सत्ता के लोभ में ‘जंगलराज’ के सामने हथियार डाल दिए हैं नीतीश!

बिहार  के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कल तक ‘सुशासन बाबू’ के तौर पर पहचाने जाते थे, लेकिन अब उनकी यह छवि पीछे छूटने लगी है। बिहार में अब सुशासन की चर्चा नहीं, अपराध की बहार है। शहाबुद्दीन की वापसी ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि बिहार में अपराध पर लगाम लगाने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नाकामयाब साबित हो रहे हैं। बिहार सरकार में शामिल राजद के विधायकों/मंत्रियों ने जिस तरह शहाबुद्दीन का स्वागत किया है और फूल बरसाए हैं, उससे भी जाहिर होता है कि भाजपा विरोध की राजनीति का हिस्सा बनकर नीतीश कुमार गलत जगह फंस गए हैं।
‘जंगलराज’ और ‘सुशासन’ का कोई मेल होता नहीं हैं। इनमें से एक ही संभव है। इसलिए जिसकी ताकत अधिक है, बिहार में उसी का शासन दिख रहा है। नीतीश के सुशासन पर लालू का जंगलराज भारी पड़ रहा है। भले ही जदयू और नीतीश कुमार ने शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने के मामले से दूरी बनाकर रखी हो, लेकिन प्रदेश के मुखिया होने के नाते अपनी जवाबदेही से कैसे मुँह चुरा सकते हैं? बिहार ही नहीं, बल्कि पूरा देश शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने की घटना को शुभ संकेत नहीं मान रहा है। जेल से बाहर आने के लिए शहाबुद्दीन का रास्ता साफ करने में बिहार सरकार ने जिस तरह की भूमिका निभाई है, उस पर निश्चित ही नीतीश कुमार को जवाब देना चाहिए। ये सब देखते हुए कहा जा सकता है कि नीतीश कुमार के सुशासन ने जंगलराज के सामने हथियार डाल दिए हैं।
बिहार सरकार के पिछले एक-डेढ़ साल के कार्यकाल से साबित होता है कि नीतीश कुमार ‘सुशासन बाबू’ भारतीय जनता पार्टी के कारण बन पाए थे। जदयू-भाजपा गठबंधन की सरकार के वक्त नीतीश कुमार के सुशासन को भाजपा का समर्थन था। जदयू और भाजपा दोनों का मुख्य एजेंडा विकास था। यानी सुशासन की प्रमुख हिस्सेदार भाजपा थी। लेकिन, इस बार नीतीश कुमार अपनी महत्वाकांक्षाओं (स्वयं को तीसरे मोर्चे का नेता प्रस्तुत कर प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब) के कारण भाजपा विरोध की राजनीति में शामिल हुए और भाजपा से रिश्ता तोड़कर राजद एवं कांग्रेस के साथ महागठबंधन का हिस्सा बन गए। चुनाव परिणाम महागठबंधन के पक्ष में आया, जिसमें लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद ने सबसे ज्यादा सीटें जीतीं। इस परिणाम से ही तय हो गया था कि नीतीश के लिए मुख्यमंत्री का ताज काँटों भरा रहेगा, जो बार-बार उन्हें पीड़ा देगा। संभव है कि यह गठबंधन पाँच साल पूरे न कर पाए। जदयू के नेता और पूर्व सांसद शहाबुद्दीन ने जेल से बाहर निकलते ही कहा भी है कि नीतीश कुमार परिस्थितियों के कारण मुख्यमंत्री हैं। नीतीश जनता के नेता (मास लीडर) भी नहीं हैं। उनके नेता सिर्फ लालू प्रसाद यादव हैं और वह लालू की राजनीति करते हैं।
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बिहार में जंगलराज के आगे बबाद नीतीश
नीतीश कुमार को अंदाजा नहीं रहा होगा कि इतनी जल्द ही उनकी सुशासन की छवि धूमिल हो जाएगी। उन्हें समझना चाहिए था कि लालू प्रसाद यादव का शासनकाल ‘जंगलराज’ के लिए कुख्यात रहा है। ईमानदारी से ‘जंगलराज’ और ‘सुशासन’ का कोई मेल होता नहीं हैं। इनमें से एक ही संभव है। इसलिए जिसकी ताकत अधिक है, बिहार में उसी का शासन दिख रहा है। नीतीश के सुशासन पर लालू का जंगलराज भारी पड़ रहा है। भले ही जदयू और नीतीश कुमार ने शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने के मामले से दूरी बनाकर रखी हो, लेकिन प्रदेश के मुखिया होने के नाते अपनी जवाबदेही से कैसे मुँह चुरा सकते हैं? बिहार ही नहीं, बल्कि पूरा देश शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने की घटना को शुभ संकेत नहीं मान रहा है। उल्लेखनीय है कि शहाबुद्दीन के खिलाफ हत्या, अपहरण, लूट और डकैती जैसे ३६ आपराधिक मामले दर्ज हैं। वह बेगुनाह साबित होकर जेल से बाहर नहीं निकला है, लेकिन सरकार में शामिल राजद शहाबुद्दीन को हीरो की तरह प्रस्तुत कर रहा है। जेल से बाहर आने के लिए शहाबुद्दीन का रास्ता साफ करने में सरकार ने जिस तरह की भूमिका निभाई है, उस पर निश्चित ही नीतीश कुमार को जवाब देना चाहिए। बहरहाल, बिहार में बने राजनीतिक परिदृश्य को देखकर कहा जा सकता है कि नीतीश कुमार अब सुशासन बाबू नहीं रहे हैं। उन्होंने जंगलराज के सामने हथियार डाल दिए हैं।
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)