अगर यही राष्ट्रवाद के उभार का दौर है तो सोचिये राष्ट्रवाद के बुरे दिन कैसे रहे होंगे!

यह बात दुनिया भर के विद्वान कह रहे हैं कि यह भारत के अंदर राष्ट्रवाद के उभार का समय है। लेकिन, इसी समय में जेएनयू की एक छात्रा देवी  सरस्वती का अपमान करने के लिए भारत भूषण अग्रवाल सम्मान से सम्मानित की जाती है। इस बात पर यकिन नहीं किया जा सकता है कि पुरस्कार के निर्णायक को कवयित्री के अश्लील रचना का ज्ञान ना हो। यदि उन्हें रचना का ज्ञान नहीं था, तो कम से कम अब भी वे अपना निर्णय वापस क्यों नहीं ले लेते? जब लिया हुआ पुरस्कार लौटाया जा सकता है, फिर वह पुरस्कार वापस क्यों नहीं लिया जा सकता जो अभी दिया ही नहीं गया?

हाल में मोहम्मद साहब के ऊपर टिप्पणी करने के आरोप में कमलेश तिवारी नाम का एक शख्स उत्तर प्रदेश में जेल के अंदर है। दूसरी तरफ, उसी तरह की भाषा में आस्था का अपमान करने के बाद भी एक छात्रा भारत भूषण पुरस्कार के लिए चुनी जा रही है। भारत के अंदर यदि यही राष्ट्रवाद का उभार है, तो इस देश में कथित राष्ट्रवाद ने कितने बुरे दिन देखे होंगे, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में ये कथित कवयित्री देवी सरस्वती के लिए जो कल्पना कर रही है, उसे बिहार के छपरा में दो युवक एक वीडियो में देवी सरस्वती,  देवी लक्ष्मी और ईश्वर गणेश की तस्वीर के साथ साकार कर रहे थे। इन तस्वीरों का अपमान वे दो युवक कर रहे थे, जिनके समाज के लोग मोहम्मद की तस्वीर बनाने पर जमीन और आसमान एक कर देते हैं। वास्तव में, इस देश का कम्यूनिस्ट ईश्वर (अल्लाह नहीं) के प्रति उतनी ही नफरत रखता है, जितना समुदाय विशेष के लोग। ये वे लोग हैं जो यह मानते हैं कि वंदे मातरम  उनके मजहब को कुबूल नहीं है। जो यह मानते हैं कि योग उनके मजहब को कुबूल नहीं है। जो यह अतार्किक और हठधर्मी मान्यता रखते हैं कि आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता।

मोहम्मद साहब के ऊपर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप में कमलेश तिवारी नाम का एक शख्स उत्तर प्रदेश में जेल के अंदर है। दूसरी तरफ, उसी तरह की भाषा में आस्था का अपमान करने के बाद भी एक छात्रा भारत भूषण पुरस्कार के लिए चुनी जा रही है। भारत के अंदर यदि यही राष्ट्रवाद का उभार है, तो इस देश में कथित राष्ट्रवाद ने कितने बुरे दिन देखे होंगे, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में ये कथित कवयित्री देवी सरस्वती के लिए जो कल्पना कर रही है, उसे बिहार के छपरा में दो युवक एक वीडियो में देवी सरस्वती,  देवी लक्ष्मी और ईश्वर गणेश की तस्वीर के साथ साकार कर रहे थे। इन तस्वीरों का अपमान वे दो युवक कर रहे थे, जिनके समाज के लोग मोहम्मद की तस्वीर बनाने पर जमीन और आसमान एक कर देते हैं। 

अपनी मान्यताओं के साथ इतनी हठधर्मी प्रतिबद्धता के साथ खड़े लोग यह क्यों नहीं जानते कि  इस देश की बड़ी आबादी जिन मान्यताओं के साथ जीती है, उन्हें उसका सम्मान करना चाहिए। इसीका परिणाम है कि इस वक्त बिहार का छपरा  जल रहा है। चार अगस्त से एक आपत्तिजनक वीडियो जिला में वायरल हो रहा था। छह अगस्त को इस वीडियो ने पूरे जिले को तनावग्रस्त कर दिया। इतना पत्थर  बरसा कि जिला मुख्यालय की सड़के पत्थरों और ईंटो से भर गईं। कायदे से, जिस समाज के युवक से गलती हुई थी, उस समाज के लोगों को उन्हें सामने लाकर उनके पाप के लिए माफी मांगनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

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साभार: गूगल

जिला एसपी जिन्हें शांति व्यवस्था बहाल करने में अहम भूमिका निभानी थी. वे पीड़ितों से ही पूछने लगे कि तुम लोग जो इस वीडियो का विरोध कर रहे हो, में से कितनों को हनुमान चालिसा याद है? ऐसा लगता है कि मानों उनके अंदर प्रदेश के तथाकथित सेकुलर मुख्यमंत्री की आत्मा का प्रवेश हो गया था। इसका परिणाम यह हुआ कि पीड़ित और अधिक आक्रोशित हो गए। एसपी की वजह से विधि-व्यवस्था बहाल करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया। इस तरह के औसत समझदारी वाले लोग यदि बिहार में एसपी हैं, तो इसके पीछे नीतीश कुमार के वरदहस्त का ही कमाल है। सारण का मकेर, परसा, सोनहो और  भेल्दी इस बवाल से प्रभावित हुए। 

बिहार से सांसद गोपाल नारायण सिंह के पास कुछ ग्रामीणों ने फोन करके बताया कि जिले में पुलिस उल्टा पीड़ितों पर एकतरफा  कार्रवाई कर रही है। उसके बाद श्री सिंह ने जिलाधिकारी दीपक आनंद से लंबी बात की। तब जाके जिलाधिकारी ने आश्वस्त किया है कि इस तरह का भेदभाव आगे से नहीं होगा। एसपी की मूर्खता को मुजफ्फरपुर जोन के आईजी सुनील कुमार, सारण के कमिश्नर नर्मदेश्वर लाल ने भी संभाला। डीएम दीपक आनंद ने बिना समय गंवाए जिले की इंटरनेट सेवा बंद करवाई। हालात इस वक्त नियंत्रण में हैं, लेकिन इस बात का भरोसा कौन देगा कि अगला वीडियो नहीं आएगा?  बहरहाल, छपरा का साहबगंज सबसे अधिक साम्प्रदायिक उन्माद से प्रभावित हुआ। यहां कई धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचा। जो लोग आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता, ऐसा मानते हैं, यदि उन्होंने थोड़ी समझदारी दिखाई होती तो बिहार में इस साम्प्रदायिक बवाल से बचा जा सकता था।

(लेखक पेशे से पत्रकार हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)