कामयाब होती मोदी सरकार की कृषि नीतियाँ, खाद्यान्न के रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद

मॉनसून की अनियमितता एवं मंडियों में चल रहे हेराफेरी के कारण किसानों को हो रहे नुकसान को समझते हुए मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, ई-नाम योजना आदि को अमलीजामा पहनाया है। किसानों की समस्या और कृषि से जुड़े जटिल मसलों के निपटारे हेतु ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वित्त वर्ष के मौजूदा स्वरूप को बदल कर 1 जनवरी से 31 दिसंबर करना चाहते हैं, ताकि कृषि क्षेत्र की बेहतरी के लिए समुचित व प्रभावशाली तरीके से कार्य किये जा सकें। स्पष्ट है कि सरकार कृषि और किसान दोनों के प्रति अत्यंत गंभीर है, जिसका परिणाम खाद्यान्न के रिकॉर्ड उत्पादन के आंकड़ों के रूप में देखा जा सकता है।

मोदी सरकार की कृषि नीति एवं बेहतर मॉनसून की वजह से जून में समाप्त हो रहे फसल वर्ष में गेहूं, चावल और दलहन सहित खाद्यान्न का रिकॉर्ड 27 करोड़ 33 लाख 80 हजार टन उत्पादन होने का अनुमान है, जो पिछले साल 25 करोड़ 15 लाख टन हुआ था। इसके पहले  रिकॉर्ड उत्पादन फसल वर्ष 2013-14 में 26 करोड़ 50 लाख टन का हुआ था। खाद्यान्नों में चावल, गेहूं, मोटे अनाज एवं दलहन शामिल हैं। कृषि मंत्रालय ने अपने तीसरे अग्रिम संशोधित अनुमान में फसल वर्ष 2016-17, जो जुलाई से जून तक रहता है, में चावल उत्पादन 10 करोड़ 91 लाख टन होने का अनुमान लगाया है, जबकि विगत वर्ष इसका उत्पादन 10 करोड़ 44 लाख टन हुआ था।

इसी तरह गेहूं की पैदावार के 9 करोड़ 74 लाख टन होने का अनुमान है, जो पिछले साल 9 करोड़ 58 लाख टन हुआ था। इस साल दलहन की पैदावार 2 करोड़ 24 लाख टन हुई है, जो पिछले वर्ष 1.63 लाख टन हुआ था। मोटे अनाज का उत्पादन भी फसल वर्ष 2016-17 में रिकॉर्ड 4 करोड़ 44 लाख टन होने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष 3  करोड़ 85 लाख टन हुआ था। तिलहन का उत्पादन विगत वर्ष 2 करोड़ 52 लाख टन हुआ था, जो इस साल 3 करोड़ 25 लाख टन होने का अनुमान है। कपास का उत्पादन पिछले वर्ष के 3 करोड़ एक लाख गांठ के मुकाबले इस साल 3 करोड़ 25.8 लाख टन गांठ होने का अनुमान है।

साभार : गूगल

केंद्र सरकार ने वर्ष 2020-21 तक दलहन के सालाना उत्पादन में 2.4 करोड़ टन से ज्यादा के इजाफे के लिए एक पंच वर्षीय कार्य योजना तैयार की है। योजना से देश को दलहन में आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी। योजना के पहले साल यानी 2016-17 में दलहन का उत्पादन रिकॉर्ड 2.2 करोड़ टन से ज्यादा होने का अनुमान है, जो लक्ष्य से नौ लाख टन अधिक है। दलहन का उत्पादन बढ़ाने के लिए राज्य सरकारों को भी जागरूक एवं शिक्षित किया जा रहा है, ताकि खाद्य महँगाई को नियंत्रण में रखा जा सके।

वर्ष 2017 में अच्छे मॉनसून की भविष्यवाणी के बाद सरकार ने जुलाई से शुरू होने वाले नये फसल वर्ष 2017-18 में 27.3 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इतना ही नहीं कृषि क्षेत्र में आ रही बेहतरी को देखते हुए सरकार ने कृषि क्षेत्र में 4 प्रतिशत की दर से वृद्धि हासिल करने का अनुमान लगाया है। दो साल के सूखे के बाद पिछले साल मॉनसून सामान्य रहा था और अब इस साल भी मॉनसून के बेहतर रहने का आकलन मौसम विभाग ने किया है। फसलों की उपज पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े इसके लिए केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे वर्षा के देर से होने, कम अथवा अधिक होने जैसी स्थितियों से निपटने के लिए वैकल्पिक योजना तैयार रखें।

देखा जाये तो किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए एक ठोस नीति की जरूरत होती है। मौजूदा समय में कृषि क्षेत्र अनेक समस्याओं का सामना कर रहा है, जिनके समाधान हेतु सरकार ने कृषि नीति में बदलाव किया है। यह परिवर्तन खेती-किसानी से जुड़ी समस्याओं को ध्यान में रखकर किया गया है। वैसे, सरकार ने ऐसा कदम विशेषकर मॉनसून में एकरूपता नहीं रहने के कारण उठाया है। इस क्रम में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, ई-राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) आदि योजनाओं की शुरुआत की है।

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प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की शुरुआत 1 जुलाई, 2015 को की गई थी, ताकि मॉनसून की चाल गड़बड़ होने पर हर खेत में पानी की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सके। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत फसल के खराब होने पर किसानों को मुआवजा देने का प्रावधान है, जबकि ई-नाम की मदद से मंडियों से बिचौलिये को निकाल बाहर किया जायेगा, ताकि किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत मिल सके।   

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत अब किसानों को प्रति एकड़ औसत उत्पादन कम होने की भरपाई भी मिलेगी। खरीफ सीजन के लिए किसानों को 1700 करोड़ रूपये से ज्यादा का फसल बीमा मिलेगा। यह पहली बार होगा, जब अच्छे मानसून के बावजूद किसानों को इतनी बड़ी रकम फसल बीमा के तौर पर मिलेगी। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में औसत उत्पादन से कम फसल आने पर भी बीमा का लाभ देने का प्रावधान है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इलेक्ट्रॉनिक-राष्ट्रीय कृषि बाजार प्लेटफॉर्म (ई-नाम) का आगाज कृषि जिंसों के लिए एक साझा राष्ट्रीय बाजार बनाने के लिए किया है। इसके तहत कीमतों का निर्धारण केवल मांग और आपूर्ति के आधार पर होगा, जिसे कार्टेल और समूह प्रभावित नहीं कर सकेंगे। आज प्राथमिक उत्पादक एवं उपभोक्ता के बीच औसतन पांच से छह बिचौलिये होते हैं, जिसके कारण जिंसों की कीमतों में 60 से 75 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो जाती है, जबकि किसानों को उपभोक्ताओं द्वारा चुकाई गई कीमत का केवल 20 से 25 प्रतिशत हिस्सा ही मिल पाता है। सरकार चाहती है कि ई-नाम के तहत देशभर की 585 मंडियों में चल रहे कारोबार को आपस में जोड़कर उनका डिजिटलीकरण किया जाये, ताकि मंडियों में होने वाले खरीद-फरोख्त में पारदर्शिता लाई जा सके।  

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प्रधानमंत्री इच्छा जाहिर कर चुके हैं कि जल्द ही वित्त वर्ष की अवधि जो फिलहाल 01 अप्रैल से 31 मार्च है को बदलकर 01 जनवरी से 31 दिसंबर किया जाये। उनका मानना है कि ऐसा करने से सरकार को कृषि की दशा एवं दिशा का आकलन करने में आसानी होगी और उसके आधार पर किसानों की बेहतरी के लिए बजट में बेहतर प्रावधान किये जा सकेंगे। जब बजट को 1 जनवरी को पेश किया जायेगा तब दिसंबर के अंत में रबी फसल के पैदावार का आकलन करना आसान होगा साथ ही साथ खरीफ फसल का अनुमान लगाने में भी परेशानी नहीं होगी। अगर रबी एवं खरीफ फसल की स्थिति को ध्यान में रखकर बजट में प्रावधान किये जायेंगे तो किसानों को ज्यादा फायदे होंगे।

मध्यप्रदेश ने पिछले साल कृषि उत्पादन में 30 प्रतिशत की उल्लेखनीय विकास दर हासिल की थी। गौरतलब है कि दो वर्षों के सामान्य प्रदर्शन के बाद मध्य प्रदेश ने कृषि क्षेत्र में ऐसा बेहतर प्रदर्शन किया है। वर्ष 2008 से ही मध्यप्रदेश कृषि उत्पादन में औसतन 20 प्रतिशत की दर से वार्षिक वृद्धि कर रहा है, जिससे राज्य के कुल उत्पादन में कृषि क्षेत्र का हिस्सा बढ़कर 38 प्रतिशत हो गया है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह अनुपात महज 17 प्रतिशत है।  

कहा जा सकता है कि मॉनसून की अनियमितता एवं मंडियों में चल रहे हेराफेरी के कारण किसानों को हो रहे नुकसान को समझते हुए मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, ई-नाम योजना आदि को अमलीजामा पहनाया है। केंद्र सरकार की सकारात्मक कृषि नीति के कारण ही मध्यप्रदेश और आंध्रप्रदेश जैसे राज्य कृषि क्षेत्र में बेहतर कार्य कर रहे हैं। किसानों की समस्या और कृषि से जुड़े जटिल मसलों के निपटारे हेतु ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वित्त वर्ष के मौजूदा स्वरूप को बदल कर 1 जनवरी से 31 दिसंबर करना चाहते हैं, ताकि कृषि क्षेत्र की बेहतरी के लिए समुचित व प्रभावशाली तरीके से कार्य किये जा सकें।

(लेखक वर्तमान में भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक के तौर पर कार्यरत हैं और विगत सात वर्षों से मुख्य रूप से आर्थिक व बैंकिंग विषयों पर स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। लेख में प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)