अमेरिका में सनातन संस्कृति की गूँज

अमेरिका में हर वर्ष हजारों लोग सनातन हिंदू संस्कृति को अपना रहे हैं। सबसे अच्छी बात यह कि अमेरिकी लोग सनातन हिंदू संस्कृति को एक धर्म मानने के अलावा एक बेहतरीन जीवन शैली के रूप में भी देख रहे हैं। यहीं कारण है कि लोगों में योग, सूर्य नमस्कार, गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र के प्रति रुचि बढ़ी है। अमेरिका के न्यूयार्क शहर के व्यस्ततम इलाके टाइम्स स्क्वायर में अब हर वर्ष योग कार्यक्रम होता है। इस कार्यक्रम में लोगों की संख्या लाखों में होती है।

यह विडंबना है कि जहां भारत में कुछ राजनीतिक दलों द्वारा सनातन को मिटाने का संकल्प जाहिर किया जा रहा है वहीं दुनिया के महाशक्ति देश अमेरिका के कई राज्यों में सनातन हिंदू धर्म के शास्वत मूल्य, प्रतिमान, इतिहास और संस्कृति की उच्चतर भावनाओं को सहेजने के लिए अक्टूबर  महीने को हिंदू विरासत महीना मनाने का संकल्प लिया गया है।

इन राज्यों में टेक्सास, फ्लोरिडा, न्यूजर्सी, ओहियो और मैसाचुसेट्स जैसे कई महत्वपूर्ण राज्य हैं। अमेरिकन गवर्नरों द्वारा जारी हिंदू माह संबंधी घोषणाओं के मुताबिक अक्टूबर माह में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे जिनके जरिए हिंदू संस्कृति, परंपरा और इतिहास को साझा किया जाएगा।

इन घोषणाओं को लेकर अमेरिकन नागरिकों और जनप्रतिनिधियों में अभूतपूर्व उत्साह है। वे इसे दोनों देशों के सांस्कृतिक विरासत में मिठास घोलने और एकदूसरे की संस्कृति को आदर-सम्मान देने की पहल के तौर पर देख रहे हैं। अमेरिकन सांसदों व सिनेटरों की मानें तो सनातन हिंदू धर्म ने अमेरिका की सभ्यता, संस्कृति, समृद्धि और विकास को न सिर्फ प्रभावित किया है बल्कि समय-समय पर भारतीय मनीषियों ने आध्यात्मिक चिंतन और ऊर्जा के जरिए अमेरिकी समाज को जागृत किया है।

विचार करें तो अमेरिका में हिंदू संस्कृति को सहेजने के उदार भाव से परिलक्षित होता है कि आज के बदलते दौर में जहां धर्म व पंथ को लेकर वैश्विक समाज टकराव के मुहाने पर है, चारो ओर कट्टरता और हिंसा का माहौल है, वहीं सनातन हिंदू संस्कृति अपने सहिष्णु विचारों और मूल्यों के जरिए संसार का मार्गदर्शन कर रही है।

शताब्दियों पहले अमेरिका महाद्वीप हिंदू संस्कृति से समृद्ध और आबद्ध रहा है। कई अमेरिकन इतिहासकारों का तर्क है कि सैकड़ों साल पहले अमेरिका महाद्वीप में भारतीय आर्यों ने ही बस्तियां बनायी और सभ्यता को आयाम दिया। उल्लेखनीय है कि अमेरिका के रेड इंडियन वहां के मूल निवासी हैं और इतिहासकारों का मानना है कि उनका संबंध भारत से है।

कुछ अमेरिकी इतिहासकारों का यह भी कहना है कि सनातन हिंदू संस्कृति यहां पर हजारों साल पहले पहुंच गयी थी। उनके मुताबिक यहां हिंदू बस्तियों का निर्माण महाभारत काल में हुआ। मध्य अमेरिका के मोस्कुइटीए में शोध करने वाले विद्वान चाल्र्स लिन्गद्वेर्ग ने एक ऐसे स्थान की खोज की है जिसका नाम उन्होंने ‘ला स्यूदाद ब्लैंका’ है। इसका स्पेनिश में अर्थ ह्नाइट सिटी होता है। यहां के लोग बंदरों की पूजा करते हैं। चाल्र्स और उन जैसे कई अन्य विद्वानों ने अपने तर्कों के आधार पर साबित करने की कोशिश की है कि यह वहीं स्थान है जहां महावीर हनुमान का साम्राज्य था।

बहरहाल सच क्या है यह तो विमर्श का विषय है लेकिन इतना स्पष्ट है कि अमेरिका में हिंदू सनातन संस्कृति की गौरवगाथा का इतिहास हजारों साल पुराना है। ऐसे में अगर अमेरिकन समाज और सरकार सनातन हिंदू संस्कृति के उदार मूल्यों को सहेजने और संवारने का बीड़ा उठाए हैं तो यह न सिर्फ अमेरिका के लिए बल्कि समग्र मानवता के लिए कल्याणकारी है।

अमेरिका की 32 करोड़ की आबादी में हिंदू आबादी महज एक प्रतिशत के आसपास है। इनमें अधिकांश भारतवासी हैं जो अपनी संस्कृति के उच्चतर मूल्यों के प्रति समर्पण के साथ अमेरिका की समृद्धि और विकास के लिए दृढ़संकल्पित हैं।

अन्य समूहों के मुकाबले सनातन हिंदू समाज काफी पढ़ा-लिखा है और अमेरिकी राष्ट्र-निर्माण में उसकी भूमिका अग्रणी और सराहनीय है। भारत के अलावा नेपाल, श्रीलंका, भूटान, मालदीव, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, म्यांमार, इंडोनेशिया के बाली द्वीप, कैरेबियन द्वीपों, फीजी और मॉरिशस के हिंदू भी यहां आकर बसे हैं और अपने सनातन मूल्यों के प्रति समर्पित हैं।

गौर करें तो विगत दशकों में सांस्कृतिक मूल्यों की निकटता के कारण भारत और अमेरिका दोनों देशों के बीच नजदीकियां बढ़ी हैं। यह नजदीकियां अब आर्थिक-वाणिज्यिक कारोबार, सैन्य युगलबंदी और वैश्विक मंचों पर कूटनीतिक-रणनीतिक साझेदारी के नए मुकाम पर पहुंच चुकी हैं। इसका मूल कारण अमेरिका की संस्कृति में निहित सनातन हिंदू संस्कृति के वे बीज हैं जो प्रस्फुटित हो रहे हैं।

इस बीज को 1893 में स्वामी विवेकानंद ने सनातन विचारों की उर्वरता से वटवृक्ष का आकार दिया जिससे अमेरिका समेत संपूर्ण विश्व सम्मोहित हुआ। तब स्वामी जी ने अमेरिका के शहर शिकागो में विश्व धर्म संसद को संबोधित किया और यहां दो वर्ष बिताए। उन्होंने अनेक स्थानों जैसे शिकागो, डेट्रायट, बाॅस्टन और न्यूयार्क इत्यादि में अपने व्याख्यान दिए।

तब स्वामी जी ने अपने विचारों से अतीत के अधिष्ठान पर वर्तमान का और वर्तमान के अधिष्ठान पर भविष्य का बीजारोपण कर अमेरिका समेत पूर विश्व की आत्मा को चैतन्यता से भर दिया। उनके ऐतिहासिक भाषण से अमेरिकावासियों के मन में हिंदू धर्म के प्रति जो अनुरक्ति हुई आज वह उनके लिए प्रेरणा का काम कर रही है।

1902 में स्वामी रामतीर्थ जी दो वर्षों तक अमेरिका में रहकर वेदांत दर्शन पर व्याख्यान दिए। 1920 में परमहंस योगानंद ने बाॅस्टन में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक उदारवादी कांग्रेस में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इन मनीषियों के महान विचारों से उत्साहित हिंदू समाज ने सनातन संस्कृति के प्रतीकों को गढ़ना शुरु कर दिया।

इससे प्रेरित होकर वेदांत समाज ने 1905 में सैन फ्रांसिस्को में पहले हिंदू मंदिर का निर्माण किया। गौर करें तो संयुक्त राज्य अमेरिका में सबसे पुराना पारंपरिक हिंदू मंदिर कैलिफोर्निया राज्य के कानकाॅर्ड शहर में स्थित शिव मुरुगन मंदिर है जिसे पलानीसामी मंदिर के रुप में जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 1957 में हुआ जिसे जनता द्वारा निर्वाचित सदस्यों द्वारा चलाया जाता है।

अमेरिका में स्थित स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर (साभार : Today Samachar)

वर्तमान समय में अमेरिका में 500 से अधिक हिंदू मंदिर हैं। इनमें तकरीबन 135 मंदिर न्यूयार्क क्षेत्र में अवस्थित हैं। अमेरिका में रह रहे सनातन हिंदू समुदाय बड़े हर्षोल्लास के साथ अपने त्यौहारों-दशहरा, दीवाली, नवरात्र और छठ पूजा को मनाता है। उदार विचारधारा और शांतिप्रियता के कारण सनातन हिंदू धर्म अमेरिका में खूब लोकप्रिय हो रहा है और लोगों में इस धर्म के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है।

अमेरिका में हर वर्ष हजारों लोग सनातन हिंदू संस्कृति को अपना रहे हैं। सबसे अच्छी बात यह कि अमेरिकी लोग सनातन हिंदू संस्कृति को एक धर्म मानने के अलावा एक बेहतरीन जीवन शैली के रूप में भी देख रहे हैं। यहीं कारण है कि लोगों में योग, सूर्य नमस्कार, गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र के प्रति रुचि बढ़ी है। अमेरिका के न्यूयार्क शहर के व्यस्ततम इलाके टाइम्स स्क्वायर में अब हर वर्ष योग कार्यक्रम होता है। इस कार्यक्रम में लोगों की संख्या लाखों में होती है।

तथ्य यह भी कि अमेरिकी यहूदियों और ईसाईयों में हिंदू सनातन संस्कृति के प्रति बढ़ रहे आकर्षण ने उन्हें हिंदू सनातन प्रतीकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया है। वे हाथों में कलावा बांधने, गले में कंठीमाला धारण करने के साथ-साथ हिंदू मंदिरों में भी जा रहे हैं। अभी गत वर्ष देखा गया कि अमेरिकी सीनेट तुलसी गैबार्ड ने हिंदुओं के पवित्रतम ग्रंथ गीता पर हाथ रखकर शपथ ग्रहण की। हॉलीवुड के लोकप्रिय अभिनेता सिल्वेस्टर स्टेलोन ने भारत में अपने बेटे का हिंदू परंपराओं से श्राद्ध किया।

अमेरिका में फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग के बारे में कहा जाता है कि उन्हें सफलता तब मिली जब वे एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब की सलाह पर भारत स्थित नैनीताल में बाबा नीम करौली के आश्रम में पधारे। बाबा नीम करौली को हनुमान जी का अवतार माना जाता है।

गौर करें तो हर वर्ष हजारों अमेरिकी नागरिक भारत आते हैं और सनातन हिंदू संस्कृति के उदार मूल्यों से प्रभावित होकर हिंदू संस्कृति में रच-बस जाते हैं। यह आकर्षण ही दुनिया की महाशक्ति अमेरिका को सनातन हिंदू मूल्यों को सहेजने के प्रति प्रेरित कर रहा है।

(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)