मोदी सरकार के आर्थिक सुधारों के परिणाम अब मिलने लगे हैं। पिछले चार वर्षों में देश इज ऑफ डूंइंग बिजनेस रैंकिंग में 142वें से 100वें स्थान पर, ग्लोबल कम्पटीटिवनेस इंडेक्स में 71 से 39वें पायदान और इज ऑफ गेटिंग इलेक्ट्रिसिटी रैंकिंग में 111वे से 29वें पायदान पर पहुंच गया। विश्व बैंक ने भी अपनी रिपोर्ट में मोदी सरकार की पीठ थपथपाई है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत फ्रांस को पीछे छोड़कर दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। 2017 में फ्रांस की अर्थव्यवस्था 177 लाख करोड़ रूपये की थी वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था 178 लाख करोड़ रूपये की।
आजादी के बाद से ही तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति में उलझी सरकारों ने देश की विशाल आबादी को संपदा न मानकर आपदा माना और उन्हें आपस में उलझाए रखने का काम किया। बांटो और राज करो की नीति पर चलने वाली सरकारों का पूरा जोर येन-केन प्रकारेण चुनाव जीतने और उसके बाद अपनी झोली भरने पर रहता था। इंदिरा गांधी की नीतिशून्य राजनीति के दौर में यह कुप्रवृत्ति उफान पर थी।
1990 के दशक में शुरू हुई गठबंधन सरकारों के दौर में केंद्र में बनी सरकारें मजबूत न होकर मजबूर सरकारें थीं। इन सरकारों ने दूर की सोचना ही छोड़ दिया क्योंकि उनकी पूरी ऊर्जा सरकार में शामिल और बाहर से समर्थन दे रहे दलों की मांगों को पूरा करने और उन्हें खुश करने में ही खर्च हो रही थी। इतना ही नहीं, इस दौरान केंद्र सरकार को न्यूनतम साझा कार्यक्रम जैसे संविधानेतर सत्ता के अधीन रहकर काम करना पड़ा जिससे कैबिनेट की सर्वोच्चता की गरिमा भी खंडित हुई।
जोड़-तोड़ से बनी सरकारों ने बिजली, सड़क, कारोबारी माहौल, तकनीकी शिक्षा, कानून व्यवस्था आदि की ओर ध्यान ही नहीं दिया। इसके चलते हम देश में मौजूद सस्ते श्रम का पूरा फायदा उठाने में नाकाम रहे हैं। इसका दूरगामी नतीजा यह हुआ कि भारत में विनिर्मित वस्तुओं का आयात तेजी से बढ़ा। उदारीकरण-भूमंडलीकरण के बाद इस प्रवृत्ति में तेजी आई।
इस दौरान जिस तरह विदेशी सामान भारतीय बाजारों में छा गए उस तरह विदेशी बाजारों में भारतीय सामानों की धूम नहीं मची। इतना ही नहीं, सत्ता पक्ष से जुड़े कारोबारियों-नौकरशाहों-आयातकों की एक तिकड़ी बन गई जो आयात की मलाई खाने लगी। इस प्रकार देश में बुनियादी ढाँचे का विकास प्रभावित हुआ और भारत कारोबारी सूचकांक के मामले में पिछड़ता चला गया।
![](http://www.nationalistonline.com/wp-content/uploads/2018/08/407120-make-in-india-pti.jpg)
मोदी सरकार को ये विकराल समस्याएं विरासत में मिलीं। इसलिए सरकार को मेक इन इंडिया को कामयाब बनाने के लिए इन सभी बाधाओं को दूर करना पड़ा। भारत को मानव संसाधन केंद्र बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कौशल विकास पर बल दिया। इसके लिए “स्किल इंडिया” अभियान शुरू किया गया और इसे गरीबी के खिलाफ लड़ाई का नाम दिया गया है।
सबसे बड़ी समस्या बिजली आपूर्ति की थी। सरकार ने न सिर्फ उत्पादन बढ़ाया बल्कि बिजली वितरण के क्षेत्र में हो रहे भेदभाव को भी दूर किया। अब सरकार 2022 तक सभी को सातों दिन-चौबीसों घंटे बिजली मुहैया कराने की महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रही है।
इसी तरह की समस्या कानून व्यवस्था की थी जो उद्यमशीलता को बढ़ावा देने में बाधक बनी हुई थी। अधिकांश राज्यों में जातिवादी राजनीति की जगह प्रगतिशील सरकारों के गठन से कानून का राज स्थापित करने में मदद मिली। मोदी सरकार ने कारोबारी जटिलताओं को दूर करने के लिए प्रक्रियाओं का सरलीकरण किया।
मोदी सरकार के इन प्रयासों के परिणाम अब मिलने लगे हैं। पिछले चार वर्षों में देश इज ऑफ डूंइंग बिजनेस रैंकिंग में 142वें से 100वें स्थान पर, ग्लोबल कम्पटीटिवनेस इंडेक्स में 71 से 39वें पायदान और इज ऑफ गेटिंग इलेक्ट्रिसिटी रैंकिंग में 111वे से 29वें पायदान पर पहुंच गया।
विश्व बैंक ने भी अपनी रिपोर्ट में मोदी सरकार की पीठ थपथपाई है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत फ्रांस को पीछे छोड़कर दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। 2017 में फ्रांस की अर्थव्यवस्था 177 लाख करोड़ रूपये की थी, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था 178 लाख करोड़ रूपये की।
![](http://www.nationalistonline.com/wp-content/uploads/2018/08/News-image-10-07-2018-TOI-Moon-pledges.jpg)
चूंकि दशकों से वोट बैंक की राजनीति दूरगामी विकास की राह रोके हुए थी, इसलिए सकारात्मक नतीजे आने में समय लग रहा है। यही कारण है कि पिछले चार वर्षों में उन क्षेत्रों में तेज प्रगति हुई है जहां अधिक ढांचागत सुविधाओं की जरूरत नहीं पड़ती है। इसका ज्वलंत उदाहरण है मोबाइल निर्माण।
भले ही कांग्रेस अपने को संचार क्रांति का जनक बताती हो लेकिन यह क्रांति आयातित उपकरणों के जरिए हुई थी। मोदी सरकार ने इस कमी को दूर करने के लिए घरेलू संचार उपकरणों के विनिर्माण पर जोर दिया। इसी मुहिम का नतीजा है कि 2017-18 में देश में 22.5 करोड़ मोबाइल हैंडसेट निर्मित-असेंबल किए गए जो कि घरेलू बाजार जरूरतों का 80 फीसदी हैं।
इस प्रकार अब हर साल मोबाइल आयात पर खर्च होने वाली 3 लाख करोड़ रूपये की भारी–भरकम धनराशि की बचत होने लगी है। इंडिया सेलुलर एंड इलेक्ट्रानिक एसोसिएसशन के अनुसार अब पूरी तरह विदेश में बने मोबाइल की जगह स्थानीय स्तर पर निर्मित व असेंबल किए गए मोबाइल का बोलबाला है। यदि यही रफ्तार रही तो 2018-19 तक स्थानीय मोबाइल हैंडसेट उद्योग 165000 करोड़ रूपये के मोबाइल का निर्माण करने लगेगा।
इतना ही नहीं, अब तो दुनिया के नामी हैंडसेट ब्रांड भारत में अपनी विनिर्माण इकाइयां लगा रहे हैं, क्योंकि भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मार्ट फोन बाजार है। स्पष्ट है, मोदी सरकार की मेक इन इंडिया मुहिम अब रफ्तार पकड़ चुकी है। इसका बहुआयामी लाभ समूची अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है और यही उपलब्धि मोदी विरोधियों की नींद हराम कर रही है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)