मोटे अनाजों के जरिए कृषि क्षेत्र को मजबूत करने में जुटी मोदी सरकार !

अब तक की सरकारें घरेलू मांग को पूरा करने के लिए आयात का सहारा लेती रही हैं। मोदी सरकार इसके उलट घरेलू उत्‍पादन को बढ़ावा दे रही है। दलहनी फसलों की खेती को बढ़ावा देने का नतीजा दालों के बंपर उत्‍पादन के रूप में सामने आया। अब यही नीति तिलहनी फसलों और मोटे अनाजों के मामले में अपनाई जा रही है। मोटे अनाजों के उत्‍पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार मोटे अनाजों पर मिनी मिशन की शुरूआत की है।

देश में किसानों की बदहाली की सबसे बड़ी वजह है, कांग्रेसी शासन काल की एकांगी कृषि विकास नीति। आज अनाज के भरे हुए गोदाम के बावजूद देश में कुपोषण की व्‍यापकता है, तो इसका कारण भी आजादी के बाद की कांग्रेसी सरकारों द्वारा लम्बे समय तक चलाई गयीं खेती की अदूरदर्शी नीतियां हैं।

हरित क्रांति की सबसे बड़ी खामी यह रही कि इसने एकफसली खेती को बढ़ावा दिया। इससे फसल चक्र रुका और मिट्टी की उर्वरता में ह्रास आया। इसकी भरपाई के लिए रासायनिक उर्वरकों का इस्‍तेमाल बढ़ा। रासायनिक उर्वरकों के आयात में घोटाले भी खूब हुए। कांग्रेसी प्रधानमंत्री स्‍वर्गीय नरसिम्हा राव के समय का यूरिया घोटाला आज भी लोगों को याद है। एकफसली खेती का सबसे बड़ा दुष्‍परिणाम यह हुआ कि इससे खेती व थाली की विविधता घटी जिसका परिणाम कुपोषण और तरह-तरह की बीमारियों के रूप में सामने आया।

कांग्रेसी नीतियों की दूसरी खामी यह रही कि इसमें उत्‍पादन पर तो ध्‍यान दिया गया, लेकिन उसके भंडारण-विपणन-प्रसंस्‍करण पर ध्‍यान नहीं दिया गया। यही कारण है कि किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत नहीं मिल पाई। गेहूं-धान जैसी चुनिंदा फसलों की खेती की प्रधानता से मोटे अनाजों, दलहनी और तिलहनी फसलों की खेती प्रभावित हुई और इनका आयात बढ़ा।  

सांकेतिक चित्र

अब मोदी सरकार इस ऐतिहासिक भूल को सुधारने की कवायद में जुटी है। दलहनी खेती को बढ़ावा देने के सकारात्‍मक नतीजे मिले और देश में दालों का बंपर उत्‍पादन हुआ। इस कामयाबी को सरकार अब तिलहनों और मोटे अनाजों के मामले में दुहराने जा रही है। तिलहन उत्‍पादन को बढ़ावा देने से न सिर्फ खाद्य तेल का घरेलू उत्‍पादन बढ़ेगा, बल्‍कि हर साल खाद्य तेल के आयात पर खर्च होने वाले एक लाख करोड़ रूपये की बचत भी होगी।

पानी की बढ़ती किल्‍लत, मौसमी उतार-चढ़ाव, गेहूं-धान के भंडारण की समस्‍या, कुपोषण की व्‍यापकता, किसानों की बदहाली आदि को देखते हुए मोदी सरकार मोटे अनाजों के उत्‍पादन को बढ़ावा देने के लिए मिशन की शुरूआत कर रही है। यह मिशन अगले दो साल अर्थात 2018-19 और 2019-20 तक चलेगा। मोदी सरकार उत्‍पादन के साथ-साथ इन उपजों के प्रसंस्‍करण पर भी ध्‍यान दे रही है ताकि किसानों को उपज बेचने में कठिनाई न हो। इसके लिए देश के 11 राज्‍यों के 115 किसान संगठनों को जोड़ा जा रहा है।

इसके तहत किसानों को उन्‍नत प्रजाति का प्रमाणिक बीज उपलब्‍ध कराया जाएगा। पहले चरण में 14 राज्‍यों के 202 जिलों में ज्‍वार, बाजरा, सावां-कोदो जैसे अनाजों की बड़े पैमाने पर खेती शुरू की जाएगी। मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने के लिए 2018 को मोटे अनाज का वर्ष घोषित किया गया है।

मोटे अनाजों के उत्‍पादन में बढ़ोत्‍तरी से न सिर्फ खाद्य व पोषण सुरक्षा सुनिश्‍चित होगी, बल्‍कि गेहूं-चावल के पहाड़ से भी मुक्‍ति मिल जाएगी। इतना ही नहीं, आगे चलकर विविधतापूर्ण खेती को बढ़ावा मिलेगा जिससे मिट्टी की उर्वरता में इजाफा होगा और रासायनिक उर्वरकों-कीटनाशकों के इस्‍तेमाल में कमी आएगी।

इसका सबसे ज्‍यादा लाभ वर्षाधीन क्षेत्रों को मिलेगा जहां सिंचाई की सुनिश्‍चित व्‍यवस्‍था नहीं है। गौरतलब है कि आजादी के सत्‍तर वर्ष बाद भी देश की आधी से ज्‍यादा कृषि भूमि बारिश के भरोसे है। मोदी सरकार इन इलाकों में मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा दे रही है ताकि पानी की किल्‍लत को काबू में किया जा सके। गौरतलब है कि मोटे अनाजों को पानी की बहुत कम जरूरत पड़ती है।

इसके साथ-साथ सरकार सिंचाई की आधुनिक विधियों को बढ़ावा दे रही है ताकि पानी की बरबादी कम से कम हो। स्‍पष्‍ट है मोदी सरकार मोटे अनाजों के जरिए हरित क्रांति के दायरे को बढ़ाकर देशव्‍यापी बना रही है। सबसे बढ़कर उत्‍पादन के साथ-साथ भंडारण-प्रसंस्‍करण-विपणन पर भी ध्‍यान दिया जा रहा है ताकि खेती मुनाफे का सौदा बने।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)