राहुल के बोल से सवालों के घेरे में कांग्रेस

कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश की सेना से जुड़ा एक निंदनीय बयान दिया है। ऐसे समय में जब देश के लोग ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक एवं स्थिर देश भारत के समर्थन में हैं, राहुल गांधी ने ऐसी बहस को जन्म देने का काम किया है जिससे न सिर्फ सरकार बल्कि सेना का भी अपमान होता है। पता नहीं किन सन्दर्भों और प्रमाणों के आधार पर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा पर जवानों के ‘खून की दलाली’ करने का आरोप लगाया है! जब तक आतंकियों द्वारा हमलों में सेना के जवान शहीद हो रहे थे और कांग्रेस-नीत संप्रग सरकार ‘कड़ी निंदा’ से मामले को निपटा रही थी, तबतक राहुल गांधी को सेना के जवानों की याद नहीं आई। अब जब उरी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को मुहतोड़ जवाब दिया और सर्जिकल ऑपरेशन पीओके में घुसकर किया, तो राहुल गांधी इस स्तर की राजनीति पर उतर आये। ‘खून की दलाली’ का आरोप लगाने से पहले राहुल गांधी को देश में ‘दलाली’ का इतिहास जान लेना चाहिए। हालांकि उनकी इतिहास की समझ उनके ‘आलू की फैक्ट्री’ जैसे बयानों से सवालों के घेरे में पहले से है।

सन १९७१ में पाकिस्तान से युद्ध हुआ। तब राहुल गांधी की दादी यानी इंदिरा जी प्रधानमंत्री थीं। उस लड़ाई में न सिर्फ पाकिस्तान बुरी तरह परास्त हुआ बल्कि बांग्लादेश (तबका पूर्वी पाकिस्तान) का विभाजन भी हुआ। उसका श्रेय राहुल गांधी और कांग्रेस जब इंदिरा गांधी को देती है, तो क्या इसे कांग्रेस द्वारा हजारों सेना के जवानों के ‘खून की दलाली’ कहेंगे ? १९७१ का ऑपरेशन भी तो कांग्रेसियों द्वारा नहीं बल्कि देश की सेना द्वारा ही लड़ा गया था। लेकिन उसको कांग्रेस अपने श्रेय का विषय बनाकर आज भी पेश करती है। हालांकि इसमें कुछ बुरा नहीं है। नेतृत्व को श्रेय मिलना भी चाहिए। लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस की समस्या ये है कि श्रेय के मामले में वे निहायत स्वार्थी हैं। अपने कुल खानदान से इतर ‘नेहरु परिवार’ किसी कांग्रेसी को भी अच्छे कार्यों का श्रेय नहीं देना चाहता, मोदी तो फिर भी गैर-कांग्रेसी हैं।

इस देश ने पाकिस्तान से अनेक लड़ाईयां लड़ी हैं। पहली लड़ाई बंटवारे की लड़ाई थी, जिसके एक छोर पर राहुल गांधी के परनाना पंडित नेहरु खड़े थे और दूसरे छोर पर जिन्ना। सत्ता के लिए देश बंटा तो  न जाने कितने देशवासियों का खून बहा। क्या उसे सत्ता के लिए देश वासियों के ‘खून की दलाली’ कहा जाय ? सन १९७१ में पाकिस्तान से युद्ध हुआ। तब राहुल गांधी की दादी यानी इंदिरा जी प्रधानमंत्री थीं। उस लड़ाई में न सिर्फ पाकिस्तान बुरी तरह परास्त हुआ बल्कि बांग्लादेश (तबका पूर्वी पाकिस्तान) का विभाजन भी हुआ। उसका श्रेय राहुल गांधी और कांग्रेस जब इंदिरा गांधी को देती है, तो क्या इसे कांग्रेस द्वारा हजारों सेना के जवानों के ‘खून की दलाली’ कहेंगे ? १९७१ का ऑपरेशन भी तो कांग्रेसियों द्वारा नहीं बल्कि देश की सेना द्वारा ही लड़ा गया था। लेकिन उसको कांग्रेस अपने श्रेय का विषय बनाकर आज भी पेश करती है। हालांकि इसमें कुछ बुरा नहीं है। नेतृत्व को श्रेय मिलना भी चाहिए। लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस की समस्या ये है कि श्रेय के मामले में वे निहायत स्वार्थी हैं। अपने कुल खानदान से इतर ‘नेहरु परिवार’ किसी कांग्रेसी को भी अच्छे कार्यों का श्रेय नहीं देना चाहता, मोदी तो फिर भी गैर-कांग्रेसी हैं। वरना पटेल, शास्त्री, कामराज, नरसिम्हा राव सहित न जाने कितने नाम हैं जो अपनी योग्यता के योग्य प्रतिष्ठा तक कांग्रेस की सरकार रहते नहीं प्राप्त कर सके और संदिग्ध रूप से हाशिये पर चले गये। कांग्रेस आज भी उन्हें अछूत की तरह देखती है। खैर, जब बात ‘खून के दलाली’ की चल रही है तो राहुल गांधी से पूछा जाना चाहिए कि १९८४ कैसे भूल जाएँ। इंदिरा की हत्या के बाद दिल्ली में सिखों का कत्लेआम किया जा रहा था, तब राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी ने कहा था कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है! यहां सिक्खों की लाशों पर पर्यावरण और भू-विज्ञान का पाठ जनता को पढ़ाकर चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीत कर आये राजीव गांधी क्या इंदिरा गांधी के खून की दलाली किये थे ? भोपाल गैस त्रासदी में आरोपी वारेन एंडरसन को भगाने वालों से राहुल गांधी क्यों नहीं पूछते कि उस समय उनकी पार्टी के लोग किसकी दलाली कर रहे थे ? मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह का इकबालिया बयान है कि एंडरसन को सुरक्षित देश से बाहर निकालने का फैसला उनका नहीं केंद्र सरकार का था। अब केंद्र में तो राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी बैठे थे। राहुल गांधी बताएं कि भोपाल गैस त्रासदी में मारे गये मासूमों के खून की दलाली किसने खाई थी ?  राहुल गांधी को अपने अतीत में झांककर बयान देना चाहिए। जब पठानकोट और उरी हमला हुआ तो यही लोग प्रधानमंत्री मोदी को ’५६ इंच’ की उलाहना दे रहे थे। यानी नाकामी के लिए मोदी जिम्मेदार और कामयाबी के लिए श्रेय भी नहीं ?

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हालांकि मोदी सरकार ने तो सर्जिकल ऑपरेशन की प्रेस कांफ्रेंस भी रक्षामंत्री से न कराकर सेना के डीजीएमओ से कराई। इसका साफ़ मतलब है कि मोदी सरकार पूरा श्रेय सेना को देना चाहती है। लेकिन, दिक्कत ये हुई कि इस देश की जनता सेना के साथ-साथ मोदी सरकार को भी श्रेय का हिस्सेदार बताने लगी और राहुल गांधी को यह बर्दाश्त ही नहीं कि इस देश में उनके खानदान के अलावा किसी को कोई श्रेय दिया जाय। अगर भाजपा की बात करें तो भाजपा हमेशा से अन्तराष्ट्रीय मुद्दों पर विपक्ष में रहकर भी सरकार के साथ रही है। दीन दयाल उपाध्याय वांग्मय के लोकार्पण कार्यक्रम में दीन दयाल जी से जुड़ा एक प्रसंग सुनाते हुए वांग्मय के सम्पादक महेश चन्द्र शर्मा ने बताया कि उस दौरान एकबार जब तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु को लेकर किसी ने अभद्र टिप्पणी कर दी थी। तब जनसंघ के नेता दीन दयाल उपाध्याय ने कहा था कि देश के हर मंच से इसकी निंदा की जानी चाहिए। इसपर कुछ लोगों ने कहा कि अभी चुनाव का समय है और हम विपक्ष में हैं। इसका लाभ कांग्रेस को मिलेगा। पंडित उपाध्याय ने कहा कि जो भी हो हम अपने प्रधानमंत्री के लिए ऐसी भाषा बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। आज राहुल गांधी को दीन दयाल उपाध्याय के उन विचारों से कुछ सीखना चाहिए।

राहुल गांधी के इस निम्न स्तर की भाषा की आलोचना जब चारो तरफ हुई और भाजपा ने भी इसका प्रेस कांफ्रेंस से जवाब दिया तो कांग्रेस में ‘नेहरु-सल्तनत’ के वफादार बौखला गये। उन्होंने मामले को राहुल गांधी के ‘खून की दलाली’ वाले बयान से भटकाते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को अपराधी और तड़ीपार बता दिया। शायद जब यह बयान कपिल सिब्बल दे रहे थे उस समय उनको इस बात की याद नहीं आई कि खुद उनके उपाध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी सर्वकालिक अध्यक्ष सोनिया गांधी नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर हैं। जो खुद जमानत पर घूम रहे हों, उन्हें दूसरों को अपराधी नहीं बताना चाहिए। कपिल सिब्बल तो वकील हैं, सो उन्हें पता होना चाहिए कि अमित शाह को तो सर्वोच्च न्यायलय से क्लीन चिट मिल गयी है।  लेकिन राहुल गांधी और सोनिया गांधी तो जमानत भर के खुद को बचा रहे हैं। इनके उपाध्यक्ष राहुल गांधी हाल में ही संघ और गांधी पर दिए ऐसे ही एक गलतबयानी के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपने बयान से पलट चुके हैं। कपिल सिब्बल इसे लाख भटकाने की कोशिश करें अब तो देश ‘दलाली’ पर बहस करने को तैयार है। बोफोर्स की दलाली, सोनिया गांधी के मित्र क्वात्रोची की दलाली, भोपाल गैस त्रासदी में वारेन एंडरसन की दलाली करने वालों को देश में कांग्रेस और नेहरु सल्तनत के दौरान की गयी दलाली का इतिहास देखना चाहिए। देश की आम जनता अभी सेना और सरकार के साथ पूरे विश्वास के साथ खड़ी है, ऐसे में कांग्रेस को चाहिए कि अगर वो देश की सरकार और सेना का सम्मान नहीं कर सकती तो कम से कम अपमान तो नहीं ही करे।

(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउन्डेशन में रिसर्च फेलो हैं एवं नेशनलिस्ट ऑनलाइन डॉट कॉम के सम्पादक हैं।)