भारतीय मूल्यों की संवाहक बन रही हैं जी-20 की बैठकें

भारत के एक युवा संन्यासी ने 1893 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित धर्म सम्मेलन में भारतीय जीवनदर्शन की पताका फहरायी थी। उस वैश्विक मंच पर आत्मविश्वास के साथ खड़े होकर स्वामी विवेकानंद ने यह सिद्ध किया था कि इस विश्व का कल्याण करने का विचार भारतीय संस्कृति एवं भारतीय जीवनमूल्यों में निहित है। ‘अमृतकाल’ में देवयोग से एक बार फिर, दुनियाभर में भारतीय मूल्यों के प्रति आकर्षण पैदा करने और उनके आधार पर सबका विश्वास जीतने के लिए जी-20 का मंच भारत को प्राप्त हुआ है।

संयोग देखिए कि जब भारत अपनी स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है, उसी समय उसे विश्व के प्रभावशाली देशों के संगठन ‘जी-20’ की अध्यक्षता का अवसर प्राप्त हुआ है। भारत को एक वर्ष के लिए जी-20 की अध्यक्षता का यह अवसर मिला है, जिसमें भारत ने 200 से अधिक जी-20 बैठकों का आयोजन करना निश्चित किया है। इन बैठकों का सिलसिला शुरू भी ही चुका है। विभिन्न मुद्दों को लेकर होनेवाली इन बैठकों में दुनियाभर से विद्वान एवं राजनयिक आएंगे। निश्चित ही भारत अपने आतिथ्य के साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति उनके मन को आकर्षित करने में सफल रहेगा।  

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने बीते वर्षों में निरंतर संपर्क-संवाद से जी-20 समूह में शामिल देशों के साथ जो संबंध विकसित किए हैं, उन्हें मित्रता का और गहरा रंग देने का भी यह अवसर है। व्यापक आर्थिक मुद्दों के साथ ही व्यापार, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन जैसे ज्वलंत मुद्दों पर आयोजित होनेवाली बैठकों में जब जी-20 के प्रतिनिधि एवं विषय विशेषज्ञ आएंगे, तब वे भारत से इन मुद्दों पर सम्यक दृष्टिकोण लेकर भी जाएंगे। ये ऐसे विषय हैं, जिन पर दुनिया बात तो कर रही है, लेकिन ठोस समाधानमूलक पहल इसलिए नहीं हो पा रही है क्योंकि समाधान की दृष्टि में सार्वभौमिक मूल्यों का अभाव है। 

जैसे पर्यावरण के मुद्दे पर सामर्थ्यशाली देश स्वयं तो भोगवादी प्रवृत्ति को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है परंतु विकासशील देशों से वे अपेक्षा कर रहे हैं कि कार्बन उत्सर्जन इत्यादि में कमी लाने के लिए प्रयास करें। भारत अपनी परंपरा के आलोक में उक्त विषयों पर जी-20 की बैठकों के दौरान विश्व का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

भारत ने जिस जोश एवं उत्साह के साथ जी-20 की अध्यक्षता का स्वागत किया, उसे देखकर यह समझा जा सकता है कि वर्तमान नेतृत्व ने पहले से कोई भावभूमि तैयार कर रखी है, जिस पर खड़े होकर वह भारतीय मूल्यों के आधार पर विश्व के प्रभावशाली देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रगाढ़ करेगा। कहना होगा कि भारत के पास यह ऐसा स्वर्णिम अवसर है, जो विश्वपटल पर भारत के कल्याणकारी विचार एवं मूल्यों की पुनर्स्थापना में सहायक सिद्ध होगा।

दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले समूह जी-20 की अध्यक्षता मिलने के साथ ही भारत ने सकल विश्व का मंगल करनेवाली भारतीय संस्कृति का प्रसार प्रारंभ कर दिया। भारत ने जी-20 की अध्यक्षता के अपने एक वर्ष के कार्यकाल का केंद्रीय भाव ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ रखा है।

दरअसल, भारत दुनिया को संदेश देने का काम कर रहा है कि इस धरती पर रहनेवाले हम सब एक ही परिवार के लोग हैं, इसलिए हम सबका भविष्य एक ही है। इसलिए सबको मिलकर इस प्रकार के निर्णय करने होंगे, जिनमें सबका साझा हित हो। कहीं भी मानवता विरोधी गतिविधि चलती है, तब ऐसा नहीं मानना चाहिए कि उसका असर हम पर नहीं होगा। 

चूँकि हम सबके हित एक-दूसरे से जुड़े हैं, इसलिए प्रभाव पड़ना स्वभाविक है। इसको समझने के लिए रूस-यूक्रेन का युद्ध, नवीनतम और सबसे सटीक उदाहरण है। दो देशों के बीच युद्ध चल रहा है लेकिन उसका असर दुनियाभर में दिखायी दे रहा है। एक दौर था जब विश्व के बड़े देश यथा- अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन इत्यादि आतंकवाद को वैश्विक मुद्दा नहीं मानते थे। 

भारत ने वैश्विक पटल पर यह स्थापित करने का भरसक प्रयास किया कि भले ही दुनिया को लग रहा होगा कि आतंकवाद केवल भारत के लिए समस्या है लेकिन सही मायने में यह समूची मानवता एवं दुनिया के अन्य देशों के लिए भी खतरा बनेगा। भारत की इस बात को बहुत जल्द ही दुनिया ने अनुभव कर लिया, जब अमेरिका और ब्रिटेन से लेकर फ्रांस तक आतंकवाद के हमले हुए। 

जी-20 में जिन विषयों पर चर्चा होनेवाली है, वे सब भी ऐसे ही विषय हैं, जिनसे सबके हित प्रभावित होते हैं। जब तक उन विषयों को लेकर आम सहमति नहीं बनेगी, तब तक समाधान निकलना कठिन है। इसलिए भारत का प्रयास है कि उक्त विषयों पर आम सहमति बने। इसी दिशा में भारत यह भाव जगाने का प्रयास कर रहा है कि यह दुनिया एक परिवार है और हमारे हित-अहित साझा हैं। 

उल्लेखनीय है कि दुनिया के सामने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का विचार भारत की संस्कृति ही रखती आई है। महोपनिषद के मंत्र- “अयं बन्धुरयंनेति गणना लघुचेतसाम्, उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्”- का अनुसरण करके हम सभी के लिए एक बेहतर, समावेशी और सामंजस्यपूर्ण दुनिया बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। 

भारत ने जी-20 की अध्यक्षता के लिए जो शुभंकर जारी किया है, वह भी भारतीय मूल्यों को दुनिया में संचारित करता है। शुभंकर में शुभदायक कमल पुष्प पर पृथ्वी को अंकित किया गया है। इस शुभंकर के गहरे निहितार्थ हैं। कमल पर विराजी पृथ्वी, चुनौतियों के बीच विकास की आशा का प्रतीक है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुभंकर के संदर्भ में कहा है- “जी-20 का शुभंकर केवल एक प्रतीक चिन्ह नहीं है। ये एक संदेश है, ये एक भावना है, जो हमारी रगों में है। ये एक संकल्प है जो हमारी सोच में शामिल रहा है। इस शुभंकर और केंद्रीय भाव (थीम) के माध्यम से हमने एक संदेश दिया है। युद्ध से मुक्ति के लिए बुद्ध के जो संदेश हैं, हिंसा के प्रतिरोध में महात्मा गांधी के जो समाधान हैं, जी-20 के जरिए भारत उनकी वैश्विक प्रतिष्ठा को नयी ऊर्जा दे रहा। जी-20 शुभंकर में कमल का प्रतीक आशा का प्रतिनिधित्व करता है”। इस शुभंकर का एक और संदेश है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर ही पृथ्वी को खुशहाल रखा जा सकता है। इसलिए प्रकृति के साथ सामंजस्य करके ही विकास होना चाहिए। 

भारत किस प्रकार जी-20 की बैठकों को माध्यम बनाकर विश्व कल्याण के विचार को दुनिया में पहुँचाने का प्रयास कर रहा है, इस संदर्भ में मध्यप्रदेश में आयोजित हुई जी-20 की बैठकों को देखना चाहिए। दुनियाभर से आए अतिथियों ने यहाँ भारत के आतिथ्य का अनुभव तो किया ही, उन्हें शांति एवं सह-अस्तित्व का संदेश देनेवाली भारतीय संस्कृति का दर्शन भी कराया गया। 

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि विचार-विमर्श से निकले वैचारिक मंथन के साथ ही भारतीय विरासत के दर्शन कर भारतीय संस्कृति एवं उसके मूल्यों की प्रत्यक्ष अनुभूति भी जी-20 के विद्वान प्रतिनिधि अपने साथ लेकर जाएं। मुख्यमंत्री के आग्रह पर जी-20 के प्रतिनिधियों ने सांची और भीमबेटका जैसे विश्व विरासत के स्थल देखे। भारतीय ज्ञान-परंपरा के केंद्र के रूप में सुप्रसिद्ध उज्जैन में महाकाल के दर्शन भी किए। बाघ अभ्यारण्य में जैव विविधता के प्रति भारतीय दृष्टिकोण की अनुभूति भी दुनियाभर से आए लोगों ने की। 

नि:संदेह, जी-20 के प्रतिनिधियों एवं विद्वानों को इस बात की अनुभूति होनी प्रारंभ हो गयी होगी कि भारत कहने के लिए ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य’ की बात नहीं करता है, यह उसका परंपरागत विचार है, जिसका पालन वह ऋषि परंपरा से करता आ रहा है। इसी विचार के कारण दुनिया के प्रति भारत का दृष्टिकोण कहीं अधिक रचनात्मक, सृजनात्मक एवं सद्भावनात्मक है। 

याद हो कि भारत के एक युवा संन्यासी ने 1893 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित धर्म सम्मेलन में भारतीय जीवनदर्शन की पताका फहरायी थी। उस वैश्विक मंच पर आत्मविश्वास के साथ खड़े होकर स्वामी विवेकानंद ने यह सिद्ध किया था कि इस विश्व का कल्याण करने का विचार भारतीय संस्कृति एवं भारतीय जीवनमूल्यों में निहित है। ‘अमृतकाल’ में देवयोग से एक बार फिर, दुनियाभर में भारतीय मूल्यों के प्रति आकर्षण पैदा करने और उनके आधार पर सबका विश्वास जीतने के लिए जी-20 का मंच भारत को प्राप्त हुआ है।

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)