कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करते समय मलेशियाई प्रधानमंत्री ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि मोदी सरकार पामोलीन का घरेलू उत्पादन बढ़ाकर उसके सबसे बड़े बाजार को खत्म कर देगी। गौरतलब है कि मोदी सरकार ने 11,040 करोड़ रूपये वाली राष्ट्रीय खाद्य तेल-पाम ऑयल मिशन को मंजूरी दी है। इससे देश दालों की भांति खाद्य तेल के मामले में भी आत्मनिर्भर हो जाएगा।
राष्ट्रीय खाद्य तेल-पाम ऑयल मिशन से एक ओर खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता घटेगी तो दूसरी ओर किसानों की आमदनी बढ़ेगी। सबसे बड़ी बात यह है कि देश का संतुलित कृषि विकास होगा। उल्लेखनीय है कि गेहूं-धान की एकफसली खेती को बढ़ावा देने से जिस देश के गोदाम गेहूं-चावल से भरे पड़े हैं वही देश दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य तेल आयातक बन चुका है। राष्ट्रीय खाद्य तेल-पाम ऑयल मिशन में सबसे ज्यादा जोर पामोलिन की खेती पर दिया गया है। इससे पाम ऑयल उद्योग में पूंजी निवेश और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
![](https://www.nationalistonline.com/wp-content/uploads/2021/08/1628517843611135d33db9e.jpeg)
देश के 12 तटीय राज्यों में पाम ऑयल उत्पादन की संभावनाएं हैं। इसे देखते हुए सरकार ने पाम ऑयल किसानों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता को 12,000 प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 29,000 रूपये कर दिया है। इसके अलावा फसल की देखभाल के लिए दी जाने वाली सहायता में भी बढ़ोत्तरी की गई है।
पुराने बागानों में दोबारा खेती के लिए 250 रूपये प्रति पौध के हिसाब से विशेष सहायता दी जाएगी। योजना के तहत प्रत्यक्ष नकदी अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से किसानों को मूल्य में कमी की भरपाई की जाएगी जो एमएसपी की तरह व्यवस्था होगी।
2025-26 तक पाम की खेती को 10 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 2029-30 तक 18 लाख हेक्टेयर तक करने की योजना है। वर्तमान में मात्र 3.4 लाख हेक्टयेर जमीन पर ही पाम के पौधे की खेती होती है। इसी तरह घरेलू पाम तेल का उत्पादन 2025-26 तक 11 लाख टन और 2029-30 तक 28 लाख टन करने का लक्ष्य है।
शहरीकरण, मध्य वर्ग का विस्तार, बढ़ती आमदनी, खान पान की आदतों में बदलाव के कारण खाद्य तेल की खपत हर साल 3 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है लेकिन इसके अनुपात में घरेलू उत्पादन नहीं बढ़ रहा है।
![](https://www.nationalistonline.com/wp-content/uploads/2021/08/Palm-Oil.jpg)
इसका परिणाम आयात पर निर्भरता के रूप में आ रहा है। देश में औसतन डेढ़ करोड़ टन खाद्य तेल का आयात होता है जिसमें से लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा पाम तेल (मुख्यत: मलेशिया-इंडोनेशिया से आयात) का होता है। इसके लिए हर साल एक लाख करोड़ रूपये की दुर्लभ विदेशी मुद्रा खर्च होती है।
यह पहली बार नहीं है जब तिलहनों का घरेलू उत्पादन बढ़ाने की योजना बनी हो। कई योजनाएं बनी लेकिन सत्ता पक्ष से जुड़े आयातकों की तगड़ी लॉबी के चलते योजनाएं सरकारी फाइलों से आगे नहीं बढ़ पाईं। इस बार ऐसा नहीं होगा क्योंकि मोदी सरकार तीन नए कृषि कानूनों के जरिए फसल विविधीकरण की योजना को लागू कर रही है। घरेलू तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने का ही नतीजा है कि पिछले कई महीनों से सरसों समर्थन मूल्य से उपर बिक रही है।
राष्ट्रीय खाद्य तेल-पाम ऑयल मिशन की सफलता से न केवल इंडोनेशिया-मलेशिया को भारी नुकसान होगा बल्कि तिलहनी फसलों की बिक्री से हर साल एक लाख करोड़ रूपये सीधे देश के किसानों की जेब में जाने लगेंगे।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)