मोदी सरकार के नेतृत्व में एशियाई महाशक्ति के रूप में उभरता भारत

भारत के 69 वें गणतंत्र दिवस समारोह में इन सभी आसियान देशों के नेताओं ने शिरकत की जो कि अपने आप में ऐसा पहला ही अवसर था। कहना न होगा कि केंद्र की भाजपा सरकार ने एशिया के सभी देशों को एक सूत्र में बांधने का काम शुरू कर दिया है। चूंकि चीन सदा से छोटे देशों को डराता धमकाता रहा है, ऐसे में अब एशिया में चीन के बढ़ते दबदबे के खिलाफ अन्‍य देश भारत के सशक्त नेतृत्व में संगठित होना शुरू हो रहे हैं।

यह सप्‍ताह भारत के विदेशी मामलों के लिए बहुत अच्‍छा रहा। अव्‍वल तो दावोस में हुए विश्‍व इकानामिक फोरम में भारत की सशक्‍त मौजूदगी दिखी तो दूसरी तरफ भारत की मेजबानी में आसियान सम्‍मेलन का सफलतापूर्वक आयोजन हुआ। राजधानी स्थित राष्‍ट्रपति भवन में हुए इस सम्‍मेलन में आसियान नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परस्‍पर हितों के मुद्दों पर वार्ता की। इस भारत-आसियान शिखर सम्‍मेलन में सिंगापुर, ब्रुनेई, वियतनाम, कंबोडिया, म्‍यांमार, फिलीपींस व थाईलैंड आदि देशों के प्रमुख शामिल हुए।

आसियान देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

आसियान का पूरा नाम एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेंशस (Association of South east Asian Nations) है, जिससे मिलकर शब्‍द आसियान (ASEAN) बना है। इसे एशियाई राष्‍ट्र संघ कहा जाता है। इसका गठन वर्ष 1967 में इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड द्वारा राजनीतिक और आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए किया गया था। इस वर्ष आसियान देशों के साथ भारत की साझेदारी की रजत जयंती वर्ष पूरा हुआ है।  

एशिया में वैसे तो सब ठीक ही चल रहा है, लेकिन समय-समय पर चीन से भारत की टकराहट होती रहती है। चाहे वह चीन द्वारा डोकलाम सीमा पर अधिपत्‍य जमाने की बात हो या आतंकवादियों का संरक्षण करना हो या एनएसजी में भारत को शामिल न करने की बात हो, चीन अक्सर भारत से उलझता रहता है। इस सम्‍मेलन का एक मुख्‍य उद्देश्‍य चीन को साधना भी था। चीन के साथ बिगड़ते संबंधों के चलते अब भारत अपनी एक्ट ईस्ट नीति को जमाने में लगा है, ऐसे में कूटनीतिक दृष्टि से यह शिखर सम्‍मेलन बहुत महत्‍वपूर्ण था। इस पर एशिया के अलावा अन्‍य महाद्वीपों की भी निगाहें थीं, क्‍योंकि वे देखना चाहते थे कि एशिया के सबसे सशक्‍त संगठन आसियान के सदस्‍यों के साथ मिलकर भारत क्‍या वार्ता करता है।

यहां यह उल्‍लेख करना अहम होगा कि भारत के 69 वें गणतंत्र दिवस समारोह में इन सभी आसियान देशों के नेताओं ने शिरकत की जो कि अपने आप में ऐसा पहला ही अवसर था। कहना न होगा कि केंद्र की भाजपा सरकार ने एशिया के सभी देशों को एक सूत्र में बांधने का काम शुरू कर दिया है। चूंकि चीन सदा से छोटे देशों को डराता धमकाता रहा है, ऐसे में अब एशिया में चीन के बढ़ते दबदबे के खिलाफ अन्‍य देश भारत के सशक्त नेतृत्व में संगठित होना शुरू हो रहे हैं। जहां तक रक्षा क्षेत्र की बात है, इन देशों में भारत अपनी संभावनाएं देख रहा है।

गणतंत्र दिवस परेड में शामिल हुए आसियान देशों के राष्ट्राध्यक्ष

आसियान में दक्षिण चीन सागर के मसले पर मुख्‍य रूप से वार्ता प्रस्‍तावित थी, क्‍योंकि यह लंबे समय से विवादित मामला बना हुआ है। निश्‍चित ही भारत के प्रति एशियाई देशों का यह समर्थन पहले कभी देखने व सुनने को नहीं मिला। पूर्ववर्ती यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार के समय आसियान देशों व इनकी बैठक का जि़क्र भी सुनने को नहीं मिलता था। आसियान की कोई चर्चा ही नहीं सुनाई देती थी, लेकिन मोदी सरकार ने पूर्वी एशियाई देशों के इस संगठन में नयी जान फूंकने का काम किया है।

आसियान के समस्‍त देशों के प्रमुख भारत को प्रशांत क्षेत्र में अधिक सक्रियता से देखने के इच्‍छुक हैं। गौरतलब है कि यह वही क्षेत्र है जहां चीन लगातार अपना सैन्‍य दखल बढ़ा रहा है। अच्‍छी बात यह है कि आसियान देशों के प्रमुखों ने इस क्षेत्र में भारत की भूमिका का समर्थन किया है। इससे बड़ी सफलता की बात क्‍या हो सकती है। हालांकि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निष्‍पक्षता एवं समानतावादी सकारात्‍मक दृष्टि है कि वे भारत व आसियान के रिश्‍तों को तुलना के योग्‍य नहीं मानते। उनका मानना है कि सारे राष्‍ट्र स्‍वायत्‍त हैं एवं इस बात में उनके क्षेत्रफल के आकार का कोई लेनादेना नहीं है। यह बात उचित है, लेकिन यह भी सत्य है कि इन सब देशों का नेतृत्व भारत के ही पास रहेगा।

वे कहते हैं कि व्‍यापार के लिए खुले तौर पर उनका सभी को समर्थन है। चूंकि, इस आयोजन में भारत की मेजबानी एक ऐतिहासिक अवसर था, ऐसे में पीएम मोदी के उक्‍त विचार इन दस देशों की स्‍थानीय भाषाओं में 25 से अधिक समाचार पत्रों में छपे हैं। स्‍वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस आयोजन पर प्रसन्‍नता व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि आसियान देशों के साथ भारत के संबंध बने रहना चाहिये। ये समीकरण व्‍यापार ही नहीं, कला, साहित्‍य, संस्‍कृति, धर्म आदि क्षेत्रों में निखरकर सामने आना चाहिये।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि आसियान सम्‍मेलन के सफल आयोजन के बाद अब भारत विश्‍व में एशिया की एक बड़ी ताकत बनकर उभरा है। निस्संदेह इससे भारत के वैश्विक कद में भी वृद्धि हुई है। एशिया में अपने इस प्रभाव के माध्यम से कहीं न कहीं भारत द्वारा एशियाई महाशक्ति के रूप में अपने उभार पर भी विश्व बिरादरी का ध्यान खींचने की कोशिश की गयी है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)