आत्मनिर्भर भारत को साकार करने के लिए कई स्तरों पर जुटी है मोदी सरकार

पूरे देश को मल्टी मॉडल कनेक्टीविटी इंफ़्रास्ट्रक्चर से जोड़ने की एक बहुत बड़ी योजना तैयार की गई है। मल्टी मोडल कनेक्टीविटी इंफ़्रास्ट्रक्चर सिस्टम यदि देश में उपलब्ध होगा तो देशी एवं विदेशी निवेशक इन क्षेत्रों में अपना निवेश करने को आकर्षित होंगे। देश के बंदरगाहों में वस्तुओं के आयात एवं निर्यात के लिए टर्न-अराउंड टाइम कम किए जाने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। अतः ग्लोबल सप्लाई चैन का विकास भी एक नई गतिविधि के तौर पर देखने को मिलेगा।

भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर और लोकल से ग्लोबल बनाने के उद्देश्य से बहुत ही तेज़ी से कई प्रकार के आर्थिक निर्णय लिए जा रहे हैं। सबसे पहले भारत में कारपोरेट कर में भारी कमी की गई है। निवेश के प्रोत्साहन के लिए यह एक बहुत क्रांतिकारी क़दम है और इस फ़ैसले के बाद विश्व व्यापार जगत के सभी उद्योगपति  भारत के इस फ़ैसले को एक एतिहासिक क़दम मान रहे हैं।

इसके अलावा भी भारत सरकार ने देश में व्यापार को आसान बनाने के लिए कई फ़ैसले लिए हैं, जैसे सैकड़ों की संख्या ऐसे क़ानूनों को समाप्त कर दिया गया है जो विकास के कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रहे थे। एक विविध संघीय जनतंत्र होने के बावजूद बीते 6 वर्षों में पूरे भारत के लिए सीमलेस, समिल्लित एवं पारदर्शी व्यवस्थाएँ तैयार करने पर बल दिया गया है।

एक देश एक कर से हुई सहूलियत (सांकेतिक चित्र, साभार : Business Line)

जहाँ पहले भारत में अप्रत्यक्ष कर ढाँचे का एक बहुत बड़ा जाल फैला हुआ था, वहीं अब जीएसटी के रूप में केवल एक ही अप्रत्यक्ष कर प्रणाली पूरे देश के व्यापार संस्कृति का एक हिस्सा बन चुकी है। इसी तरह ही दिवालियापन की समस्या से निपटने के लिए इन्सॉल्वेन्सी एंड बैंक्रप्सी कोड लागू किया गया है, जिससे बैकों को चूककर्ता बकायादारों से निपटने में आसानी हो गई है।

कर प्रणाली से जुड़े क़ानूनों और ईक्विटी निवेश पर कर को वैश्विक कर प्रणाली के बराबर लाने के लिए देश में ज़रूरी सुधार निरंतर हो रहे हैं। कर प्रणाली में सुधार के अलावा देश में दुनिया की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशी योजना को भी बहुत कम समय में लागू कर लिया गया है। क़रीब 40 करोड़ लोगों को बीते 5-6 सालों में बैंकों से पहली बार जोड़ा गया है।

आज भारत के क़रीब क़रीब हर नागरिक के पास यूनिक आईडी है, मोबाइल फ़ोन है, बैंक अकाउंट है, जिसके कारण लक्षित सेवाओं को प्रदान करने में तेज़ी आई है। धनराशि का रिसाव बंद हुआ है और पारदर्शिता कई गुना बढ़ी है। नए भारत में अविनियमन, डीरेग्युलेशन और व्यापार में परेशानियाँ ख़त्म करने की मुहिम चलाई गई है। साथ ही, विमानन, बीमा एवं मीडिया जैसे कई क्षेत्र, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोल दिए गए हैं।

इसी प्रकार, आर्थिक सुधारों के लागू करने के कारण ही देश वैश्विक रैंकिंग में आगे बढ़ता जा रहा है। ये रैंकिंग अपने आप नहीं सुधरती है। भारत ने बिलकुल ज़मीनी स्तर पर जाकर व्यवस्थाओं में सुधार किया है। नियमों को आसान बनाया है। उदाहरण के तौर पर यह बताया जा सकता है कि देश में पहले बिजली कनेक्शन लेने के लिए उद्योगों को कई महीनों का समय लग जाता था। परंतु, अब कुछ दिनों के भीतर बिजली कनेक्शन मिलने लगा है।

इसी तरह कम्पनी के रेजिस्ट्रेशन के लिए पहले कई हफ़्तों का समय लग जाता था। परंतु, अब कुछ ही घंटो में कम्पनी का रजिस्ट्रेशन हो जाता है। ब्लूम्बर्ग की एक रिपोर्ट में भी भारत में आ रहे बदलाव की तस्वीर पेश की गई है।

ब्लूम्बर्ग के नेशन ब्राण्ड 2018 सर्वे में भारत को निवेश के लिहाज़ से पूरे एशिया में पहला नम्बर दिया गया है। 10 में से 7 संकेतकों – राजनैतिक स्थिरता, मुद्रा स्थिरता, उच्च गुणवत्ता के उत्पाद, भ्रष्टाचार विरोधी माहौल, उत्पादों की कम लागत, सामरिक स्थिति और आईपीआर के प्रति आदर की भावना – इन सभी में भारत नम्बर एक रहा है। बाक़ी संकेतकों में भी भारत की स्थिति काफ़ी ऊपर रही है।

कोरोना वायरस महामारी के दौरान ग्लोबल सप्लाई चैन एक ऐसा महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसमें भारत आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए देश में आधारभूत सुविधाओं का विकास किया जा रहा है। तटवर्तीय इलाक़ों में सड़क मार्गों का निर्माण किया जा रहा है।

पूरे देश को मल्टी मोडल कनेक्टीविटी इंफ़्रास्ट्रक्चर से जोड़ने की एक बहुत बड़ी योजना तैयार की गई है। इस योजना के अंतर्गत समुद्रीय बंदरगाहों को रेल मार्ग से जोड़ा जाएगा। रेल मार्ग को सड़क मार्ग से काफ़ी बड़ी हद तक जोड़ा जा चुका है। इससे देश में यातायात की सुविधा में और अधिक सुधार देखने को मिलेगा।

ग्लोबल सप्लाई चेन विकसित करने की दिशा में प्रयासरत सरकार (सांकेतिक चित्र, साभार : Pinterest.com)

मल्टी मोडल कनेक्टीविटी इंफ़्रास्ट्रक्चर सिस्टम यदि देश में उपलब्ध होगा तो देशी एवं विदेशी निवेशक इन क्षेत्रों में अपना निवेश करने को आकर्षित होंगे। देश के बंदरगाहों में वस्तुओं के आयात एवं निर्यात के लिए टर्न-अराउंड टाइम कम किए जाने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। अतः ग्लोबल सप्लाई चैन का विकास भी एक नई गतिविधि के तौर पर देखने को मिलेगा।

भारतीय उद्योग संघ की सालाना बैठक को सम्बोधित करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी कहा है कि देश में बदलती परिस्थितियां भारतीय अर्थव्यवस्था के पक्ष में हैं एवं आने वाले समय में भारत को ग्लोबल वैल्यू/सप्लाई चैन का हिस्सा बनने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ने की आवश्यकता है।

चीन की सप्लाई चैन से टक्कर लेने के लिए उस स्तर के व्यापारिक संस्थानों को खड़ा करना भी ज़रूरी है। अन्यथा, चीन के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता करना सम्भव नहीं होगा। इसके लिए भारत सरकार ने हाल ही में कुछ उद्योगों में विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना की घोषणा की है। मोबाइल उत्पादन इकाईयों को इस तरह का पैकेज प्रदान किया गया है। इस घोषणा से उत्साहित होकर ऐपल एवं नोकिया जैसी कम्पनियाँ भारत में अपनी इकाईयाँ स्थापित करने जा रही हैं।

इसी प्रकार फ़ार्मा उद्योग एवं अन्य कई उद्योगों को भी यह पैकेज दिए जाने पर विचार चल रहा है। केंद्र सरकार की यह नीति निश्चित रूप से सफल होगी एवं इससे चीन पर कई देशों की निर्भरता कम होगी। अब समय आ गया है कि भारत को भी अन्य देशों के साथ साझेदारियों को निभाना पड़ेगा।

अन्य देशों के साथ मिलकर हमारे अपने सप्लाई चैन विकसित करने होंगे एवं हमें अपनी स्वयं की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को तैयार करना होगा ताकि वे वैश्विक स्तर पर चीन से कड़ी टक्कर ले सकें। आत्मनिर्भर भारत एवं उत्पाद आधारित प्रोत्साहन योजना इस सम्बंध में केंद्र सरकार के बहुत अच्छे एवं महत्वपूर्ण निर्णय कहे जा सकते हैं।

भारत में देश की कुल आबादी के केवल 3 अथवा 4 प्रतिशत लोग ही शेयर बाज़ार में अपना निवेश करते हैं। चूँकि इसमें टैक्स सम्बंधी बहुत सारी जटिलताएँ हैं एवं कई पेचीदगियाँ तो इस प्रकार की हैं कि जिसे निवेशक समझ ही नहीं पाता है अतः वह शेयर बाज़ार से दूरी बनाए रखने में ही अपनी समझदारी समझता है। परंतु अब स्टाम्प ड्यूटी सम्बंधी नियमों को आसान बनाए जाने से एवं वन नेशन वन स्टाम्प ड्यूटी के सिद्धांत को लागू किए जाने के बाद से उम्मीद की जा रही है कि देश में शेयर बाज़ार एवं म्यूचूअल फ़ंड संस्कृति को विकसित करने में मदद मिलेगी।

इसी प्रकार, देश के कृषि क्षेत्र से निर्यात बढ़ाने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी ने कृषि क्षेत्र के लिए आधारिक संरचना विकसित करने के लिए एक लाख करोड़ रुपए के फ़ंड को अगले दो वर्षों के दौरान जारी करने का निर्णय लिया है। शीघ्र ख़राब होने वाले कृषि उत्पादों के लिए कोल्ड स्टोरेज की चैन देश के कोने कोने तक फैलाई जा रही है। केंद्र सरकार ने इसके लिए वित्त की व्यवस्था कर दी है एवं सबंधित विभागों को वित्त प्रदान भी कर दिया है।

कृषि उत्पादों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक शीघ्रता से पहुँचाने के लिए कुछ विशेष रेल गाड़ियाँ भी चलायी जा रही हैं। एपीएमसी क़ानून में संशोधन कर दिया गया है ताकि किसान अपनी उपज को जहाँ चाहें वहाँ आसानी से बेच सकें। साथ ही, कॉंट्रैक्ट फ़ार्मिंग पद्धति को भी स्वीकृति दे दी गयी है ताकि भविष्य में किसान किस प्रकार की उपज लेना चाहता है, इसका निर्णय वह आसानी से आज ही कर सके।

एक ज़िला एक उत्पाद की नीति भी घोषित की गई है, जिससे किसानों को एक एक जिले में विशेष प्रोडक्ट की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। जिस प्रकार सिक्किम का नाम आते ही आर्गेनिक कृषि का नाम ध्यान आ जाता है एवं केरल का नाम आते ही मसालों का नाम ध्यान आता है। उसी प्रकार देश के हर जिले के नाम पर कोई न कोई विशेष उत्पाद जुड़ जाना चाहिए, ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं।

इसके अलावा खनन, ऊर्जा आदि क्षेत्रों में भी देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार नीतिगत प्रयास कर रही है। आने वाले समय में निश्चित रूप से सरकार के इन प्रयासों का परिणाम देश की आत्मनिर्भरता के रूप में सामने आएगा।

(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। आर्थिक विषयों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)