केन्द्रीय विद्यालयों में हिंदी-संस्कृत में नहीं तो क्या अंग्रेजी-अरबी में प्रार्थना करवाई जाए !

केन्द्रीय विद्यालयों की प्रार्थनाओं पर सवाल उठाना सेक्यूलरिज़्म की ओवरडोज का परिणाम है जो अंततः “…लमहों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई” में परिवर्तित हो सकता है। हरेक चीज में मीनमेख निकालना कहां तक उचित माना जाएगा। देश भर में 1125 केंद्रीय विद्यालय हैं, जिनमें एक जैसी यूनिफॉर्म और पाठ्यक्रम होता है। इस तरह से ये दुनिया की सबसे बड़ी स्कूल चेन बन जाती है। ये स्कूल पिछली आधी सदी से भी अधिक समय से चल रहे हैं। इन्होंने देश को एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं दी हैं।

क्या केंद्रीय विद्यालयों में होने वाली प्रार्थना हिंदुत्व को बढ़ावा देती है? ये प्रार्थना देश और देश से बाहर चल रहे सभी केन्द्रीय विद्यालयों में  प्रयोग में है। अब ये पूरी तरह असंवैधानिक बताई जा रही है। अब इस प्रार्थना में हिंदुत्व देखा जा  रहा है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जीवन काल में केन्द्रीय विद्यालय चालू हो गए थे। तब देश में भाजपा या एनडीए की सरकारें नहीं थीं, जिनके पीछे आज देश के कथित सेक्युलरवादी हाथ धोकर पड़े हुए हुए हैं। गौर करें तो केन्द्रीय विद्यालयों की प्रार्थना रही है-  “असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतमगमय..” यानी (हमको) असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। इस प्रार्थना में हिन्दू या हिंदुत्व कहां से आ गया है, समझ नहीं आता।

केन्द्रीय विद्यालयों में संस्कृत श्लोक के बाद हिंदी प्रार्थना गानी होती है जो इस तरह है – “दया कर दान विद्या का हमें परमात्मा देना, दया करना हमारी आत्मा में, शुद्धता देना; हमारे ध्यान में आओ प्रभु, आंखों में बस जाओ…।“ इतनी गंभीर और गहन विचार लिए प्रार्थना में मध्य प्रदेश के एक निवासी विनायक शाह को हिन्दुत्व दिखाई दे रहा है। केन्द्रीय विद्यालय की स्थापना के मूल में एक अहम विचार ये भी था कि यहां के बच्चों में राष्ट्रीय  एकता और ‘भारतीयता’ की भावना का विकास हो। क्या नई या पुरानी प्रार्थनाएं उक्त दोनों विचारों के विरूद्ध खड़़ी होती हैं?

सांकेतिक चित्र

जरा याचिकाकर्ता ये बताएंगे कि 12वर्ष तक हिंदी/संस्कृत प्रार्थना करके कितने गैरहिंदू बच्चों ने धर्म परवर्तित कर लिया ? क्या प्रार्थना हिंदी/संस्कृत मे न करवा के लैटिन/अरबी या स्वाईली मे करवाई जाए ? क्या सर्वधर्म सम:भाव का अर्थ बहुमत को नीचा दिखाना ही है ? इस सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केन्द्र् सरकार और केन्द्रीय विद्यालयों को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा है। सरकार का क्या जवाब होता है, ये देखना महत्वपूर्ण होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये बड़ा गंभीर संवैधानिक मुद्दा है, जिस पर विचार जरूरी है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि केन्द्रीय विद्यालय में जिस प्रार्थना को बच्चे गाते हैं, वो  संविधान के अनुच्छेद 25 और 28 के खिलाफ है और इसे इजाजत नहीं दी जा सकती है।  राज्यों के फंड से चलने वाले संस्थानों में किसी धर्म विशेष को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता।

सेक्यूलरिज़्म की ओवरडोज

दरअसल ये सेक्यूलरिज़्म की ओवरडोज का परिणाम है जो अंततः “…लमहों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई” में परिवर्तित हो सकता है। हरेक चीज में मीनमेख निकालना कहां तक उचित माना जाएगा। देश भर में 1125 केंद्रीय विद्यालय हैं, जिनमें एक जैसी यूनिफॉर्म और पाठ्यक्रम होता है। इस तरह से ये दुनिया की सबसे बड़ी स्कूल चेन बन जाती है। ये स्कूल पिछली आधी सदी से भी अधिक समय से चल रहे हैं। इन्होंने देश को एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं दी हैं। इसे शुरू करने के मूल में विचार ये था कि केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के बच्चों को उनके अभिभावकों की ट्रांसफर की स्थिति में नए  शहर में जाने पर केन्द्रीय विद्यालय में दाखिला आसानी से मिल जाए।

अगला निशाना ध्येय वाक्य

मान कर चलिए अब वह दिन भी आने वाला है, जब केन्द्रीय विद्यालय के ध्येय वाक्य- ‘तत् त्वं पूषन् अपावृणु’ (हे ईश्वर, आप ज्ञान पर छाए आवरण को हटाइए) पर प्रशनचिन्ह लगेंगे। क्योंकि  ये ध्येय वाक्य संस्कृत में है, इसलिए इसमें भी धर्मनिरपेक्षता आड़े आएगी। केन्द्रीय विद्यालयों में होने वाली प्रार्थना में हिंदुत्व देखना या इसको संविधान सम्मत ना बताना और  साल 2005 में उठी मांग कि राष्ट्र गान से सिंध शब्द को निकाल देना चाहिए, में कोई बहुत फर्क नहीं है।

केन्द्रीय विद्यालयों का ध्येय वाक्य

सिंध शब्द के स्थान पर राष्ट्रगान में कश्मीर को शामिल करने की मांग की गई थी। तर्क ये दिया गया था कि चूंकि सिंध अब भारत का हिस्सा नहीं रहा तो इसे राष्ट्रगान में नहीं होना चाहिए। शायद ही संसार के किसी अन्य देश में राष्ट्रगान का उस तरह से अपमान होता हो, जैसा कुछ तथाकथित सेक्युलरवादियों द्वारा हमारे देश में होता आया है। राष्ट्रगान पर रोक लगाने से लेकर इसमें संशोधन करने के प्रयास लगातार चलते रहते हैं।

रोक राष्ट्रगान पर

कुछ वर्ष पूर्व  इलाहाबाद से एक बेहद  शर्मनाक मामला सामने आया था। वहां पर एमए कॉन्वेंवट नामक स्कूल में  राष्ट्र गान पर रोक थी। जब मामले ने तूल पकड़ा तो पुलिस ने स्कूल प्रबंधक जिया उल हक को गिरफ्तार कर लिया। क्या इस तरह का आपको उदाहरण किसी अन्य देश में मिलेगा? कतई नहीं। स्कूल में राष्ट्रगान नहीं होने देने के पीछे प्रबंधक जिया उल हक का तर्क था कि राष्ट्रगान में ‘भारत भाग्य विधाता’ शब्दों का गलत प्रयोग किया गया है। उन्हें इन शब्दों से घोर आपत्ति है। हक के अनुसार भारत में रहने वाले सभी लोगों के भाग्य का विधाता भारत कैसे हो सकता है। यह इस्लाम के विरुद्ध है।

हमारे यहां पहले भी राष्ट्रगान में संशोधन की मांग उठती रही है। पर क्या राष्ट्रगान में संशोधन हो सकता है? क्या राष्ट्रगान में अधिनायक की जगह मंगल शब्द होना चाहिए? क्या राष्ट्रगान से सिंध शब्द के स्थान पर कोई और शब्द जोड़ा जाए? साल  2005 में संजीव भटनागर ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें सिंध भारतीय प्रदेश न होने के आधार पर जन-गण-मन से निकालने की मांग की थी।

इस याचिका को 13 मई 2005 को सुप्रीम कोर्ट के सर्वोच्च न्यायाधीश आर.सी. लाखोटी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सिर्फ खारिज ही नहीं किया था, बल्कि संजीव भटनागर की याचिका को छिछली और बचकानी मुकदमेबाजी मानते हुए उन पर दस हजार रुपए का दंड भी लगाया था। अब केन्द्रीय विद्यालयों की प्रार्थना में सिरे से कमियां निकाली जा रही है। इन सब प्रकरणों से सिद्ध होता है कि देश के भीतर कुछ शक्तियां सिर्फ इसे खोखला करने पर आमादा हैं।

(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)