ये कैसे ‘भारतीय नेता’ हैं जिन्हें अपने देश की सेना और सरकार पर ही भरोसा नहीं

कैसी विडंबना है कि सैम पित्रोदा को चंद विदेशी अखबारों पर तो विश्वास है, लेकिन अपने जवानों, अपने वायु सेना प्रमुख पर विश्वास नहीं है। अमित शाह ने सैम पित्रोदा को आड़े हाथों लिया है। कहा कि कांग्रेस शहीदों के खून पर राजनीति करती है। पित्रोदा के बयान पर उसे देश से माफी मांगनी चाहिए।

आतंकी हमले और आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक पर नकारात्मक सियासत भारत में ही संभव है। यहां अनेक नेता लगातार पाकिस्तान और आतंकी संगठनों के प्रति हमदर्दी के बयान दे रहे हैं। ऊपर से तुर्रा यह कि सरकार इस मामले का चुनावी फायदा उठाना चाहती है। लेकिन इस विषय को चुनाव तक चलाने का कार्य तो विपक्ष के नेता ही कर रहे हैं। कुछ अंतराल पर इनके बयान आने का सिलसिला बन गया है। 

ऐसे नेताओं को अपनी सेना पर विश्वास नहीं है, इन्हें आतंकी संगठन जैश मोहम्मद के आतंकी हमला करने पर यकीन नहीं है, इन्हें एयर स्ट्राइक पर भरोसा नहीं है, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा सुरक्षा परिषद में जैश सरगना के खिलाफ लाये गए प्रस्ताव को ये समझने को तैयार नहीं हैं, विश्व इस्लामिक देशों का सम्मेलन और वहाँ भारत को अभूतपूर्व समर्थन-सम्मान मिलना भी इनकी वोटबैंक सियासत में फिट नहीं बैठता। इस सम्मेलन में भारत के लिए पाकिस्तान को भी नजरअंदाज किया गया।

एयर मार्शल बीएस धनोआ स्पष्ट कर चुके हैं कि भारतीय वायुसेना लक्ष्यों पर बम गिराने में कामयाब रही। बात साफ़ है कि ऑपरेशन सफलतापूर्वक हुआ।   वैसे भी यदि जंगल में बम गिराते तो पाक क्यों बौखलाता। यदि जंगल में बम गिराए गए होते तो फिर पाकिस्तान जवाब क्यों देता।

इसके अलावा नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन ने बालाकोट पर सर्जिकल स्ट्राइक के दिन तीन सौ एक्टिव मोबाइल कनेक्शन की पुष्टि की है। इसका मतलब है कि वहां जैश के कैंप में तीन सौ से अधिक आतंकी  थे। इस बात की पुष्टि इलेक्ट्रॉनिक तरंगो से मिले सबूतों के जरिए हो रही है। हमले के समय नैशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन ने सर्विलांस शुरू कर दिया था। इसके बावजूद कांग्रेस, आप, राजद और सपा नेताओं को आतंक के खिलाफ कार्रवाई का सबूत चाहिए।

दिग्विजय सिंह, सिद्धू वगैरह के बाद अब कांग्रेस के सैम त्रिपोदा और  सपा के रामगोपाल यादव चर्चा में आये हैं। लेकिन  यह नामदारी नकारात्मक है, दोनों ने ऐसा बयान दिया, जिसका खमियाजा इनकी अपनी ही पार्टी को उठाना पड़ रहा है। इसके पहले  सैम तब चर्चा में आये थे जब एक विधानसभा चुनाव में उनकी जाति को मंच से सार्वजनिक किया गया था।

राम गोपाल यादव पिछली बार तब चर्चा में आये थे, जब उनकी सलाह पर लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में सपा का आपात अधिवेशन बुलाया गया था। इसमें चंद मिनट में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिया गया था, उनकी जगह पर अखिलेश यादव को कमान सौंपी गई थी। तब रामगोपाल को  चाणक्य बताया गया था। कहा गया था कि सपा को अब दुबारा सत्ता में आने से कोई रोक नहीं सकेगा। परिणाम आया तो असलियत सामने आ गई। 

पित्रोदा का कहना है कि आठ लोगों के कारण पूरे पाकिस्तान को दोषी मानना गलत है। मुम्बई हमले के बाद यूपीए सरकार सर्जिकल स्ट्राइक कर सकती थी, लेकिन उसने कुछ आतंकियों की हरकत के लिए पूरे पाकिस्तान को दोषी नहीं माना, इसलिए कार्यवाई नहीं की। पाकिस्तान को हम सजा नहीं दे सकते। उन्होंने आगे कहा कि क्या सरकार सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर सबूत देगी और साबित करेगी। 

इस महीने के प्रारंभ में राहुल गांधी ने भी कहा था कि सर्जिकल स्ट्राइक पर उठ रहे सवालों का जबाब मिलना चाहिए। अमित शाह ने उनसे सही पूछा कि सवाल उठा कौन रहा है? सवाल देश की आम जनता नहीं बल्कि कांग्रेस के नेता ही उठा रहे हैं। यही कारण है कि वह सैम पित्रोदा के बयान पर सफाई देने से बच रहे हैं।

बिडंबना देखिये कि सैम पित्रोदा भी अपने को गांधीवादी मानते हैं। यह ऐलान उन्होंने खुद किया है। यही स्थिति सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की है। राम गोपाल यादव के बयान पर अखिलेश की प्रतिक्रिया राहुल गांधी की तर्ज पर आधारित है। वह कहते हैं कि प्रजातंत्र में सवाल उठना लाजमी है और सरकार प्रश्न पूछने से रोकना चाहती है जबकि सरकार ने किसी को प्रश्न पूछने से कभी न तो रोका है, न वह रोक सकती है। विपक्षी नेता मनमाने प्रश्न पूछ भी रहे हैं। लेकिन यदि कोई प्रश्न आतंकियों और पाकिस्तान का मनोबल बढ़ाने वाला हो, जिससे अपने सैनिकों का अपमान होता हो, ऐसे प्रश्न से विपक्षी नेताओं को स्वयं बचना चाहिए।

कैसी विडंबना है कि सैम पित्रोदा को चंद विदेशी अखबारों पर तो विश्वास है, लेकिन अपने जवानों, अपने वायु सेना प्रमुख पर विश्वास नहीं है। अमित शाह ने सैम पित्रोदा को आड़े हाथों लिया है। कहा कि कांग्रेस शहीदों के खून पर राजनीति करती है। पित्रोदा के बयान पर उसे देश से माफी मांगनी चाहिए।

राम गोपाल यादव ने कहा कि पुलवामा आतंकी हमले में वोटों की राजनीति के लिए देश के जवानों की बलि चढ़ा दी गई। राम गोपाल ने देश की सरकार पर पुलवामा हमले का आरोप लगाया है जिसकी जिम्मेदारी जैश-ए-मुहम्मद पहले ही ले चुका है। इसका मतलब है कि वह पाकिस्तान को निर्दोष मानते हैं। इस बयान से यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि सपा महासचिव केंद्र में किस तरह की सरकार चाहते हैं। ऐसी सरकार जो पाकिस्तान के खिलाफ मुलायम रहेगी, आतंकी हमलों पर अपने ही लोगों पर संदेह करेगी।

देखा जाए तो एयर स्ट्राइक की गूंज पूरी दुनिया में थी। पाकिस्तान में भी हड़कम्प मचा था। शीर्ष कमांडरों की लगातार बैठक चल रही थी। प्रधानमंत्री इमरान खान पर भारी दबाव पड़ रहा था। यही कारण था कि पाकिस्तान ने भारत पर हमले के लिए एफ-16 लड़ाकू विमान भेजा था। पाकिस्तान के कई आतंकी सरगना भी  हमले का रोना रो रहे थे। गजब है कि इसके बावजूद कुछ भारतीय नेताओं को सबूत चाहिए। यह देश को शर्मशार करने वाली सियासत है जिसके लिए इन नेताओं को जनता माफ़ नहीं करेगी।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)