सरल भाषा में जानिये कि जीएसटी से कैसे कम होगी महंगाई और होंगे क्या-क्या फायदे !

जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुओं और सेवाओं पर अलग-अलग लगने वाले सभी कर एक ही कर में समाहित हो जायेंगे। इसके तहत  अलग-अलग टैक्स की बजाय एक टैक्स लगने की वजह से उत्पादों के दाम घटेंगे। कम टैक्स होने से मैन्युफैक्चरिंग लागत घटेगी। साथ ही, सरकार की टैक्स वसूली की लागत भी कम होगी। स्पष्ट है, इससे आम उपभोक्ताओं को फायदा होगा।

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) 1 जुलाई से लागू होने वाला है। जीएसटी काउंसिल ने 1,200 से अधिक वस्तुओं के टैक्स स्लैब को निर्धारित कर दिया है, जो 0, 3, 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत के दायरे में रखा गया है। जीएसटी स्लैब को लेकर सोशल मीडिया खास करके फेसबुक और व्हाट्सएप पर भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है।

इसके प्रस्तावित स्लैब को अधिकांश मामलों में पुराने कर दरों से बिना तुलना किये आलोचना की जा रही है। कुछ जरूरत की वस्तुओं के जीएसटी स्लैब को ज्यादा मानकर मुद्दा बनाया जा रहा है, जबकि ऐसी  विसंगतियों को सरकार क्रमबद्ध तरीके से दूर कर रही है। आम जरूरत की प्रमुख वस्तुओं का जीएसटी स्लैब वर्तमान कर से ज्यादा है या कम को निम्न तालिका से समझा जा सकता है।

जरूरत की वस्तुओं के जीएसटी स्लेब से वर्तमान दरों की तुलनात्मक तालिका

यह एक अप्रत्यक्ष कर प्रणाली है, जो मूल्यवर्धित कर (वैट) से अलग है। वैट सिर्फ वस्तुओं पर लगता है, जबकि जीएसटी वस्तुओं एवं सेवाओं दोनों पर लगेगा। इसे एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, वैट, एंट्री टैक्स आदि की जगह लागू किया जाने वाला है।

दूसरे शब्दों में कहें तो जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुओं और सेवाओं पर अलग-अलग लगने वाले सभी कर एक ही कर में समाहित हो जायेंगे। जीएसटी के तहत  अलग-अलग टैक्स की बजाय एक टैक्स लगने की वजह से उत्पादों के दाम घटेंगे। कम टैक्स होने से मैन्युफैक्चरिंग लागत घटेगी। साथ ही, सरकार की टैक्स वसूली की लागत भी कम होगी। स्पष्ट है, इससे आम उपभोक्ताओं को फायदा होगा, जिसे प्रस्तुत जीएसटी टैक्स स्लैब तालिका से समझा जा सकता है।

जीएसटी लागू होने के बाद टीवी, गाड़ी, फ्रिज एक ही कीमत पर मुंबई, दिल्ली, पटना, भोपाल आदि शहरों में उपभोक्ताओं को मिल सकेंगे। वर्तमान समय में कर बचाने के लिए कारोबारी कर कम रहने वाले राज्यों से सामान खरीदकर अधिक कर आरोपित करने वाले राज्यों में उन्हें बेचकर कर की चोरी कर रहे हैं। जीएसटी के आने से इस तरह की गलत परंपरा पर लगाम लगेगा।

इतना ही नहीं, सेवा के उपभोग के मामले में भी ऐसा ही होगा। इससे कर चोरी या कर विवाद के मामले भी कम होंगे। इससे केंद्र, राज्यों, उद्योगपतियों, विनिर्माताओं, आम लोगों और समग्र रूप में देश को लाभ होगा, क्योंकि इससे पारदर्शिता बढ़ेगी, अनुपालन सुधरेगा, जीडीपी वृद्धि दर बढ़ेगी और राजस्व संग्रह बढ़ेगा।

सोशल मीडिया में यह भी कहा जा रहा है कि जीएसटी के नियमों को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है। इसके लिए सॉफ्टवेयर, कारोबारी व पेशेवर, प्रणाली आदि तैयार नहीं हैं। इतना ही नहीं इससे जुड़े फॉर्म भी छपे नहीं हैं, जबकि इस तरह के प्रामाणिक बयान जीएसटी से जुड़े प्रवक्ता दे सकते हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर बहुत सारे लोग इसके जानकार बन गये हैं।

सवाल विनिर्माण कंपनियों और कारोबारियों द्वारा ज्यादा रिटर्न भरने एवं अधिक  कागजी कारवाई को लेकर भी उठाया जा रहा है। ज्यादा कागजी कारवाई की मदद से भी यदि सरकार कारोबारियों से कर वसूल पाती है, तो यह उसकी बड़ी जीत होगी। मौजूदा समय में कितने कारोबारी कर देते हैं, किसी से छुपा नहीं है। अभी भी 1.31 अरब की आबादी में से महज 1.5 प्रतिशत लोग ही आयकर देते हैं, जिनमें से सबसे न्यून संख्या कारोबारियों की है। इधर, सभी कीमत वाले बिस्कुट को जीएसटी स्लैब में 18 प्रतिशत के दायरे में रखने पर खूब हो-हल्ला मचाया जा रहा है, जबकि फिलवक्त बिस्कुट पर औसतन 20.6 प्रतिशत और अधिक कीमत वाले बिस्कुट पर 23.11 प्रतिशत की दर से कर लिया जा रहा है।

कहा जा सकता है कि जीएसटी एक सतत प्रक्रिया है जो समय के साथ विकसित और बेहतर होगी। इस कर प्रणाली में राज्यों के राजस्व एवं आम जनता की जरूरतों के मुताबिक  प्रावधान किये गये हैं। फिर भी, सरकार ने आम जनता का ख्याल रखते हुए उनकी जरूरत की वस्तुओं को कम जीएसटी स्लैब के दायरे में रखा है। इसके बाद भी सरकार इससे जुड़ी विसंगतियों को दूर करने के लिए हमेशा तैयार है। इसकी बानगी सरकार द्वारा जीएसटी स्लैब में किये गये ताजा सुधार हैं।

लिहाजा, लोगों को बिना किसी ठोस जानकारी के गलत बयानी से बचना चाहिए। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने भी कहा है कि जीएसटी के लागू होने से देश के विकास को गति मिलेगी और आम लोग भी फायदे में रहेंगे। राजन का मानना है कि इसे अमलीजामा पहनाने से एकीकृत कर बाजार का लक्ष्य, कर संग्रह में सुधार और कर के दायरे के विस्तार में मदद मिलेगी।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। स्तंभकार हैं। ये विचार उनके निजी हैं।)