कोरोना वायरस के प्रतिकूल प्रभाव से बची रहेगी भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय अर्थव्यवस्था में लगातार हो रही सकारात्मक गतिविधियों के चलते पूरे विश्व, विशेष रूप से चीन में तेज़ी से फैल रहे कोरोना वाइरस नामक बीमारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था तो विपरीत रूप से प्रभावित होगी, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका उस तरह से कोई बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है।

देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में बजट पर चर्चा के दौरान कहा था कि अर्थव्यवस्था के बुरे दिन अब ख़त्म होने वाले हैं और सुधार के संकेत अब साफ़ दिखाई देने लगे हैं। उन्होंने उस समय सुधरती वैश्विक परिस्थितियों का हवाला दिया था। जनवरी 2020 में क्रय विनिर्माण सूचकांक (PMI) में जो उछाल आया है वैसा पिछले 8 सालों में देखने में नहीं आया है।

सरकार राष्ट्रीय आधारिक संरचना पाइपलाइन में 102 लाख करोड़ रुपए, अगले 5 साल में, ख़र्च करने जा रही है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 47,600 करोड़ अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा का हो गया है। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसीयों ने भी भारत की रेटिंग को कम नहीं किया है। इनके अनुसार देश की विकास दर कम भले हुई हो, परंतु यह अभी भी औसत दर से ज़्यादा ही है। एजेंसियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था के आधार और राजनैतिक स्थिरता को भी मज़बूत बताया है।

विदेशी निवेश भारत में लगातार बढ़ता जा रहा है। औसतन 600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी निवेश प्रति माह हो रहा है। यह तब है जब वैश्विक स्तर पर आर्थिक मंदी छाई हुई है। कभी भी भारत में इतना विदेशी मुद्रा भंडार नहीं रहा है। यह विश्वास के चलते ही हो पा रहा है।

सांकेतिक चित्र

बजटीय घाटे को भी नियंत्रण में रखने का प्रयास केंद्र सरकार द्वारा लगातार किया जा रहा है। GST का कलेक्शन भी धीरे धीरे बढ़ता जा रहा है। यह लगातार पिछले चार माह के दौरान एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का रहा है। मुद्रा स्फीति हाल ही में थोड़ी बढ़ी ज़रूर है परंतु फिर भी नियंत्रण में ही बनी हुई है। मुद्रा का प्रसार भी लगभग 10 से 11 प्रतिशत पर नियंत्रण में है। जबकि पिछले दशक के प्रारम्भ में यह 13 से 15 प्रतिशत के बीच रहता था। मौद्रिक नीति में भी स्थिरता बनी हुई है।

इन सभी चीज़ों को देखते हुए विदेशी निवेशक एवं देशी निवेशक सोच रहा है कि मैं भी भारत में अपना निवेश बढ़ाऊँ और भारत की तरक़्क़ी में भागीदार बनूँ इसलिए भारत में विदेशी निवेश लगातार बढ़ता जा रहा है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में लगातार हो रहे उक्त वर्णित सकारात्मक घटनाओं के चलते पूरे विश्व, विशेष रूप से चीन में तेज़ी से फैल रहे कोरोना वाइरस नामक बीमारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था तो विपरीत रूप से प्रभावित होगी लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है। परंतु, इसे एक अवसर के तौर पर भी देखा जा सकता है क्योंकि चीन में उद्योग बंद कर दिए गए हैं  और अभी तक कई देश चीन से ही वस्तुओं का आयात कर रहे थे।

अब जब चीन से माल निकलेगा ही नहीं तो ये देश भारत एवं अन्य देशों की ओर रूख कर सकते हैं। भारत यदि चौकन्ना रहता है तो उन वस्तुओं का निर्यात भारत से बढ़ाया जा सकता है जिन वस्तुओं का निर्यात चीन से अधिक मात्रा में होता है। इसके लिए तुरंत ही कई निर्णय लिए जाने की आवश्यकता है और इन सम्बंधित उद्योगों को समस्त प्रकार की सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिए, ताकि वे अपना निर्यात भारत से बढ़ा सकें।

भारत में आज छोटी से बड़ी हर प्रकार की वस्तु निर्मित हो रही है। बहुत सारी अंतरराष्ट्रीय स्तर की बड़ी कम्पनियाँ यहाँ पूर्व में ही स्थापित हैं। इन देशों के अपने उपभोग की पूर्ति भारत में स्थापित कम्पनियों से की जा सकती है। यह शायद होता भी दिख रहा है क्योंकि आईएचएस मार्किट इंडिया सेवा व्यापार गतिविधि इंडेक्स जो जनवरी 2020 में 55.5 अंको पर था, वह फ़रवरी 2020 में बढ़कर 57.3 अंको पर आ गया है। वर्ष जनवरी 2013 के बाद की यह सबसे अधिक वृद्धि मानी जा रही है और विदेशों से प्राप्त निर्यात ऑर्डर को इस वृद्धि के लिए मुख्य कारण माना जा रहा है। 

भारत में केंद्र सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक आदि संस्थानों द्वारा हाल ही में आर्थिक क्षेत्र से सम्बंधित लिए गए निर्णयों का असर भी शीघ्र ही अर्थव्यवस्था पर दिखाई देने लगेगा तब आर्थिक गतिविधियाँ और आगे बढ़ेंगी। बैंकों के पास जमा राशियाँ पड़ी हुई हैं जिन्हें ऋण का उठाव नहीं होने के कारण भारतीय रिज़र्व बैंक में जमा करना पड़ रहा है। अतः ब्याज दरें लगातार कम की जा रही हैं, इसका लाभ भी धीरे धीरे उपभोक्ताओं को मिलेगा।

देश में सरकारी क्षेत्र के 13/14 बैंक हानि दर्शा रहे थे, इनमे से कई बैंक अब लाभ की स्थिति में आ गए हैं। शेष बैंक भी शीघ्र ही लाभ की स्थिति में आ जाएँ ऐसा प्रयास सरकार द्वारा लगातार किया जा रहा है।

भारत में विकास दर को 8 से 9 प्रतिशत तक बढ़ाने की क्षमता मौजूद है परंतु जब कई अन्य देशों में ऋणात्मक विकास दर आ गई है तो भारत की विकास दर भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर की परिस्थितियों को देखते हुए भारत में 5-5.5 प्रतिशत की विकास दर भी अच्छी ही कही जाएगी। भारतीय अर्थव्यवस्था पर विदेशी निवेशकों का विश्वास बना हुआ है तभी तो देश में विदेशी निवेश लगातार बढ़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार भारत पर अपना विश्वास बनाए हुए है। 

भारतीयों में अधिक पैसा कमाने की एवं नवोन्मेष की भूख है। भारतीयों की इस प्रवृत्ति के चलते देश में आर्थिक विकास तो होगा ही, साथ में केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था में गति लाने के लिए लगातार कई प्रयास भी कर रही है।

अब देश में कर की दरों को 10-30 प्रतिशत के दायरे में लाया गया है जो विश्व में तुलनात्मक रूप से बहुत कम है। इसीलिए कर अपवंचन भी कम हुआ है। लिहाजा लोगों में अब कर देने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।  उद्यमिता की भूख भी भारतियों में अब बढ़ रही है। लोग बचत से पोर्टफ़ोलीओ (निवेश) की ओर बढ़ रहे हैं। टैक्स के दरों को ठीक किया गया है। प्रोत्साहन हटाकर करों की दरों को कम किया जा रहा है। ताकि लोग ख़र्च कर सकें। यह भी बदलाव हो रहा है।

राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखने से भी विदेशी निवेशकों का भारत पर विश्वास बढ़ता जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियाँ किसी भी देश की क्रेडिट रेटिंग आँकते समय इन पैरामीटर पर विशेष ध्यान देती हैं। हालाँकि पूँजीगत निवेश बढ़ाने के लिए यदि राजकोषीय घाटे का इस्तेमाल किया जाता है तो यह इतना बुरा भी नहीं है। हमारे देश के पास   47,600 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडरा मौजूद है, अतः सरकार के पास पूँजीगत ख़र्चे बढ़ाने का मौक़ा उपलब्ध है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं।)