मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का दिख रहा असर, गरीबी उन्मूलन के मोर्चे पर भारत का शानदार प्रदर्शन

भारत में बहुआयामी गरीबों की संख्या में उल्लेखनीय रुप से 9.89 प्रतिशत अंक की कमी आई है। यह 2015-16 में 24.85 प्रतिशत थी और 2019-21 में कम होकर 14.96 प्रतिशत पर आ गई। रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या में सबसे अधिक कमी आई है। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या 32.59 प्रतिशत से घटकर 19.28 प्रतिशत पर आ गई है। वहीं शहरी क्षेत्रों में गरीबों की संख्या 8.65 प्रतिशत से घटकर 5.27 प्रतिशत रह गई है।

भारत के लिए राहतकारी है कि वर्ष 2005-06 से वर्ष 2019-21 के दौरान यानि विगत 15 वर्षों में 41.5 करोड़ लोग गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकले हैं। यह तथ्य संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में आॅक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) द्वारा जारी वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के ताजा आंकड़ों से सामने आया है।

रिपोर्ट से साफ जाहिर होता है कि गरीबी उन्मूलन के मोर्चे पर भारत का प्रदर्शन शानदार है। रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ है कि भारत समेत दुनिया के 25 देशों ने विगत 15 वर्षों में सफलता के साथ अपने वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) मूल्य को आधा किया है। इन देशों में भारत के अलावा कंबोडिया, चीन कांगो, होंडुरास, सर्बिया, मोरक्को और वियतनाम इत्यादि शामिल हैं।

गौर करें तो मौजूदा समय में भारत जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाले देश का तमगा हासिल कर चुका है। भारत की आबादी 142 करोड़ से अधिक हो गई है। बावजूद इसके अगर देश गरीबी उन्मूलन की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है, तो इसे सरकारी प्रयासों की बड़ी सफलता के रूप में देखा जा सकता है।

रिपोर्ट पर गौर करें तो 2005-06 में भारत में लगभग 64.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी में थे। 2015-16 में यह संख्या घटकर लगभग 37 करोड़ और वर्ष 2019-21 में 23 करोड़ पर आ गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पोषण के संकेतक के आधार पर बहुआयामी गरीबी और वंचित लोगों की संख्या 2005-06 के 44.3 प्रतिशत से घटकर 2019-21 में 11.8 प्रतिशत पर आ गई। इस दौरान बाल मृत्यु दर में भी कमी आई है। यह 4.5 प्रतिशत से घटकर 1.5 प्रतिशत रह गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक गरीबी के अन्य संकेतकों के मोर्चे पर भी उल्लेखनीय सफलता मिली है। मसलन जो लोग गरीब हैं और भोजन पकाने के ईंधन से वंचित हैं उनकी संख्या भी 52.9 प्रतिशत से घटकर 13.9 प्रतिशत रह गई है। इसी तरह स्वच्छता से वंचित लोग 2005-06 के दौरान 50.4 प्रतिशत थे जो अब 2019-21 में घटकर 11.3 प्रतिशत रह गए हैं।

पीने का साफ पानी यानि पेयजल के मानक के मोर्चे पर पर गौर करें तो इस अवधि में ऐसे लोगों की संख्या 16.4 प्रतिशत से घटकर 2.7 प्रतिशत रह गई है जो एक बड़ी उपलब्धि है। बिजली से वंचित लोगों की संख्या इस दौरान 29 प्रतिशत से घटकर 2.1 प्रतिशत पर आ गई है। आवास से वंचित लोगों का आंकड़ा भी 44.9 प्रतिशत से घटकर 13.6 प्रतिशत रह गया है।

इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार की कल्याणकारी योजनाएं जमीन पर आकार ले रही हैं। भारत गरीबी के दुष्चक्र से पार पाने में किस तरह कामयाब हो रहा है इसका उल्लेख विगत दिनों प्रकाशित नीति आयोग की बहुआयामी गरीबी सूचकांक की समीक्षा रपोर्ट से हुआ है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वर्ष 2015-16 से वर्ष 2019.21 के बीच 13.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं।

उल्लेखनीय है कि बहुआयामी गरीबी सूचकांक स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के तीन समान रुप से भारित आयामों में अभावों को मापता है। इन्हें 12 सतत विकास लक्ष्यों के जुड़े संकेतकों से दर्शाया जाता है। नीति आयोग की मानें से सभी 12 मानदंडों पर अपेक्षित सुधार हुआ है। इस रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, ओडिसा तथा राजस्थान में गरीबों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई है।

रिपोर्ट के अनुसार भारत में बहुआयामी गरीबों की संख्या में उल्लेखनीय रुप से 9.89 प्रतिशत अंक की कमी आई है। यह 2015-16 में 24.85 प्रतिशत थी और 2019-21 में कम होकर 14.96 प्रतिशत पर आ गई। रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या में सबसे अधिक कमी आई है। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या 32.59 प्रतिशत से घटकर 19.28 प्रतिशत पर आ गई है। वहीं शहरी क्षेत्रों में गरीबों की संख्या 8.65 प्रतिशत से घटकर 5.27 प्रतिशत रह गई है।

नीति आयोग की रिपोर्ट से इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि देश में गरीबों के लिए चलाई जा रही योजनाएं फलीभूत हो रही हैं। अगर ये योजनाएं इसी तरह चलती रहीं तो आने वाले वर्षों में गरीबी मुक्त भारत का सपना पूरा हो सकेगा। सरकार के प्रयास तो चल ही रहे हैं, लेकिन देश के लोगों को समझना होगा कि भारत से गरीबी खत्म करने के लिए सिर्फ सरकारी योजनाएं ही पर्याप्त नहीं हैं। सामर्थ्यवान लोगों को भी आगे बढ़कर गरीबों की मदद करनी चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)