‘राहुल गांधी की भाषा सुनकर हैरानी होती है कि वे एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष हैं’

पिछले 4 वर्षों में जिस प्रकार से केंद्र सरकार ने सफलतापूर्वक तमाम विकासपरक कार्य किए और अनेक राजनीतिक विजय हासिल की हैं, उससे कांग्रेस बुरी तरह द्वेष पालकर बैठी है। अभी तक के सरकार के कार्यकाल में विरोध के लिए एक भी ढंग का मुद्दा न मिलने और कोई भ्रष्टाचार का विषय सामने न आने से विचलित हुई कांग्रेस अब बौखलाहट में भाषाई शुचिता को तिलांजलि देकर प्रधानमंत्री मोदी के प्रति व्यक्तिगत हमलों पर उतर आई है। इसी की परिणिति राहुल गांधी के अनर्गल आरोपों और अशिष्ट भाषा के रूप में अब नज़र आ रही है।

कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी इन दिनों कुछ ज्‍़यादा ही मुखर दिखाई दे रहे हैं। लेकिन यदि इस पर ध्‍यान दिया जाए कि वे क्‍या बोल रहे हैं, तो हैरानी होगी कि वे एक राष्ट्रीय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वे ना तो कुछ नया बोल रहे हैं, ना मौलिक, ना तथ्‍य परक और ना ही ठोस। यहां तक भी ठीक था। आखिर परिवारवादी व्‍यवस्‍था से निकले तथाकथित नेता के पास बोलने के लिए कुछ जमीनी होगा भी तो कहां से, इसलिए यहां तक तो ठीक है, लेकिन जो गौर करने लायक बात है, वह ये कि राहुल जो भी बोल रहे हैं, वह किस प्रकार बोल रहे हैं।

देखा जाए तो राहुल गांधी के आरोपों की भाषा बेहद सतही और बात कहने का लहजा बेहद निम्‍न स्‍तर का है। उनकी भाषा सुनकर इस बात पर हैरानी होती है कि वे एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्‍यक्ष हैं; अलबत्‍ता वे किसी छुटभैये नेता जैसा आभास देते हैं। यह भी आश्‍चर्य की बात है कि कांग्रेस के वर्षों पुराने वरिष्‍ठ नेता भी राहुल की घटिया भाषण शैली पर ना कोई आपत्ति जता रहे हैं ना ही उन्‍हें सुधार के लिए पर्दे के पीछे से सही, कोई सुझाव दे रहे हैं।

राहुल गांधी (साभार : फर्स्टपोस्ट हिंदी)

पिछले 4 वर्षों में जिस प्रकार से केंद्र सरकार ने सफलतापूर्वक तमाम विकासपरक कार्य किए और अनेक राजनीतिक विजय हासिल की हैं, उससे कांग्रेस तिलमिलाई हुई है। अभी तक के सरकार के कार्यकाल में विरोध के लिए एक भी ढंग का मुद्दा न मिलने और कोई भ्रष्टाचार का विषय सामने न आने से विचलित हुई कांग्रेस अब बौखलाहट में भाषाई शुचिता को तिलांजलि देकर प्रधानमंत्री मोदी के प्रति व्यक्तिगत हमलों पर उतर आई है। इसी की परिणिति राहुल गांधी के अनर्गल आरोपों और अशिष्ट भाषा के रूप में अब नज़र आ रही है।

जब-जब मोदी का मान बढ़ा है, तब-तब राहुल ने उन पर निराधार छींटाकशी की है। अब चूंकि मोदी को विश्‍व स्‍तर पर नित नए पुरस्‍कार और प्रतिष्ठा प्राप्‍त हो रहे हैं, तो शायद इससे राहुल को बहुत हीनता अनुभव हो रही है। इस हीनता से उपजी खीझ को मिटाने के लिए वे मोदी के प्रति बहुत निम्‍न, असभ्‍य, असंसदीय और अपमानजनक भाषा के प्रयोग पर उतर आए हैं।

गत दिनों उन्होंने सीबीआई विवाद को मनमाने ढंग से राफेल से जोड़ते हुए प्रधानमंत्री पर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि देश के चौकीदार ने चोरी की और नरेंद्र मोदी पकड़े जाएंगे। इसी तरह वे पहले भी ‘चौकिदार चोर है’ जैसे जुमले उछाल चुके हैं। देश के प्रधानमंत्री को यूँ बिना किसी आधार के मनमाने ढंग से चोर कहना राहुल के वैचारिक दिवालियेपन का ही सूचक है।

असल में, राहुल के पास सरकार का प्रतिकार करने के लिए पर्याप्‍त समझ का अभाव है और उनका तर्क, तथ्‍यों से भी कोई वास्‍ता नहीं है। वे केवल कुर्ते की बांहें खींचकर जोर से चिल्‍लाना जानते हैं। यदि इसी बिंदु की भाजपा से तुलना की जाए तो ऐसा एक भी उदाहरण सामने नहीं आता है जिसमें भाजपा के किसी नेता ने यूपीए सरकार के समय मनमोहन सिंह के प्रति ऐसी अशिष्ट भाषा का प्रयोग किया हो।

जबकि मनमोहन सरकार पर खुद सरकारी एजेंसियां ही घोटालों के आरोप लगाती रही थीं। बावजूद इसके सरकार पर हमलावर होते हुए कभी भाजपा की तरफ से ‘चोर’ जैसी निकृष्ट भाषा का प्रयोग नहीं किया गया। निस्संदेह यह भाजपा के दलगत संस्कार हैं जो उसे कांग्रेस तथा औरों से अलग करते हैं।

इसके उलट सामंतवादी माहौल में पले-बढ़े राहुल गांधी अपनी पार्टी की ही तरह देश को भी अपनी जागीर समझने की भूल करने लगे हैं। उन्‍हें लगता है कि जोर से चिल्‍लाने से उनकी बात सही साबित हो जाएगी। राहुल के लहजे को छोड़ भी दें, भाषा को भी जाने दें और केवल उनके भाषण की विषय-वस्‍तु पर ही गौर फरमाएं तो भी निराशा ही हाथ लगती है। उनके आरोपों में ना दम दिखता है, ना वजन। उनके पास होमवर्क की कमी साफ झलकती है।

जब वे देश के प्रधानमंत्री को बेवजह ‘चोर’ जैसा घटिया संबोधन देते हैं, तब खुद के गिरेबान में झांककर देखना चाहिये कि नेशनल हेराल्‍ड मामले में वे आरोपी हैं जो जमानत पर बाहर घूम रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी भी सोनिया गांधी का अपमान नहीं किया। वे सार्वजनिक मंचों से भी सोनिया गांधी के प्रति मतभेद प्रकट करते हुए, उनकी अस्मिता बचाए रखते थे। लेकिन राहुल गांधी ने तो अभद्रता की सारी हदें पार कर दी हैं।

कुल मिलाकर राहुल गांधी की इस अमर्यादित और अशिष्ट भाषा को देखते हुए यह साफ है कि कांग्रेस किस कदर बौखलाहट और हताशा में भरी हुई है। ये अच्छा है कि मोदी सरकार इन सब व्‍यर्थ की बातों पर ध्‍यान न देते हुए अपनी लीक पर चलते हुए लगातार विकास कार्य कर रही है। जहां तक राहुल गांधी की बात है, उनकी अभद्र भाषा का हिसाब जनता चुनाव में जरूर करेगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)