आंबेडकर पञ्चतीर्थों से कबीर अकादमी तक सामाजिक सद्भावना का सन्देश

इसमें संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामाजिक समरसता के अनेक केंद्रों को उनकी गरिमा के अनुकूल प्रतिष्ठा प्रदान की है। ये सभी कार्य कई दशक पहले हो जाने चाहिए थे। मोदी भी इस ओर ध्यान न देते तो कोई उन्हें दोष देने वाला नहीं था, क्योंकि किसी भी पार्टी ने सत्ता में रहते हुए अपने इस दायित्व का निर्वाह नहीं किया था।

नरेंद्र मोदी द्वारा प्रतिष्ठित सद्भाव और समरसता केंद्रों में एक नया नाम जुड़ा। उन्होंने मगहर में कबीर अकादमी का शिलान्यास किया। नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ दोनों कबीर वाणी समझते हैं, उनके विचारों को आज के संदर्भ से जोड़ कर इन्होंने अपनी बात रखी।

माघार में कबीर अकादमी का शिलान्यास [फोटो साभार : The Hindu]

मोदी ने निहित स्वार्थ के कारण देश की छवि बिगाड़ने वालों से सावधान रहने का पर जोर दिया। योगी ने कबीर के व्यापक चिंतन का उल्लेख किया। इसे आज की राजनीति से जोड़ा। कहा कि सीमित सोच वाले लोग ही जातिवाद और क्षेत्रवाद को बढ़ावा देते हैं। ऐसे लोग देश-प्रदेश का कभी भला नही कर सकते। इस प्रकार नरेंद्र मोदी द्वारा आंबेडकर पंचतीर्थ स्थापना के साथ शुरू की गई सद्भाव यात्रा आगे बढ़ी। 

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ भी इसी मिशन पर कार्य कर रहे हैं। कुछ समय पहले उन्होंने सीरगोवर्धन में सन्त रैदास के स्मारक को भव्य बनाने और इसे विश्व स्तरीय तीर्थ बनाने का निर्णय लिया था। इसी के साथ वह राम कृष्ण और बौद्ध सर्किट पर भी तेजी से कार्य कर रहे हैं।

इसमें संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामाजिक समरसता के अनेक केंद्रों को उनकी गरिमा के अनुकूल प्रतिष्ठा प्रदान की है। ये सभी कार्य कई दशक पहले हो जाने चाहिए थे। मोदी भी इस ओर ध्यान न देते तो कोई उन्हें दोष देने वाला नहीं था, क्योंकि किसी भी पार्टी ने सत्ता में रहते हुए अपने इस दायित्व का निर्वाह नहीं किया था।

साभार : Narendramodi.in

नरेंद्र मोदी ने डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर के जीवन से जुड़े पांच स्थानों को भव्य स्मारक का रूप प्रदान किया। इसमे लंदन स्थित आवास, उनके जनस्थान, दीक्षा स्थल, इंदुमिल मुम्बई और नई दिल्ली का अंतर्राष्ट्रीय शोध संस्थान शामिल हैं। यह अपने ढंग का अद्भुत संस्थान है, जिसमें एक ही छत के नीचे डॉ आंबेडकर के जीवन को आधुनिक तकनीक के माध्यम से देखा-समझा जा सकता है। पिछले दिनों मोदी ने यह संस्थान राष्ट्र को समर्पित किया था। संयोग  देखिये, इसकी कल्पना अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी और इसे पूरा नरेंद्र मोदी ने किया।

बसपा के समर्थन से दस वर्ष चली यूपीए सरकार ने एक ईंट भी नहीं लगाई। मोदी ने निर्धारित सीमा में इसका निर्माण कार्य पूरा कर दिया। यह भी उल्लेखनीय है कि इन स्मारकों के निर्माण में भ्र्ष्टाचार आदि का कोई आरोप नहीं लगा, न मोदी ने कहीं भी अपना नाम या मूर्ति लगवाने का प्रयास किया। वे चाहते हैं कि भावी पीढ़ी महापुरुषों और सन्तो से प्रेरणा ले, जिन्होंने पूरा जीवन समाज के कल्याण में लगा दिया।

नरेंद्र मोदी ने कबीर दास के सामाजिक चिंतन का उल्लेख किया। उन्हें आज के सन्दर्भो से जोड़ा। मोदी ने कबीर के छह सौ बीसवें प्राकट्य दिवस पर यहां आने का निर्णय लिया था। इस अवसर को भी उन्होंने विकास से जोड़ दिया। मगहर में विकास की अनेक योजनाएं चलाई जाएंगी। साथ ही, मोदी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के अलावा देश के समग्र विकास के प्रति कटिबद्धता व्यक्त की।

मोदी ने कहा कि ‘आजादी के इतने वर्षों तक देश के कुछ ही हिस्से में विकास की रोशनी पहुंच सकी थी। हमारी सरकार का प्रयास है कि भारत भूमि की एक-एक इंच की जमीन को विकास की धारा के साथ जोड़ा जाए। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने इस जगह के लिए एक सपना देखा था, जिसके अनुरूप मगहर को अंतरराष्ट्रीय मानचित्र में सद्भाव और समरसता केंद्र के तौर पर विकसित करने का काम अब किया जा रहा है।‘

तीन तलाक का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि देश में मुस्लिम बहनें तीन तलाक से मुक्ति की मांग कर रही हैं, लेकिन तीन तलाक के रास्ते में रोड़े अटकाए जा रहे। सत्ता का लालच ऐसा है कि आपातकाल लगाने वाले और उस समय आपातकाल का विरोध करने वाले एक साथ आ गए हैं।

देखा जाए तो कबीर बड़ी निर्भीकता से हिन्दू-मुसलमान दोनों की कुरीतियों पर प्रहार करते थे। वह निर्गुण राम के उपासक थे। जातिभेद से मुक्त समरसता के समाज की स्थापना चाहते थे। असहमति के बिंदु हो सकते हैं, लेकिन उनके विचारों की उदारता प्रभावित करती है। इसका बड़ा कारण यह हो सकता है कि वह हिन्दू और मुसलमान दोनों की कुरीतियों पर समान रूप से विचार व्यक्त करते थे। आज वोटबैंक की राजनीति ने चिंतन के दायरे को बहुत सीमित कर दिया है। केवल चुनावी चिंता से समाज का भला नही हो सकता।

नरेंद्र मोदी भी चुनावी राजनीति में हैं। वह भी अपनी पार्टी को विजयी बनाने का प्रयास करते हैं। लेकिन इसी को समाज जीवन की सिद्धि नही मानते। वह इससे आगे तक कि सोचते हैं। भावी पीढ़ियों और समाज के भविष्य के बारे में सोचते हैं। पंचतीर्थ से लेकर कबीर स्मारक तक उनके सभी प्रयास सामाजिक समरसता की प्रेरणा देने वाले हैं।

कबीर में प्रबल आत्मबल था, इसीलिए उन्होंने मगहर के मिथक को स्वीकार नहीं किया। यहां आकर उन्होंने कर्मफल के सिद्धांत को महत्व दिया। उन्होंने सन्देश दिया कि ऐसा नहीं हो सकता कि अच्छे कर्म करने वाले को मगहर में रहने के कारण नर्क और काशी में खराब कर्म करने वाले को स्वर्ग मिले।

प्राचीन भारतीय चिंतन में भी कर्मफल सिद्धान्त को बहुत महत्व दिया गया है। नरेंद्र मोदी भी इसी से प्रेरित होकर मगहर आये। योगी आदित्यनाथ ने भी इसी के अनुरूप नोएडा और छिबरामऊ की यात्रा की थी। ऐसे निर्णय आत्मबल से ही होते हैं। चुनाव में हार-जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण पूरी ईमानदारी से  कर्तव्य पालन करना होता है। मोदी और योगी ऐसा ही कर रहे हैं। इसलिए वह कबीरदास को सच्ची श्रद्धांजलि दे सके। यह उम्मीद करनी चाहिए कि मगहर को विश्व पर्यटन के मानचित्र पर उचित स्थान मिलेगा।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)