ईवीएम पर बेमतलब सवाल उठाना कांग्रेस के डर को ही दिखाता है!

अचरज की बात है कि ईवीएम पर आरोप लगाने के लिए कांग्रेस को कितना नीचे गिरना पड़ा। विदेशी जमीन से लगाए गए हवा-हवाई आरोपों को मानकर देश के महान लोकतंत्र पर सवाल उठाए गए। नैतिकता का तकाजा तो यही है कि कांग्रेस को अपने इस आचरण के लिए देशवासियों से माफ़ी मांगनी चाहिए, लेकिन वो तो अपनी गलती मानने तक राजी नहीं है और अभी भी ईवीएम राग गाने में लगी हुई है।

पिछले महीने कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल कर लगातार हार के सिलसिले को विराम लगाया। ये ऐसे चुनाव थे जो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए संजीवनी सिद्ध हुए। यह संभव हुआ बेहद साफ़ सुथरे और पारदर्शी चुनाव के ज़रिये, जिसका सबसे बड़ा श्रेय जायेगा ईवीएम मशीन और चुनाव आयोग को। चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में कराए चुनाव को बहुत ही सुचारु ढंग से संपन्न करवाया। इससे पहले भी भारतीय चुनाव आयोग को दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव कराने के लिए सर्वत्र सराहना मिल चुकी है।

लेकिन शर्मनाक विडंबना है कि ईवीएम वोटिंग से तीन राज्य जीतने के बाद कांग्रेस अब एकबार फिर ईवीएम और चुनाव आयोग पर सवाल उठाने में लगी है। ईवीएम पर सवाल उठाने में कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल आगे रहे हैं, लेकिन जब चुनाव योग ने उन्हें ईवीएम को हैक करने के लिए बुलाया तो वो ऐसा करने में नाकाम रहे। दिल्ली के 70 से 67 सीटों पर जीत हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी के पास कोई जवाब नहीं है, क्योंकि उसे जीत उन्हीं ईवीएम के ज़रिये हासिल हुई।

लन्दन में आयोजित कथित ईवीएम हैकर सैयद शुजा की प्रेस कांफ्रेंस

बीते दिनों 2014 चुनाव में ईवीएम को हैक करने का दावा सैयद शुजा नाम के एक कथित हैकर ने किया। इस दावे को आधार बनाकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग पर सवाल उठाना शुरू कर दिया। लेकिन कुछ ही समय बाद जब पड़ताल हुई तो उसके दावे तो छोड़िये खुद उसने अपने विषय में जो बताया था, वो सब ही फर्जी निकला।

विचित्र ये भी कि जब सैयद शुजा देश के लोकतंत्र को बदनाम करने वाला यह दावा कर रहा था, तब लन्दन के उस प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल भी मौजूद थे। सिब्बल लाख सफाई दें, लेकिन इसपर यकीन करना मुश्किल है कि वे संयोगवश वहाँ थे। सवाल उठ रहा है कि कहीं ये प्रेस कांफ्रेंस कांग्रेस प्रायोजित तो नहीं थी?

बहरहाल, अचरज की बात है कि ईवीएम पर आरोप लगाने के लिए कांग्रेस को कितना नीचे गिरना पड़ा। विदेशी जमीन से लगाए गए हवा-हवाई आरोपों को मानकर देश के महान लोकतंत्र पर सवाल उठाए गए। नैतिकता का तकाजा तो यही है कि कांग्रेस को अपने इस आचरण के लिए देशवासियों से माफ़ी मांगनी चाहिए, लेकिन वो तो अपनी गलती मानने तक राजी नहीं है और अभी भी ईवीएम राग गाने में लगी हुई है।

भारत कोई “बनाना रिपब्लिक” नहीं है, यहाँ दशकों से स्वाधीन प्रेस है, मुखर विपक्ष और फलता-फूलता लोकतंत्र है। यह ठीक है कि विपक्ष का काम सरकार को घेरना होता है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि वो संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम करने में ही जुट जाए।

हमें याद रखना चाहिए कि 80 और 90 के दशक में बैलट पेपर की वजह से चुनाव में कितनी हिंसा और अराजकता होती थी। ईवीएम के आने से इसपर लगाम लगा है। कुल मिलाकर बात इतनी सी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने ईवीम पर सवाल उठाकर न केवल भारत के महान लोकतंत्र पर हमला करने का काम किया है, बल्कि कहीं न कहीं इसके जरिये उसका हार का डर भी उजागर हुआ है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)