ऊर्जा सुरक्षा पर सार्थक कूटनीति

  सुशील कुमार सिंह

भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है। आबादी के हिसाब से ही भारत की जरूरते भी हैं। विकास के पहिए को गति देने के लिए ऊर्जा के क्षेत्र में 13393930_10157092751420165_7628758139669827475_nभी गतिमान होना जरूरी है। इस जरूरत को भारत अच्छी  तरह से समझता है। वर्तमान सरकार के एजेंडे में भी ऊर्जा विकास प्रमुख है। शायद यहीं कारण है कि पीएम मोदी की विदेश यात्राओं  में उन देशों की यात्रा  भी शुमार  है, जहां पर ऊर्जा सम्बन्धी  संभावनाएं हैं। यहीं कारण है कि भारत सरकार अपनी ऊर्जा नीति को लेकर बहुत सतर्क और सक्रिय दिख रही है। तमाम जरूरतों के बीच ऊर्जा की जरूरत को लेकर प्रधानमंत्री मोदी बहुत संजीदा हैं, उन्हें मालूम है कि उच वृद्धि दर बनाये रखने के लिए ऊर्जा सुरक्षा नीति कितनी आवश्यक है। इसी के मद्देनजर पहले से चली आ रही ‘पश्चिम की ओर देखो नीति’ को अपनी कतर-यात्रा से पुख्ता बनाने की कोशिश की है। विगत दो वर्षो के कार्यकाल में तीन दर्जन से अधिक देशों की यात्र कर चूके पीएम मोदी की तीसरे वर्ष के कार्यकाल में यह पहली यात्र कही जायेगी जिसमें छ: दिन और पांच देश शामिल हैं। इसी में कतर भी शुमार है जिसकी यात्रा बीते दिनों समाप्त हो गयी। यहां यह सवाल उठता है कि भारत के लिए कतर इतना महत्वपूर्ण क्यों है? दरअसल कतर एक ऐसी पहचान रखता है जिस पर काफी हद तक भारत निर्भर है और उसके इसी आपूर्ति के चलते भारत ऊर्जा सुरक्षा के मामले में गारंटी प्राप्त करता है। देखा जाए तो ऊर्जा सुरक्षा नीति को लेकर भी भारत अपने वैश्विक दौरों को प्राथमिकता देता रहा है।इसी क्रम में कतर अहम् हो जाता है। मोदी के इस दौरे के दौरान जहां कई अहम समझौतों पर सहमति बनी। इस दौरे से मोदी न केवल भारत-कतर संबंधों को पुख्ता बनाने में कामयाब होते हुए दिखे बल्कि दोहा में उनकी उपस्थिति से कई अप्रत्यक्ष संदर्भों को भी बल मिला। दोनों देशों का निवेश के अतिरिक्त स्वास्थ, पर्यटन, कौशल विकास जैसे कई मुद्दों पर एकमत होना कई व्यावसायिक अनुप्रयोगों को भी बढ़ावा देने का काम करेगा जिसमें ऊर्जा सुरक्षा नीति काफी अहम है। दुनिया के प्रमुख तेल एवं गैस उत्पादक देश कतर के साथ हुए आधा दर्जन से अधिक करार प्रत्यक्ष व परोक्ष दोनों रूपों में भारत के लिए लाभकारी ही है। इसके पूर्व भी वर्ष 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कतर और ओमान की एक साथ यात्रा की थी। गौर करने वाली बात यह है कि कतर विश्व का सबसे बड़ा तरल प्राकृतिक गैस का निर्यातक है और भारत के साथ उसका दीर्घावधि का समझौता है जिसके तहत भारत को प्रति वर्ष 7.5 मिलियन टन एनएनडी की आपूर्ति करता है। हालांकि भारत इसे और बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। प्रधानमंत्री मोदी खाड़ी क्षेत्र के देशों के साथ संबंधों को सुधारने में काफी वक्त दे रहे हैं। बीते मई के आखिरी सप्ताह में वे ईरान की यात्रा पर थे। केवल कतर और ईरान ही नहीं, देखा जाय तो समूचा खाड़ी क्षेत्र भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। रही बात कतर की तो यहां 6 लाख से अधिक भारतीय मूल के लोग रहते हैं और वर्ष 2014-15 में कतर का भारत के साथ व्यापार डेढ़ लाख डॉलर को पार कर गया था। कतर भारत को सबसे अधिक एलएनजी के आपूर्तिकर्ता के साथ-साथ कचे तेल का प्रमुख स्नोत है। आवागमन के परिप्रेक्ष्य में भी कतर और भारत का संबंध अक्सर कायम रहा है। इसी क्रम को बरकरार रखते हुए वर्ष 2015 के मार्च में कतर के प्रमुख ने भी भारत की यात्र की थी। भले ही प्रधानमंत्री मोदी के साथ बीते दिनों ऊर्जा संदर्भ को लेकर कतर के साथ कोई बड़ा समझौता न देखने को मिला हो पर यह सच है कि मोदी प्रभाव के चलते कतर भारत की ऊर्जा सुरक्षा नीति पर और अधिक सकारात्मक रूख जरूर अपनायेगा। वैसे मोदी जिस भी देश में जाते हैं केवल कारोबार तक ही सीमित नहीं रहते बल्कि व्यक्तिगत प्रभाव से भी कूटनीति को साधने का काम करते रहे हैं। कतर के कारोबारियों को आमंत्रण देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने अंदाज में कहा कि भारत प्रचुर संभावनाओं वाला देश है तथा सरकार निवेश के रास्ते में आने वाली समस्त बाधाओं को दूर करने का वादा करती है। यह भी सही है कि निवेश के रास्ते में जो भी अड़चने रही हैं उसे लेकर भी मोदी सरकार ने काफी काम किया है। यहां तक कि कई पुराने कानूनों को न केवल समाप्त किया है बल्कि नये कार्यक्रमों और विधाओं को भी अंगीकृत करते हुए देश में विदेशी पूंजी को तुलनात्मक बढ़ाने का काम किया है जिसमें ‘मेक इन इंडिया’ जैसे कार्यक्रम वैश्विक लोकप्रियता हासिल कर चुके हैं। दोहा में मोदी का भारत के युवा श्रम का उल्लेख करना भी इसी बात की ओर इंगित करता है कि बुनियादी ढांचों और निहित विस्तार को लेकर भारत में आधुनिक और तकनीकी श्रम की कोई कमी नहीं है। लोककल्याणकारी राय में लोक के जीवन स्तर को सुधारने का काम अमूमन सरकारे करती रही हैं। इसके लिए कई बुनियादी स्नोतों की आवश्यकता होती है इस नजरिए से देखा जाए तो भी कतर के निवेशकों का ध्यान पीएम मोदी खींचने सफल रहे। मसलन भारत में कृषि उत्पाद प्रसंस्करण, रेलवे और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश को उन्होंने काफी फायदे वाला बताया है। इतना ही नहीं विदेशी निवेशक भी यह समझने लगे है कि भारत एक बड़ा बाजार हैं और यहां पर उनका निवेश फायदा ही दिलायेगा। जो नहीं समझ पाएं हैं उनको समझाना और भारत में निवेश को लेकर उनकी आशंकाओं को दूर करना भारत की जिम्मेदारी है। इस काम को पीएम मोदी ठीक से करते हुए दिख रहे हैं। वर्तमान अंतरराष्ट्रीय और वित्तीय स्थिति भारत के पक्ष में है, ऐसे में भारत के पास यह मौका है कि वह खाड़ी देशों से निवेश को भारत की ओर उन्मुख कर सके। कतर हाइड्रोकार्बन के मामले में भी धनी माना जाता है। भारत को हाइड्रोकार्बन के साथ-साथ भरपूर निवेश की जरूरत है। इस मामले में मोदी का यह दौरा एक सुगम पथ बना सकता है। कई क्षेत्रों के अलावा भारत और कतर के बीच शिक्षा का क्षेत्र भी संबंधों को बढ़ाने का एक आधार हो सकता है। फिलहाल जो सात अहम समझौते हुए हैं उनको भी किसी सूरत में कम नहीं आंका जाता सकता है। भारत सरकार अपनी साख को विदेशों में मजबूत करने की जो कोशिश कर रही है वह सराहनीय है। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि जो परिणाम आने वाले हैं, उनमें अभी समय लगेगा। वैसे कतर और भारत के बीच में जिस तर्ज पर आपसी समझ व साङोदारी बढ़ रही है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि भारत और कतर के रिश्ते पटरी पर हैं। हालांकि भारत-कतर के संबंध पहले से ही दोस्ताना रहे हैं और पूर्व में भी रक्षा व सुरक्षा संबंधित तमाम समझौते हुए हैं। ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर पाना हमारी सरकारों के लिए हमेशा से एक बड़ी समस्या रही है। ऐसे में कतर के साथ भारत की नजदिकियां ऊर्जा जरूरतों के लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण है।

 ( लेखक रिसर्च फॉउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक हैं, यह लेख  दैनिक  जागरण  में  ११ जून को प्रकाशित  हुआ  था )