा है, उसका जवाब अखिलेश यादव को देना चाहिए। अपने घोषणापत्र में यूपी में क़ानून व्यवस्था को चाक-चौबंद करने और विशेष रूप से महिलाओं की सुरक्षा के लिए वादे करने वाले अखिलेश यादव को बताना चाहिये कि क्या इसी तरह की क़ानून व्यवस्था वे प्रदेश में कायम करेंगे जिसमें एक बलात्कार पीड़िता को प्राथमिकी तक दर्ज कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय से गुहार लगानी पड़े ? क्या ऐसी ही व्यवस्था के बलबूते वे महिला सुरक्षा के लिए बड़े-बड़े वादे और दावे करते नज़र आते हैं ? पत्नी डिम्पल यादव को चुनाव प्रचार के मैदान में उतारकर सपा को महिलाओं की समर्थक पार्टी के रूप में प्रस्तुत करने का स्वांग रच रहे अखिलेश यादव और उनकी सरकार की महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता की कलई इस ताज़ा मामले में एकबार फिर खुलकर सामने आ गयी है। कहना न होगा कि अखिलेश यादव, गायत्री प्रजापति प्रकरण में उठने वाले सवालों की आंच से बच नहीं सकते। जवाब तो उन्हें देना ही होगा, वर्ना चुनाव में जनता जवाब दे देगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)