इस्लामिक कट्टरपंथ : आज इन्हें राष्ट्रगान से दिक्कत है, कल राष्ट्र से भी हो जाय तो आश्चर्य नहीं होगा!

हाल के दिनों में देश में कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिन्होंने इस्लाम के कट्टरपंथी चेहरे से अमन और मोहब्बत का नकाब नोचकर एकबार फिर उसकी हकीकत को सामने लाने का काम किया है। फिर एकबार स्पष्ट हुआ है कि इस समुदाय के लिए इसके मजहब यानी इस्लाम से बढ़कर कुछ नहीं है, राष्ट्र भी नहीं। विगत दिनों यूपी के इलाहाबाद स्थित एक विद्यालय में प्राचार्या समेत 8  शिक्षकों ने एक साथ इस्तीफा दे दिया, क्योंकि उस विद्यालय में उन्हें राष्ट्रगान गाने की अनुमति नहीं मिली।

भारत-भूमि की विशाल प्राकृतिक सम्पदा और समृद्धि को प्रतिबिंबित करता वन्दे मातरम् जैसा उत्कृष्ट राष्ट्रगीत मुस्लिमों को कहाँ से सांप्रदायिक नज़र आता है, यह अपने आप में एक शोध का विषय है। जाने कैसे इस गीत को गाने से इनका इस्लाम खतरे में पड़ जाता है ? दरअसल बात ये है कि इस समुदाय के दिमाग में इस्लाम  के अलावा और कुछ है ही नहीं, इनके लिए सिर्फ कुरआन का पाठ ही पाक है और खुदा की वंदना ही सबसे नेक है। इसके आगे राष्ट्र-समाज आदि कोई महत्व नहीं रखते। यही कारण है कि इन्हें कभी राष्ट्रगीत से दिक्कत होती है, तो कभी राष्ट्रगान से। अगर इनका वश चले तो ये कुरआन की किसी आयत को ही राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान घोषित करवा दें। इन स्थितियों को देखते हुए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कि आज इन्हें राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत से दिक्कत हो रही है, कल राष्ट्र से भी हो जाय तो आश्चर्य नहीं होगा।

विद्यालय के प्रबंधक जिया-उल-हक़ का कहना था कि राष्ट्रगान के ‘भारत भाग्य विधाता’ में ‘भारत’ शब्द से उन्हें आपत्ति है, क्योंकि उनका विधाता सिर्फ उनका खुदा हो सकता है। इसी कारण प्रबंधक महोदय ने उस विद्यालय में पिछले बारह वर्षों से राष्ट्रगान पर प्रतिबन्ध लगा रखा था। अब मामला प्रकाश में आने के बाद जब विरोध शुरू हुआ तो प्रशासन ने सक्रियता दिखाई और प्रबधक पर देशद्रोह आदि की धाराएं लगाकर जेल भेज दिया। गौर करें तो ये कोई पहला मामला नहीं है, जब मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को राष्ट्र की प्रशस्ति में गाए जाने वाली आधिकारिक वन्दनाओं से आपत्ति हुई हो, इससे पहले राष्ट्रगीत ‘वन्दे मातरम्’ का भी ये समुदाय जब-तब विरोध करता रहा हैं। ‘वन्दे मातरम्’ जैसा भारत-भूमि की विराट प्राकृतिक सम्पदा और समृद्धि को प्रतिबिंबित करता उत्कृष्ट राष्ट्रगीत इन्हें  कहाँ से सांप्रदायिक नज़र आता है, यह अपने आप में एक शोध का विषय है। जाने कैसे इस गीत को गाने से इनका इस्लाम खतरे में पड़ जाता है। दरअसल बात ये है कि इस समुदाय के दिमाग में इस्लाम  के अलावा और कुछ है ही नहीं, इनके लिए सिर्फ कुरआन का पाठ ही पाक है और खुदा की वंदना ही सबसे नेक है। इसके आगे राष्ट्र-समाज आदि कोई महत्व नहीं रखते। यही कारण है कि इन्हें कभी राष्ट्रगीत से दिक्कत होती है, तो कभी राष्ट्रगान से। अगर इनका वश चले तो ये कुरआन की किसी आयत को ही राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान घोषित करवा दें। इन स्थितियों को देखते हुए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कि आज इन्हें राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत से दिक्कत हो रही है, कल राष्ट्र से भी हो जाय तो आश्चर्य नहीं होगा।

Muslims shout slogans during a protest against the visit of author Salman Rushdie, after offering their Friday prayers, outside Jama Masjid in the old quarters of Delhi March 16, 2012. Rushdie is scheduled to speak at a conference on Friday, under two months after death threats forced the Booker Prize-winning author to pull out of Asia's biggest literary festival, the event organiser said earlier this week. REUTERS/Parivartan Sharma (INDIA - Tags: RELIGION CIVIL UNREST POLITICS)
साभार: गूगल

वैसे जिस इस्लाम के लिए ये इतना समर्पित रहते हैं, उसकी हालत तो ये है कि वो बेहद छोटी-छोटी चीजों से ही खतरे में पड़ जाता है। उपर्युक्त राष्ट्रगीत का उदाहरण हम देख ही चुके हैं। इसके अलावा कुछेक उर उदाहरण देखें तो टीवी धारावाहिक ‘कृष्णदासी’ में काम करने वाली सना आमीन शेख ने शूटिंग के दौरान सिन्दूर लगाया और मंगलसूत्र क्या पहना कि इस कट्टरपंथी सोच से ग्रस्त समुदाय का इस्लाम तुरंत खतरे में पड़ गया। इस्लामिक झंडाबरदारों द्वारा सना को हिदायतें दी जाने लगीं कि वे सिन्दूर और मंगलसूत्र से परहेज करें। ऐसे ही मध्यप्रदेश के मदरसे में बच्चों को मिड-डे मिल का खाना न खाने का फरमान यह कहते हुए जारी कर दिया गया कि ये खाना हिन्दूओं की तरफ से आता है, अतः मुसलामानों को नहीं खाना चाहिए। इससे धर्मभ्रष्ट होता है। ये तो हालत है इनके तथाकथित महान मजहब की जो किसी के एक चुटकी सिन्दूर लगाने से लेकर बच्चों के खाना खाने तक से खतरे में पड़ जाता है और ऐसे मजहब के लिए ये बुद्धिहीन जान लेने-देने तक को तैयार रहते हैं। वैसे, हिन्दू समुदाय के किसी व्यक्ति के जरा से उत्तेजक बयान पर भी असहिष्णुता का विलाप करने वाले देश के तथाकथित सेकुलर खेमे में भी इन मामलों पर ऐसे मौन पसरा है जैसे पूरा खेमा ही जबानी लकवे का शिकार हो गया हो। खैर, सेकुलरों की ये निर्लज्जता भी अब देश के लिए इस्लामिक कट्टरता के जितनी ही सुपरिचित हो चुकी है। देश इनकी हकीकत भी अच्छे से जान चुका है।

बहरहाल, गौर करें तो हिन्दू समुदाय के अनगिनत अभनेता-अभिनेत्रियाँ तमाम फिल्मों-धारावाहिकों में मुस्लिम व्यक्तियों के किरदार निभाते हैं और शूटिंग के दौरान नमाज़ अदा करने से लेकर सबकुछ उसीके कायदे अनुसार करते हैं। वास्तविक जीवन में भी तमाम हिन्दू लोग मुस्लिमों के पर्वों पर उनके अनुसार बरतते हैं और उनके यहाँ खाते-पीते भी हैं। पर इसपर कभी किसी हिन्दू ने तो आवाज नहीं उठाई कि इससे हिन्दू धर्म को खतरा है ? क्योंकि, हिन्दू धर्म इस्लाम की तरह कट्टर और कमजोर नहीं, परम उदार और सबको अपने में समाहित करने की विराट शक्ति से संपन्न है। इन छोटी-मोटी चीजों से इसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह अनंतकाल से चला आ रहा है और मुग़ल से लेकर अंग्रेज तक अपना पूरा जोर लगाने के बाद भी इसका कुछ अधिक नहीं बिगाड़ सके। यह इसकी विराट शक्ति का एक सशक्त उदाहरण है। अतः मुसलमानों को चाहिए कि वे हिन्दुओं, जिनके लिए सबसे पहले राष्ट्र होता है और उसके बाद ही कुछ और, से सीख लें तथा इस्लामिक कट्टरता के जाहिलपने से बाहर आकर राष्ट्र और इसकी चीजों का सम्मान करना सीखें। यही उनके लिए हर तरह से ठीक होगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)