जाति-धर्म की राजनीति से ऊपर कब उठेगी कांग्रेस?

बिहार कांग्रेस ने राहुल गांधी की एक और नयी छवि प्रस्तुत की है। बिहार कांग्रेस के एक पोस्टर में तमाम पार्टी नेताओं की तस्वीरों के साथ उनकी जाति का भी उल्लेख किया गया है। इस पोस्टर में राहुल गांधी को ब्राह्मण बताया गया है। खबरों के मुताबिक़, इस तस्वीर पर सफाई देते हुए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा ने कहा है कि कांग्रेस जातिवाद में यकीन नहीं करती और इस पोस्टर का उद्देश्य सामाजिक समरसता का सन्देश देना है। अध्यक्ष महोदय कुछ भी कहें, लेकिन यह समझना कोई राकेट साइंस नहीं है कि इस पोस्टर के जरिये कांग्रेस आखिर कौन-सी ‘सामाजिक समरसता’ का सन्देश देना चाहती है।

लोकसभा चुनाव का माहौल बनने लगा है। इसके मद्देनजर राजनीतिक दलों की रणनीतियां भी आकार लेने लगी हैं। सत्तारूढ़ भाजपा जहां मोदी के नेतृत्व में विकास को मुद्दा बनाती नजर आ रही, वहीं कांग्रेस का जोर जाति-धर्म के समीकरण साधने की ओर दिख रहा। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी हिन्दू उपासना स्थलों की यात्रा के जरिये अपनी हिन्दूवादी छवि बनाने की कोशिश में जी जान से जुटे हुए हैं। कांग्रेसी नेताओं की तरफ से उन्हें जनेऊधारी हिन्दू तक बताया जा चुका है।

अब बिहार कांग्रेस ने राहुल गांधी की एक और नयी छवि प्रस्तुत की है। बिहार कांग्रेस के एक पोस्टर में तमाम पार्टी नेताओं की तस्वीरों के साथ उनकी जाति का भी उल्लेख किया गया है। इस पोस्टर में राहुल गांधी को ब्राह्मण बताया गया है। खबरों के मुताबिक़, इस तस्वीर पर सफाई देते हुए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा ने कहा है कि कांग्रेस जातिवाद में यकीन नहीं करती और इस पोस्टर का उद्देश्य सामाजिक समरसता का सन्देश देना है। अध्यक्ष महोदय कुछ भी कहें, लेकिन यह समझना कोई राकेट साइंस नहीं है कि इस पोस्टर के जरिये कांग्रेस आखिर कौन-सी ‘सामाजिक समरसता’ का सन्देश देना चाहती है।

बिहार कांग्रेस द्वारा लगाया गया पोस्टर (साभार : दैनिक जागरण)

दरअसल कांग्रेस की समस्या ये है कि वो राहुल गांधी को किसी भी हाल में तुरंत के तुरंत प्रभावशाली और लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित कर देना चाहती है। इसी जल्दबाजी के चक्कर में अक्सर गड़बड़ी हो जाती है जिसपर बाद में सफाई देनी पड़ती है। बहरहाल, सवाल यह उठता है कि क्या राहुल गांधी के युवा नेतृत्व में भी कांग्रेस की सोच जातिवादी राजनीति पर ही अटकी हुई है?

देखा जाए तो कांग्रेस की चुनावी रणनीति का मूल मोदी सरकार के प्रति आँख मूंदकर विरोधी रुख अख्तियार किए रहना है। राहुल गांधी जब न तब कोई भी एक मुद्दा, भले उसमें तथ्य न हों, पकड़कर मोदी सरकार के खिलाफ विरोधी रुख अपनाए रहते हैं। कुछ दिन पहले माल्या और अब राफेल पर राहुल का विरोध इसका उदाहरण है।

विपक्ष में होने के नाते उनका विरोध करना गलत नहीं है, लेकिन सवाल यह भी उठता है कि मोदी सरकार की नीतियों का विरोध करते हुए क्या वो जनता के समक्ष अपना कोई वैकल्पिक मॉडल भी प्रस्तुत कर रहे हैं? अब कहीं ‘आलू की फैक्ट्री’ और ‘आलू से सोना बनाने की मशीन’ को ही तो वे अपना वैकल्पिक मॉडल नहीं मान रहे?

बहरहाल, कहना होगा कि कांग्रेस के पास मोदी सरकार का विरोध करने की नीति तो है, लेकिन ‘मोदी सरकार की नीति अगर गलत है तो सही नीति क्या होगी’ ये बताने की क्षमता नहीं है। राहुल गांधी ये तो चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे कि मोदी सरकार को वोट मत दीजिये, लेकिन कांग्रेस को वोट क्यों दिया जाए, इस विषय में कुछ नहीं कह पा रहे।

मौजूदा सरकार की विकासवादी राजनीति और भ्रष्टाचारमुक्त छवि का भी राहुल के पास कोई पुख्ता जवाब नहीं है। ऐसे में कांग्रेस के पास लड़ाई में बने रहने के लिए अपने पारंपरिक जाति-धर्म के हथियार के अलावा कोई चारा ही नहीं रह जाता। इसी कारण कभी राहुल गांधी का जनेऊधारी हिन्दू के रूप में अवतरण होता है, तो कभी ‘ब्राह्मण’ राहुल गांधी के पोस्टर लग जाते हैं। लेकिन ऐसे हथकंडों से कांग्रेस को कोई राजनीतिक लाभ होगा, इसकी संभावना न के बराबर ही है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)