मौका देखकर चेहरा बदलने में माहिर है कांग्रेस

मौका देखकर चेहरा बदलने में कांग्रेस को महारथ हासिल है। सत्ता में रहते हुए हिन्दू विरोध की राजनीति करने वाली कांग्रेस ने विपक्ष में आने के बाद पैंतरा बदलना शुरू कर दिया। गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का नया संस्करण दिखाई दिया। राहुल गांधी मंदिर-मंदिर दौड़ने लगे। कांग्रेस प्रवक्ता उन्हें शिवभक्त और जनेऊधारी घोषित करने लगे। बाकी चुनावों में भी कमोबेश यह रूप दिखता रहा। लेकिन यह कांग्रेस का बाहरी रूप था। भीतर की तैयारी वही थी, जिसे कमलनाथ ने वीडियो में जाहिर किया है।

मध्य प्रदेश चुनाव में कांग्रेस की तरफ से कमलनाथ प्रदेशाध्यक्ष की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। ऐसे में उनके किसी भी कथन या कार्य को हल्के में नहीं लिया जा सकता। लेकिन अब उनका एक वीडियो कांग्रेस के लिए मुसीबत बन रहा है, क्योंकि यह उंसकी चुनावी रणनीति की कलई खोलने वाला है।

इस वीडियो ने कांग्रेस की भीतर और बाहर के फर्क को उजागर कर दिया है। ये जाहिर हो गया है कि कांग्रेस बाहर अपने को नरम हिंदुत्ववादी दल के रूप में प्रदर्शित कर रही है, लेकिन दीवारों के भीतर वह साम्प्रदायिक सियासत पर अमल करने में लगी है। इस तरह वह विधानसभा चुनाव की वैतरणी में दो नावों की सवारी से पार करना चाहती है।

वीडियो में दिखता है कि कमलनाथ ने पार्ट मुख्यालय में मुस्लिम नेताओं की बैठक बुलाई जिसमें उन्होंने मुसलमानों से नब्बे प्रतिशत वोट देने की गुजारिश की। उन्होंने कहा कि इतने वोट न मिले तो मुश्किल होगी। कमलनाथ यहीं नहीं रुके। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से सावधान रहने की हिदायत भी मुस्लिमों को दे डाली।

इस प्रकार कमलनाथ साम्प्रदायिक आधार पर विभाजन की सियासत करते दिखाई देते हैं। यह ठीक है कि चुनाव में नेता अपने-अपने ढंग से मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं, लेकिन कांग्रेस ने जिस तरह से दोहरे चेहरे लगा रखे हैं, वो मतदाताओं के साथ धोखा है।

कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति पुरानी है। हिन्दू विरोध कांग्रेस के मुस्लिम तुष्टिकरण का अभिन्न अंग रहा है। यूपीए सरकार के समय तो तुष्टिकरण की हदें पार कर दी गयी थीं। सरकार और संगठन के दिग्गज सभी इस अभियान में लगे थे। इतिहास में पहली बार हिन्दू आतंकवाद का शब्द चलाया गया। इसका श्रेय तत्कालीन सरकार के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे सहित पी चिदम्बरम, कपिल सिब्बल, दिग्विजय सिंह आदि कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को जाता है।

इसका लाभ पाकिस्तान ने उठाया। जब उस पर इस्लामी आतंकवाद का आरोप लगता था तब वह पलट कर भारत पर हिन्दू आतंकवाद का आरोप लगा देता था। उसने कई बार कहा कि भारत पहले हिन्दू आतंकवाद को रोके। इस तरह कांग्रेस के नेताओं ने पाकिस्तान का मनोबल बढ़ाया। विश्व में हिन्दू धर्म को बदनाम करने का कुटिल प्रयास किया।

इस क्रम में कुछ लोगों को गिरफ्तार करके रखा गया। उनके खिलाफ कोई प्रमाण नहीं मिला। लेकिन कांग्रेस इनका नाम लेकर हिन्दू आतंकवाद का प्रचार करती रही। बाटला हाउस मुठभेड़ पर किसके प्रति हमदर्दी दिखाई जा रही थी, यह बात भी किसीसे छिपी नहीं है। आज जो कांग्रेसी रामभक्त बनकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं, उन्होंने सरकार में रहते हुए श्रीराम को काल्पनिक बताया था। रामसेतु को तोड़ने का पूरा इंतजाम ही कर दिया गया था।

लेकिन मौका देखकर चेहरा बदलने में कांग्रेस को महारथ हासिल है। सत्ता में रहते हुए हिन्दू विरोध की राजनीति करने वाली कांग्रेस ने विपक्ष में आने के बाद पैंतरा बदलना शुरू कर दिया। गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का नया संस्करण दिखाई दिया। राहुल गांधी मंदिर-मंदिर दौड़ने लगे। कांग्रेस प्रवक्ता उन्हें शिवभक्त और जनेऊधारी घोषित करने लगे।

मंदिर जाने, पूजा करने पर आपत्ति नहीं हो सकती। लेकिन कांग्रेस ने अपनी चुनावी छवि बदलने के लिए इसका प्रयोग किया। यह बदलाव स्वभाविक नहीं, नाटकीय लग रहा था। छतीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भी इसी ओढ़ी गई छवि को बनाये रखने की कोशिश हो रही। पहले गाय का नाम लेना गुनाह था, अब मध्यप्रदेश के चुनाव घोषणापत्र में गाय को बहुत महत्व दिया गया। रामवनगमन यात्रा शुरू की गई। ये बात अलग है कि यह यात्रा पूरी नहीं हुई।

यह कांग्रेस का बाहरी रूप था। भीतर की तैयारी वही थी, जिसे कमलनाथ ने वीडियो में जाहिर किया। इसका निहितार्थ यह हुआ कि कांग्रेस जब सत्ता में होगी तो अपने पुराने रंग में ही कार्य करेगी, लेकिन विपक्ष में अपने को ‘रामभक्त’ और ‘शिवभक्त’ रूप में प्रदर्शित करेगी। कांग्रेस आज अपनी इस रणनीति पर खुश हो सकती है। लेकिन हो सकता है कि उसकी यह दोहरी नीति उसीपर भारी पड़ जाए और वह हिन्दू-मुसलमान दोनों का ही विश्वास गँवा बैठे।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)