अनुच्छेद-370 हटाने का विरोध बताता है कि कांग्रेस ने पिछली गलतियों से कोई सबक नहीं लिया है!

भले ही तमाम मोदी विरोधी दल और नेता जम्‍मू-कश्‍मीर से धारा 370 हटाने का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी एक बार फिर आत्‍मघाती नीति पर चल पड़ी है। कांग्रेस के नेता आज सड़क से संसद तक अनुच्‍छेद 370 के पैरोकार बनकर उभरे हैं। कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी तो पाकिस्तान की तर्ज पर इसे यूएन में विचाराधीन मसला कहते हुए सरकार पर सवाल उठाने लगे। राहुल गांधी ने भी इसे असंवैधानिक बताया। कहने की जरूरत नहीं कि कांग्रेस एकबार फिर ऐसी गलती कर रही है, जो उसे भारी नुकसान पहुंचाएगी।

कांग्रेस की ऐतिहासिक भूल सुधारते हुए मोदी सरकार ने जम्‍मू-कश्‍मीर से धारा 370 को हटाने का ऐलान किया जिसके साथ जम्‍मू-कश्‍मीर को मिला विशेष राज्‍य का दर्जा भी खत्‍म हो गया। इसे मोदी सरकार की कुशल रणनीति ही कहेंगे कि मोदी विरोधी पार्टियां भी सरकार के फैसले का साथ दे रही हैं। इनमें आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, बीजू जनता दल, एआईडीएमके और वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख हैं।

लोकसभा में धारा-370 उन्मूलन पर वोटिंग परिणाम

यही कारण है जिस राज्‍य सभा में राजग को बहुमत नहीं था, वहां भी जम्‍मू–कश्‍मीर लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने वाला बिल आसानी से पास हो गया। जम्‍मू-कश्‍मीर पुनर्गठन बिल के पक्ष में 125 और विरोध में 61 वोट पड़े। लोक सभा में इस बिल के पक्ष में 351 और विपक्ष में 72 वोट पड़े। अब राष्‍ट्रपति के हस्‍ताक्षर होते ही जम्‍मू-कश्‍मीर के पुनर्गठन की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।

भले ही तमाम मोदी विरोधी दल और नेता जम्‍मू-कश्‍मीर से धारा 370 हटाने का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी एक बार फिर आत्‍मघाती नीति पर चल पड़ी है। कांग्रेस के नेता आज सड़क से संसद तक अनुच्‍छेद 370 के पैरोकार बनकर उभरे हैं। कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी तो विरोध की सब सीमाएं लांघते हुए पाकिस्तान की तर्ज पर इसे यूएन में विचाराधीन मसला कहते हुए सरकार पर सवाल उठाने लगे। अधीर रंजन के इस कथन के कारण कांग्रेस को इस मसले पर और अधिक आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। 

राहुल गांधी ने भी सरकार के इस कदम को असंवैधानिक बताया। कहने की जरूरत नहीं कि कांग्रेस एकबार फिर ऐसी गलती कर रही है, जो उसे भारी नुकसान पहुंचाएगी। कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता भुवनेश्‍वर कलिता ने कांग्रेस के इस रुख में भागीदार बनने से इनकार करते हुए पार्टी से इस्‍तीफा दे दिया। 

गौरतलब है कि कांग्रेस की ओर से राज्‍य सभा में व्हिप जारी करने का दायित्‍व भुवनेश्‍वर कलिता पर ही था, लेकिन उन्‍होंने व्‍हिप जारी करने के बजाए कांग्रेस छोड़ देना ही बेहतर समझा। इसी तरह वरिष्‍ठ कांग्रेसी नेता जनार्दन द्विवेदी ने धारा 370 हटाए जाने के मोदी सरकार के फैसले का यह कहते हुए समर्थन किया कि देर से ही सही इतिहास की पुरानी गलती को सुधारा गया। 

कांग्रेस युवा नेताओं की जमात में शामिल मिलिंद देवड़ा और दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी मोदी सरकार के फैसले का स्‍वागत किया। कांग्रेस की भद तो तब पिटी जब युवा कांग्रेसी और राहुल गांधी के खासमखास ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया ने जम्‍मू-कश्‍मीर के एकीकरण को देश हित में बताते हुए इसका समर्थन किया। दुर्भाग्‍यवश कांग्रेस इस बदलाव को नहीं समझ पा रही है और यही रूढ़िवादिता उसके पतन का कारण बन रही है।

हकीकत यह है कि अनुच्‍छेद 370 और 35ए के लिए कांग्रेस के पितृपुरुष नेहरू की सत्‍तालोभी नीति जिम्‍मेदार है। अनुच्‍छेद 35ए को 1954 में तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की ओर से जारी एक आदेश के जरिए गुप्‍त रूप से संविधान में शामिल कर दिया गया था। अनुच्‍छेद 35 ए जम्‍मू कश्‍मीर विधानसभा को राज्‍य के स्‍थायी निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार देता था।

इसके अनुसार जम्‍मू-कश्‍मीर के बाहर का कोई व्‍यक्‍ति राज्‍य में कोई संपत्‍ति नहीं खरीद सकता। इसके साथ ही कोई बाहरी व्‍यक्‍ति यहां की महिला से शादी करता है तो महिला न केवल जम्‍मू–कश्‍मीर की नागरिकता से वंचित कर दी जाएगी बल्‍कि संपत्‍ति पर से भी उसका अधिकार खत्‍म हो जाएगा। इससे साबित होता है कि कितना भारत विरोधी अनुच्‍छेद था यह। मगर, अब मोदी सरकार के प्रयास से यह अनुच्छेद इतिहास की बात हो चुका है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अब पीओके और अक्साई चीन को लेकर भी स्पष्ट रुख रखा। 

देखा जाए तो कश्‍मीर इकलौती समस्‍या नहीं है जो कांग्रेस और जवाहर लाल नेहरू द्वारा देश का मिजाज न समझ पाने के कारण पैदा हुई। फारस की खाड़ी में पहुंच बनाने के लिए चीन आज पाकिस्‍तान के जिस ग्‍वादर बंदरगाह का विकास कर रहा है, उसे 1950 के दशक में ओमान के शासक ने भारत को बेचने के लिए जवाहर लाल नेहरू से संपर्क किया था, लेकिन नेहरू ने अदूरदर्शिता का परिचय देते हुए बंदरगाह का स्‍वामित्‍व लेने से इनकार कर दिया।

इसके बाद 1958 में ओमान ने ग्‍वादर बंदरगाह को पाकिस्‍तान को सौंपा। यदि उस समय नेहरू ग्‍वादर के दूरगामी महत्‍व को समझकर उसका विलय भारत में कर लेते तो न सिर्फ मध्‍य एशिया में पहुंच के लिए भारत के पास एक अहम बंदरगाह होता बल्‍कि चीन ग्‍वादर तक पहुँच नहीं बना पाता। इसी प्रकार की अदूरदर्शिता का परिचय नेहरू  ने अक्‍साई चिन मामले में दिया। इस मामले में नेहरू ने चीन की ओर से मंडराते खतरे की घोर अनदेखी की। 

संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में स्‍थायी सदस्‍यता के मामले में भी नेहरू देश का मिजाज समझने में नाकाम रहे। 1950 के दशक में मुफ्त में मिल रही इस स्‍थायी सदस्‍यता को नेहरू जी ने सदाशयता दिखाते हुए चीन को दे दिया था। 1950 के दशक में नेहरू जी ने भारत का कोको द्वीप समूह बर्मा (अब म्‍यांमार) को उपहार में दे दिया। बाद में इस द्वीप समूह को म्‍यांमार ने चीन का उपहार में दे दिया और आज चीन इस द्वीप समूह को  भारतीय गतिविधियों पर निगरानी रखने का अड्डा बना रखा है।

इसके अलावा शाहबानों केस से लेकर तीन तलाक तक सैकड़ों मुद्दे ऐसे हैं जब कांग्रेसी सरकारों ने मुस्‍लिमपरस्‍ती, अदूरदर्शिता और अपने संकीर्ण स्वार्थों के कारण देश विरोधी काम किया। इसके बावजूद वे जनता के सिरमौर बने रहे तो इसलिए कि उस समय देश के मिजाज को समझने वाले नेताओं की कमी थी। अब उस कमी को भाजपा और नरेंद्र मोदी ने पूरा कर दिया है। ये सरकार न केवल कांग्रेस की गलतियों को उजागर कर रही बल्कि  उन्हें सुधार भी रही है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)