फिर टूटने की कगार पर पाकिस्तान !

अगर मुहाजिरों के संघर्ष के पन्नों को पलटें तो पाकिस्तान में मुहाजिरों ने अयूब खान के दौर में सबसे पहले 1959 में अपने हकों के लिए आवाज बुलंद करनी चालू कर दी थी। उसके बाद मुहाजिर युवाओं ने अपना 1978 में स्टुडेंट विंग खड़ा किया। फिर एमक्यूएम पार्टी की स्थापना 1984 की गई।  पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली में एमक्यूएम चौथी बड़ी पार्टी है। पहले इसका नाम मुहाजिर कौमी मूवमेंट था। बाद में इसे कर दिया गया मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पार्टी। बहरहाल, लगता ये है कि कश्मीर का राग अलापने वाला पाकिस्तान अभी कुछ और भागों में बंटेगा।

अगर आप पाकिस्तानी मीडिया को फोलो कर रहे हैं, तो आपने देखा होगा कि वहां पर पंजाबी बनाम शेष वाली स्थिति पैदा हो चुकी है। बलूचिस्तान और सिंध सूबों की जनता में देश के  सबसे बड़े सूबे यानी पंजाब के प्रति नफरत का भाव है। कुछ समय पहले बलूचिस्तान में हुई दो अलग-अलग घटनाओं में 16 पंजाबी मूल के लोगों को गोलियों से मार डाला गया।

इन दोनों घटनाओं के विरोध में पंजाब में कसकर विरोध प्रदर्शन हुए। आम-खास सभी का कहना था कि पाकिस्तान की जान पंजाब है और वहां के ही वाशिंदों को मारा जाना बर्दाश्त से बाहर है। हालांकि मासूमों का कत्ल निंदनीय है, पर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की वहाँ जिस प्रकार की गुंडई स्थापित है, उसके चलते  अब पंजाब से इतर राज्य जाग गए हैं। वे अब पाकिस्तान से मुक्ति चाहने लगे हैं।

सांकेतिक चित्र

थर्राती पाक सरकार

उधर, सिंध की राजधानी कराची में मुहाजिर यानी उर्दू बोलने वाले अपनी ही पाकिस्तानी सरकार की ज्यादतियों के विरोध में सड़कों पर उतर चुके हैं। कुछ समय पहले वाशिंगटन में व्हाइट हाऊस के बाहर इन्होंने मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) के बैनर तले प्रदर्शन किया। व्हाइट हाऊस के बाहर प्रदर्शन करने वालों का वहां पर मौजूद अपने ही मुल्क के पंजाबी भाषियों से हाथा-पाई भी हुई। ये प्रदर्शन इसलिए कर रहे थे ताकि अमेरिकी सरकार उनके हित में पाकिस्तान सरकार पर दबाव बनाए। एमक्यूएम के प्रदर्शनकारियों को इनके लंदन में निर्वासित जीवन व्यतीत करने वाले नेता अल्ताफ हुसैन ने वीडियो लिंक के माध्यम से संबोधित किया। अल्ताफ हुसैन से  पाकिस्तान सरकार थर्राती है। उसका नाम सुनते ही पाकिस्तान सरकार और सेना के आला अफसरों के हाथ-पांव फूलने लगते हैं। 

आग-बबूला बलूचिस्तान

बलूचिस्तान में भी सघन पृथकतावादी आंदोलन चल रहा है। पाकिस्तान सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ है बलूचिस्तान। चीन की मदद से बन रहे ग्वादर पोर्ट के इलाके में  चल रहा पृथकतावादी आंदोलन अब बेकाबू हो रहा है। आंदोलन इसलिए हो रहा है, क्योंकि स्थानीय जनता का आरोप है कि चीन जो भी निवेश कर रहा है, उसका असली मकसद बलूचिस्तान का नहीं, बल्कि चीन का अपना फायदा है। बलूचिस्तान के प्रतिबंधित संगठनों ने धमकी दी है कि चीन समेत दूसरे देशों को बलूचिस्तान की प्राकृतिक संपदा को लूटने नहीं दिया जाएगा। इन संगठनों ने बलूचिस्तान में काम कर रहे चीनी इंजीनियरों पर हमले बढ़ा दिए हैं।

आपको बता दें कि 790 किलोमीटर के समुद्र तट वाले ग्वादर इलाके पर चीन की हमेशा से नजर रही है। बलूचिस्तान की अवाम का कहना है कि जैसे 1971 में पाकिस्तान से कटकर बांग्लादेश बन गया था, उसी तरह एक दिन बलूचिस्तान अलग देश बन जाएगा। बलूचिस्तान के लोग किसी भी कीमत पर पाकिस्तान से अलग हो जाना चाहते हैं। बलूचिस्तान पाकिस्तान के पश्चिम का राज्य है, जिसकी राजधानी क्वेटा है। बलूचिस्तान के पड़ोस में ईरान और अफगानिस्तान है। 

बलूचिस्तान मांगे आजादी

बता दें कि सन 1944 में ही बलूचिस्तान को आजादी देने के लिए माहौल बन रहा था। लेकिन, 1947 में इसे जबरन पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया। तभी से बलूच लोगों का संघर्ष चल रहा है और उतनी ही ताकत से पाकिस्तानी सेना और सरकार बलूच लोगों को कुचलती रही है। आजादी की लड़ाई के दौरान भी बलूचिस्तान के स्थानीय नेता अपना अलग देश चाहते थे। लेकिन, जब पाकिस्तान ने फौज और हथियार के दम पर बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया तो वहां विद्रोह भड़क उठा था। वहां की सड़कों पर अब भी ये आंदोलन जिंदा है।

मुहाजिर विरोधी पाक

इस बीच, अल्ताफ हुसैन पूरी दुनिया में पाकिस्तान सरकार के मुहाजिर विरोधी चेहरे को बेनकाब करने में लगे हुए हैं। उनका एक मात्र एजेंडा पाकिस्तान सरकार की जनविरोधी करतूतों को दुनिया के सामने लाना है। अल्ताफ हुसैन ने आरोप लगाया था कि पाकिस्तान की पंजाबी बहुमत वाली आर्मी मुहाजिरों का कत्लेआम कर रही है। सेना वहां पर हजारों मुहाजिरों को मार चुकी है। वहां पर सरकार उन्हें उनके वाजिब हक भी नहीं देती।

उन्होंने ये भी कहा कि पाकिस्तान में मुहाजिर वह कौम है, जो एक तरह से धरती पुत्र नहीं हैं। वे तो भारत के बहुत से सूबों से जाकर मुख्य रूप से सिंध के शहर कराची में बसे थे। मुहाजिरों का कराची और सिंध में हमेशा से तगड़ा प्रभाव रहा है। ये आमतौर पर पढ़े-लिखे हैं। इनमें मिडिल क्लास काफी हैं। ये सिंध की सियासत को तय करते रहे हैं। अभी इनकी आबादी पाकिस्तान में करीब दो करोड़ मानी जाती है।

साथ दे भारत

अल्ताफ हुसैन अपने भाषणों में  बार-बार भारत का जिक्र करते हैं। कहते हैं, मुहाजिरों का संबंध भारत से है। इसलिए भारत को उनके पक्ष में खड़ा होना चाहिए। भारत को मुहाजिरों के कत्लेआम को सहन नहीं करना चाहिए। उन्होंने अपनी तकरीर में पाकिस्तान आर्मी की 1971 की भारत से जंग में हारने पर खिल्ली उड़ाई। पाकिस्तान आर्मी पर की गई इस कठोर टिप्पणी से तो वहां सरकार और सेना को आग लग गई है।

अगर मुहाजिरों के संघर्ष के पन्नों को पलटें तो पाकिस्तान में मुहाजिरों ने अयूब खान के दौर में सबसे पहले 1959 में अपने हकों के लिए आवाज बुलंद करनी चालू कर दी थी। उसके बाद मुहाजिर युवाओं ने अपना 1978 में स्टुडेंट विंग खड़ा किया। फिर एमक्यूएम पार्टी की स्थापना 1984 की गई।  पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली में एमक्यूएम चौथी बड़ी पार्टी है। पहले इसका नाम मुहाजिर कौमी मूवमेंट था। बाद में इसे कर दिया गया मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पार्टी। बहरहाल, लगता ये है कि कश्मीर का राग अलापने वाला पाकिस्तान अभी कुछ और भागों में बंटेगा।

(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)