आशीष कुलकर्णी ने नया क्या कहा, कांग्रेस का ‘हिन्दू विरोधी’ चेहरा तो पहले से ही उजागर है !

कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार आशीष कुलकर्णी ने पार्टी से इस्तीफा देते हुए कहा है कि कांग्रेस हिंदू विरोधी दल है। वैसे, कांग्रेस का हिन्दू विरोधी चेहरा पहले भी कई मामलों में सामने आ चुका है, इस लिहाज से आशीष कुलकर्णी की इस बात में कुछ नया नहीं है। मगर, इतना जरूर है कि जो बात अब तक बाहरी लोग कहते थे, अब आशीष कुलकर्णी जैसे लम्बे समय तक कांग्रेस के लिए काम करने वाले व्यक्ति के कहने के बाद इस मसले पर कांग्रेस के लिए जवाब देना आसान नहीं होगा।

देश भर में विभिन्‍न मोर्चों पर लगातार हार के बाद अपना जनाधार खोती जा रही कांग्रेस पार्टी को शुक्रवार को एक और झटका लग गया। कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार और समन्वय केंद्र के सदस्य आशीष कुलकर्णी ने इस्‍तीफा देकर सबको चौंका दिया। यह इस्‍तीफा उन्‍होंने गुपचुप तरीके से नहीं दिया, बल्कि पुरजोर तरीके से आरोपों की बौछार करते हुए दिया। यह इस्‍तीफा इसलिए भी अहम है, क्‍योंकि आशीष कांग्रेस के वार रूम के महत्‍वपूर्ण व्‍यक्ति होने अलावा कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी के चुनाव प्रबंधक भी थे।

अपने इस्‍तीफ के साथ ही उन्‍होंने राहुल गांधी को आड़े हाथों लिया और जमकर आरोप लगाए। प्रथम दृष्‍टया उनके बयानों का यही स्‍वर निकलकर सामने आया कि वे कांग्रेस की नीतियों से बुरी तरह खिन्‍न आ चुके थे और दिशाहीनता की इस स्थिति को बर्दाश्‍त नहीं कर पाने के कारण स्‍वयं पार्टी से अलग हो गए। हालांकि विचित्र बात यह है कि कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता अजय माकन ने हुए कहा है कि ऐसा कोई समन्‍वय केंद्र संचालित नहीं होता है और यहाँ तक कि उन्होंने तो अशीष कुलकर्णी को पहचानने से भी इंकार कर दिया।

आशीष कुलकर्णी

अब सवाल ये उठता है कि आशीष कुलकर्णी जैसे समर्पित और महत्‍वपूर्ण व्‍यक्ति को यदि इस तरह आजिज आकर कांग्रेस छोड़ना पड़ी तो उसके पीछे क्‍या वजहें होंगी। कुछ ठोस वजहें हैं, जो जेहन में सबसे पहले उभरती हैं। सबसे पहले तो वे कांग्रेस की लक्ष्‍यहीनता से तंग आ गए थे। उन्‍होंने स्‍वयं कहा है कि पार्टी की क्षमताएं धीरे-धीरे समाप्‍त होती जा रही हैं। कांग्रेस में कुप्रबंधन बुरी तरह व्‍याप्‍त है। अनिर्णय के दौर से गुजर रही कांग्रेस आज कोई भी सही निर्णय नहीं ले पा रही है, जिसके चलते लगभग हर चुनाव में वह बुरी तरह मात खा रही है।

दूसरी बात जो सामने आती है, वह ये कि उन्‍होंने राहुल गांधी पर सीधे प्रहार किये हैं। उन्‍होंने राहुल की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा है कि पार्टी की दुर्गति के पीछे राहुल गांधी की निष्क्रियता भी है। उन्‍होंने यह तक कहा कि कांग्रेस की नीतियां जनप्रिय नहीं रहीं हैं और कमोबेश हिंदू विरोधी हो गई है। मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर अधिक ध्‍यान देने के कारण आज कांग्रेस हिंदू विरोधी दल के रूप में देखी जाने लगा है। वामपंथियों की ओर झुकाव ने भी कांग्रेस को देश की जनता के दिलों से निकालने का काम किया। देखा जाए तो आशीष के ये आरोप उचित ही प्रतीत होते हैं, क्‍योंकि तथ्‍य भी इसी ओर इशारा करते हैं।

कश्‍मीर में अलगावादी नेताओं की ओर झुकाव और जेएनयू में देश विरोधी गतिविधियां करते रहने वाले तत्‍वों के प्रति भी कांग्रेस का झुकाव रहा है। जहां तक राहुल गांधी की बात है, वे स्‍वयं कांग्रेस को नाकामी की गर्त में धकेलते जा रहे हैं। कांग्रेस में भीतरी तौर पर भी वे एकरूपता एवं पारदर्शिता नहीं ला पा रहे हैं, जिसके चलते पार्टी के भीतर ही पुराने नेता उनका समय-समय पर विरोध करते रहे हैं।

परिवारवाद से ग्रस्त कांग्रेस (सांकेतिक चित्र)

इसमें कोई संदेह नहीं है कि कांग्रेस एक सामंतवादी दल की तरह रही है जिसमें परिवारवाद सदा प्राथमिकता पर रहा और देशहित गौण हो गया। आजादी के बाद देश में छः दशक से अधिक समय तक यह दल सत्‍ता में काबिज रहा और इसी कालखंड में देश पिछड़ेपन की गर्त में घिरता चला गया। कांग्रेस की दमनकारी नीतियों की वजह से देश आर्थिक एवं वैश्विक मोर्चे पर कभी आगे नहीं आ पाया और समकालीन राष्‍ट्रों से पिछड़ता चला गया। इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं कि कांग्रेस के पास समर्पित एवं पुराने कार्यकर्ताओं, नेताओं की लंबी मौजूदगी सदा से रही है; लेकिन अब यह मजबूत स्‍तंभ भी ढहता जा रहा है।

पिछले एक साल में देश भर में अनेक स्‍थानों पर कांग्रेस के दिग्‍गज नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। कई भाजपा में शामिल हो चुके हैं। यानी कांग्रेस के दूरदर्शी व अनुभवी नेताओं को भी पार्टी के पतन का आभास हो रहा है। ऐसे में यदि आशीष कुलकर्णी जैसा महत्‍वपूर्ण व्‍यक्ति बिना पुर्नविचार किए पार्टी छोड़ देता है तो कोई आश्‍चर्य की बात नहीं है।

बताया जाता है कि कुलकर्णी पिछले 8 वर्षों से कांग्रेस का चुनावी प्रबंधन कार्य संभालते आ रहे थे और कई चुनावों में समन्‍वय का काम किया। इतने लंबे समय तक किसी पार्टी की बुनियादी नीतियों पर काम करने के बावजूद उससे मोहभंग होना बड़ा संकेत देता है। सबसे बड़ी चिंता कांग्रेस के लिए यह भी हो सकती है कि अंदर की गोपनीय नीतियों को जानने वाले कुलकर्णी यूं पार्टी छोड़कर चले गए हैं तो पता नहीं वे अपने ज्ञान व जानकारी का क्‍या उपयोग करेंगे और कहीं यह पार्टी के लिए और अहितकारी साबित न हो जाए।

राहुल गांधी अपना अधिकांश समय कांग्रेस को मजबूत करने की बजाय केंद्र की भाजपा सरकार को कोसने एवं निराधार आरोप लगाने में व्‍यर्थ गंवा देते हैं। उन्‍हें शायद इसका आभास नहीं है कि ऐसा करके वे अपना महत्‍वपूर्ण समय स्‍वयं नष्‍ट कर रहे हैं। राजनीति के अलावा अन्‍य क्षेत्रों में भी यही बात लागू होती है कि यदि हम स्‍वयं के विकास की अपेक्षा दूसरों की आलोचना पर अधिक ध्‍यान देंगे तो अपना पतन हम स्‍वयं कर लेंगे। कांग्रेस छोड़कर जा चुके ढेरों नामों की श्रृंखला में आशीष कुलकर्णी एक नया नाम है। महत्‍वाकांक्षी चुनावों में बुरी तरह हारने के बाद कांग्रेस का जनाधार तो पहले ही खो चुका था, अब भीतर के लोग भी दल को छोड़कर जा रहे हैं।

हिंदू बहुल इस देश में कांग्रेस की हिंदुत्‍व विरोधी गतिविधियों को उन्‍होंने सामने ला खड़ा किया और कहा कि कांग्रेस हिंदू विरोधी दल है। वैसे, कांग्रेस का हिन्दू विरोधी चेहरा पहले भी कई मामलों में सामने आ चुका है। अभी पिछली कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के दौरान मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है। ये बयान न केवल संविधान विरोधी बल्कि हिन्दू विरोधी भी था।

ऐसे ही हिन्दू आतंकवाद जैसे जुमले गढ़ने, अनेक हिन्दुओं को आतंकी हमलों के झूठे मामलों में फंसाने, हिंदुत्व की बात करने वाले संघ जैसे संगठन के खिलाफ साजिशें करने आदि तमाम उदाहरण हैं जो कांग्रेस के ‘हिन्दू विरोधी’ चेहरे को उजागर करते हैं। ऐसे में कह सकते हैं कि आशीष कुलकर्णी की इस बात में कुछ नया नहीं है। मगर, इतना जरूर है कि जो बात अब तक बाहरी लोग कहते थे, अब आशीष कुलकर्णी जैसे लम्बे समय तक कांग्रेस के लिए काम करने वाले व्यक्ति के वही बात कहने के बाद इस मसले पर कांग्रेस के लिए जवाब देना भारी पड़ेगा। कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस सतही तो हो ही चुकी थी, अब खोखली भी होती जा रही है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)