गुरूजी का संगठन मंत्र और तंत्र आज भी प्रासंगिक

जब गोलवलकर जी 1940  में संघ के द्वितीय सरसंघचालक बने तब तक संघ का कार्य देश के हर प्रान्त और जिले तक नहीं  पहुंचा था। लेकिन अपने दायित्व पर रहते हुए उन्होंने इस लक्ष्य को पूर्ण किया था। कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण, उनका चिंतन, उनके सुख-दुःख में सहभागी होना यह गोलवलकर जी की दिनचर्या का अहम भाग बन गया था। उन्होंने अपने साथी कार्यकर्ताओं को उपदेश नहीं, अपितु स्वयं के उद्धरण से प्रेरित किया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अधिकतर कार्यक्रमों में मुख्यतः तीन चित्र मंच पर दिखाई देते हैं। सबसे बाएं ओर परमपूजनीय डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी का उसके बाद बीच में भारत माता का और सबसे दाहिने ओर परमपूजनीय माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी का।

स्वाभाविक है डॉ. हेडगेवार संघ के संस्थापक रहे हैं और भारत माता संघ स्वयंसेवको के लिए आराध्य हैं, इसलिए उनका चित्र लगाया जाता है। तीसरा चित्र  गोलवलकर जी का है जो मात्र उनके संघ के द्वितीय सरसंघचालक होने के नाते नहीं  बल्कि उनके व्यक्तित्व की विशेषताओं के कारण लगाया जाता है।

आज यह जानना और भी जरुरी हो जाता है कि किन कारणों से अपनी मृत्यु के इतने वर्षों के बाद भी गोलवलकर जी लाखों स्वयंसेवको के लिए मार्गदर्शक हैं और क्यों आज भी हर संघ स्वयंसेवक  उनको ” गुरूजी ” के नाम से पुकारता है।  क्योंकि यह गोलवलकर जी ही थे जिनके कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लम्बे संघर्ष और उथल-पुथल के बाद भी आज देश का ही नहीं, अपितु दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन पाया है।

साभार : Webdunia

आज के परिप्रेक्ष्य में उनके संगठन तंत्र और मंत्र की विशेषता जानना  और भी प्रासंगिक हो जाता है, क्योंकि उनके मार्गदर्शक में स्थापित सभी संगठन चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो जैसे शिक्षा, सेवा, वनवासी कल्याण, मजदूर उत्थान, राजनीती या अन्य हर क्षेत्र में वह देश या दुनिया के सबसे मुख्य संगठनों में से एक है।

गोलवलकर जी 1940–1973 तक संघ के सरसंघचालक रहे और यह वही दौर था जब संघ ने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया और बाद में महात्मा गांधी का हत्यारा होने का आरोप भी सहा। सबूतों के अभाव में प्रतिबंध हटाया भी जाता है और 1962 भारत-चीन युद्ध में संघ स्वयंसेवकों की भूमिका देख कर 1963 में राजपथ पर परेड में भाग लेने के लिए बुलाया  भी जाता है। और आज संघ का स्वमसेवक राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक का दायित्व निभा रहा है।

यह गुरूजी की कार्यशैली ही थी जिसके कारण भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल श्री गुरूजी के दिनांक 11 अगस्त 1948  को लिखे पत्र के उत्तर में लिखते हैं कि, ” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने संकटकाल में हिन्दू समाज की सेवा की, इसमें कोई संदेह नहीं है। ऐसे क्षेत्रों में जहां उनकी सहायता की आवश्यकता थी, संघ के नवयुवकों ने स्त्रियों तथा बच्चों की रक्षा की तथा उनके लिए काफी काम किया।

गोलवलकर जी एक संगठनकर्ता थे जिनके संगठन तंत्र और मंत्र चुनौतियों का सामना करना भी सिखाते हैं और साथ ही साथ दृढ़ीकरण और विस्तार का मार्ग भी दिखलाते हैं। गोलवलकर जी की अपने कार्य के प्रति अद्भुत वैचारिक स्पष्टता थी।

यह उनकी वैचारिक स्पष्टता और स्पष्ट दृष्टिकोण ही था जिसके कारण वह इतने विशाल जन समर्थन और प्रसिद्धि पाने के बाद भी राजनीति से दूर रहकर जीवन भर मनुष्य निर्माण के कार्य में, व्यक्ति को समाज से जोड़ने की साधना में और हिन्दू समाज को एकत्रित करने में लगे रहे।

जब गोलवलकर जी 1940  में संघ के द्वितीय सरसंघचालक बने तब तक संघ का कार्य देश के हर प्रान्त और जिले तक नहीं  पहुंचा था। लेकिन अपने दायित्व पर रहते हुए उन्होंने इस लक्ष्य को पूर्ण किया था। कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण, उनका चिंतन, उनके सुख-दुःख में सहभागी होना यह गोलवलकर जी की दिनचर्या का अहम भाग बन गया था। उन्होंने अपने साथी कार्यकर्ताओं को उपदेश नहीं, अपितु स्वयं के उद्धरण से प्रेरित किया।

डॉ कृष्ण कुमार बवेजा द्वारा लिखित पुस्तक ‘श्री गुरूजी व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ के अनुसार गुरूजी को यह कदापि पसन्द नहीं था कि कोई भी सेवा-कार्य जनता पर उपकार की भावना से किया जाए।  उनके अनुसार ” सेवा हिन्दू जीवन – दर्शन की प्रमुख विशेषता है।  निस्वार्थ सेवा उसका स्वभाव ही है।  जहां स्वार्थ है वहाँ सेवा नहीं हो सकती। स्वार्थ का प्रवेश होते ही वह सेवा न रहकर व्यापर बन जाती है।”

साभार : Parikrama

यह गोलवलकर जी की असीम साधना ही थी जिसके कारण संघ इतने उथल-पुथल के बाद भी राष्ट्रजागरण का केंद्र – बिंदु बना और  भारत की जनता का  आकर्षण केंद्र ही नहीं बल्कि आशा का केंद्र बन पाया।

भारत के  पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कहते थे कि, ” श्री गुरूजी के महान व्यक्तित्व में समर्थ स्वामी रामदास की भक्ति तथा शिवजी महाराज की शक्ति का अपूर्व संगम था। आत्मविस्मृत हिन्दू समाज को स्वत्व का साक्षात्कार कराके श्री गुरूजी ने उसे संगठित शक्तिशाली तथा आत्मविश्वास से परिपूर्ण बनाने के राष्ट्रकार्य के लिए अपने शरीर का कण – कण और जीवन का क्षण – क्षण समर्पित कर दिया।”

आज भी लाखों संघ स्वयंसेवक गोलवलकर जी को ” गुरूजी ” के नाम से पुकारते हैं और वह सैकड़ों युवाओं को राष्ट्र समर्पित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।

(लेखक विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोधकर्ता हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)