विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना भारत

भारतीय अर्थव्यवस्था जिस दर से आगे बढ़ रही है, उसी रफ़्तार से आगे बढ़ते हुए वह ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है। उल्लेखनीय है कि  भारतीय अर्थव्यवस्था 10 साल पहले दुनिया में 11वें पायदान पर थी। लेकिन अब भारतीय अर्थव्यवस्था से आगे सिर्फ अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी की अर्थव्यवस्था है। भारतीय स्टेट बैंक के कोर्पोरेट केंद्र, मुंबई में कार्यरत आर्थिक अनुसंधान विभाग के एक अनुसंधान के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था 2029 तक दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकती है।

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 13.5 प्रतिशत रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था जिस दर से आगे बढ़ रही है, उसी रफ़्तार से आगे बढ़ते हुए वह ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है। उल्लेखनीय है कि  भारतीय अर्थव्यवस्था 10 साल पहले दुनिया में 11वें पायदान पर थी। लेकिन अब भारतीय अर्थव्यवस्था से आगे सिर्फ अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी की अर्थव्यवस्था है। भारतीय स्टेट बैंक के कोर्पोरेट केंद्र, मुंबई में कार्यरत आर्थिक अनुसंधान विभाग के एक अनुसंधान के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था 2029 तक दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकती है।

चालू वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रही। कोरोना महामारी के दौरान इस क्षेत्र का लगातार अच्छा प्रदर्शन रहा है। निर्माण क्षेत्र में रिकॉर्ड 16.8 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है और सितंबर तिमाही में भी इसमें तेजी बने रहने की संभावना है। सेवा क्षेत्र में 17.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है। हालांकि, कारोबार, होटल, परिवहन, पर्यटन आदि क्षेत्रों पर अभी भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि ये क्षेत्र अभी भी महामारी से पहले वाली अवस्था में नहीं पहुँच सके हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति की सहनशीलता सीमा को 5 से 6 प्रतिशत के बीच रखा है।  जुलाई 2022 में खुदरा भाव पर आधारित महंगाई दर 6.71 प्रतिशत थी। चालू वित्त वर्ष में भारतीय रिजर्व बैंक ने खुदरा महंगाई दर के 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। महंगाई को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बैंक ने इस साल रेपो दर में लगातार 3 बार में कुल 1.40 प्रतिशत की वृद्धि की है, जिससे यह 5.40 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गया है। केंद्रीय बैंक की इस कवायद से मुद्रास्फीति कुछ नरम हुई है। उदाहरण के तौर पर जून महीने में खुदरा मुद्रास्फीति 7.01 प्रतिशत थी, जबकि मई महीने में यह 7.04 प्रतिशत थी और अप्रैल महीने में 7.79 प्रतिशत थी, जो 8 सालों का उच्चतम स्तर था।

अमेरिका में मुद्रास्फीति की सहनशीलता सीमा 2 प्रतिशत है, लेकिन वहाँ मई महीने में महंगाई 8.6 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गई, जो दिसंबर 1981 के बाद सबसे अधिक है। अमेरिका में मुद्रास्फीति 40 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई है, जिसके कारण फेडरल रिजर्व को भी  नीतिगत दरों में इजाफा करना पड़ रहा है। अमेरिका में मुद्रास्फीति दर जून में 9.1 प्रतिशत थी, जो जुलाई महीने में घटकर 8.5 प्रतिशत रह गई। फिर भी यह चिंताजनक स्तर है।

महंगाई को नियंत्रित करने के लिए फेडरल रिजर्व इस साल नीतिगत दरों में 225 आधार अंकों की बढ़ोत्तरी कर चुका है। चूँकि, मुद्रास्फीति, अमेरिका सहित दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में अभी भी सहनशीलता सीमा से अधिक है। इसलिए, उम्मीद है कि आगामी महीनों में फेडरल रिजर्व सहित अन्य विकसित देशों के केंद्रीय बैंक नीतिगत दरों में इजाफा कर सकते हैं।

बढ़ती मुद्रास्फीति और उसे रोकने के उपायों को अमलीजामा पहनाने की वजह से विकसित देशों के विकास का मार्ग आंशिक रूप से अवरुद्ध हो रहा है और विश्व की अर्थव्यवस्था कमजोर होती जा रही है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत अभी भी ऊँची स्तर पर बनी हुई है और रूस, यूक्रेन, चीन और ताइवान की वजह से विश्व में भू-राजनीतिक संकट भी कायम है। इस प्रतिकूल स्थिति की वजह से भारत को मुद्रास्फीति को  काबू करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

हालांकि चालू वित्त वर्ष में पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्‍स (पीएमआई), कर फाइलिंग, कर संग्रह, कंपनियों के परिणाम, क्रेडिट ग्रोथ आदि के आधार पर कहा जा सकता है कि सेवा और निर्माण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां तेज हुई हैं। अगस्त महीने में माल एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह 28  प्रतिशत बढ़कर 1.43 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो पिछले वर्ष के इसी महीने में 1.12 करोड़ रुपये था। यह लगातार छठा महीना है जब जीएसटी संग्रह 1.4 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा है।

सरकार को 30 अगस्त तक 4.8 लाख करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष कर मिल चुका है, जो पिछले वित्त वर्ष की समान अव​धि के 3.6 लाख करोड़ रुपये से 33 प्रतिशत अधिक है। एक अनुमान के अनुसार कर संग्रह वित्त वर्ष 2023 में 14.20 लाख करोड़ रुपये के बजटीय लक्ष्य को पार कर सकता है। पिछले वित्त वर्ष में इस दौरान 3.6 लाख करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष कर संग्रह किया जा सका था।

चालू वित्त वर्ष में निजी व्यय में लगभग 26 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है, जो इस बात का संकेत है कि आर्थिक गतिविधियों में बेहतरी आ रही है। सरकारी और निजी अनंतिम खर्च कोरोना महामारी के पहले वाली स्थिति में पहुँच चुकी है। वित्त वर्ष 2022 की जून तिमाही में सरकारी खर्च में बढ़ोतरी महज 1.3 प्रतिशत की दर से हुई है, जो यह दर्शाता है कि सरकारी खर्च को कम करने की सरकारी मुहिम धीरे-धीरे कामयाब हो रही है।

त्यौहारों के कारण जुलाई महीने में बैंकों से कर्ज लेने की गतिविधियां बढ़ी हैं। विभिन्न क्षेत्रों में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत और 18.8 प्रतिशत के बीच रही है। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि जुलाई महीने  में उद्योग को दिया जाने वाला कर्ज 10.5 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि जुलाई 2021 में इसमें महज 0.4 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी।

आकार के आधार पर देखें तो मझोले उद्योगों को कर्ज जुलाई महीने में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 36.8 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 5.9 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी। सूक्ष्म और लघु उद्योगों ने 28.3 प्रतिशत ज्यादा कर्ज लिया है, जबकि एक साल पहले इनमें 10.5 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी। बड़े उद्योगों के सेग्मेंट में कर्ज में वृद्धि 5.2 प्रतिशत रही है, जबकि जुलाई 2021 में 3.8 प्रतिशत का संकुचन आया था।

त्योहारों के अलावा जिंसों की कीमतों में बढ़ोत्तरी और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) लागू करने से कर्ज की मांग में तेजी आ रही है। इनपुट लागत की कीमत बढ़ने के कारण कामकाज करने के लिए पूंजी की जरूरत बढ़ने और बाजार में उधारी महंगी होने के कारण भी बैंक से कर्ज लेने की गतिविधियों में तेजी आई है। कर्ज में वृद्धि होना इस बात का द्योतक है कि आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ रही है।

बैंकों के कर्ज में तेज वृद्धि से कर्ज और जमा के बीच का अंतर बढ़ रहा है। उधारी में तेजी आने से बैंकों के समक्ष पूंजी की कमी की समस्या उत्पन्न हो सकती है। अभी बैंकों के पास 3 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसेलिटी (एसडीएफ) है, इसलिए, फिलवक्त बैंकों को नकदी की समस्या नहीं है, लेकिन लंबे समय में बैंकों को नकदी की जरूरत पड़ सकती है।

इसलिए, बैंकों ने जमा दरों में इजाफा करना शुरू कर दिया है, ताकि उन्हें कर्ज देने के क्रम में पूंजी की कमी का सामना नहीं करना पड़े। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 15 जुलाई को समाप्त पखवाड़े में कर्ज की वृद्धि दर 14 प्रतिशत थी, जबकि इस दौरान जमा में वृद्धि महज 8.4  प्रतिशत रही।  इसकी वजह से ऋण और जमा के बीच वृद्धि का अंतर 560 आधार अंक हो गया है।

पहली तिमाही में हम लगभग  16 प्रतिशत की दर से जीडीपी में वृद्धि होने की उम्मीद कर रहे थे, हालांकि यह वृद्धि दर 13.5 प्रतिशत रही। इसके बाद भी भारत की जीडीपी वृद्धि दर दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से बहुत अधिक बेहतर है। विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं जैसे, चीन की इस अवधि में जीडीपी वृद्धि दर 0.4 प्रतिशत रही है, जबकि स्पेन में 1.1 प्रतिशत, इटली में 1.0 प्रतिशत, फ्रांस में 0.5 प्रतिशत, जर्मनी में 0.1 प्रतिशत, ब्रिटेन में -0.10 प्रतिशत और अमेरिका में -0.6 प्रतिशत रही है।

निजी खर्च, जीएसटी और अन्य कर संग्रह के मोर्चे पर तेजी आना आर्थिक गतिविधियों में तेजी आने का सूचक है। ऋण ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बावजूद क्रेडिट ग्रोथ में तेजी आना इस तथ्य की पुष्टि करता है कि माँग और आपूर्ति दोनों में तेजी आ रही है। होटल, कारोबार, परिवहन और पर्यटन क्षेत्र का अभी भी दबाव में होना लाजिमी है, क्योंकि कोरोना महामारी की वजह से ये क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुए थे।

दुनिया के अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह भारतीय रिजर्व बैंक के लिए मुद्रास्फीति अभी भी चुनौती बनी हुई है। इसलिए, उसे स्थिति को नियंत्रित करने के लिए जीडीपी वृद्धि और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनाना होगा। भारतीय रिजर्व बैंक की प्राथमिकता फिलहाल महंगाई पर काबू पाने की है। मानसून के बेहतर रहने और केंद्रीय बैंक द्वारा सही समय पर सही कदम उठाने से महंगाई में कुछ नरमी आई है। इसलिए, उम्मीद है कि वृद्धि के मोर्चे पर आगामी महीनों में और भी बेहतरी आ सकती है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)