एससी-एसटी एक्ट : न्यायालय के निर्णय पर विपक्ष की नकारात्मक राजनीति

जिनको भी देश की संवैधानिक शक्तियों पर विश्वास है, वे संवैधानिक मूल्यों के प्रचार-प्रसार को नैतिक दायित्व मानते हैं। पर, आज विपक्ष का राजनीतिक विरोध इतना नकारात्मक हो चुका है कि संवैधानिक संस्थाओं से जुड़े प्रत्येक मुद्दे को, जिस पर कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है, नजरअंदाज कर उसे सामाजिक तनाव के रूप में परिणत कर सरकार पर थोपने की नकारात्मक राजनीति विपक्ष द्वारा की जा रही है।

एससी/एसटी एक्ट पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय आने के बाद देश में तनाव की स्थिति पैदा हो गई। कुछ दिनों से अनेक कारणों से न्यायपालिका के निर्णय चर्चा का विषय बन रहे हैं। प्रत्येक केस की स्थिति भिन्न होती है, उसके तथ्य, प्रकरण भी भिन्न होते हैं, ऐसे में, कानूनी तौर पर विशेष ध्यान इस बात पर दिया जाता है कि संबंधित कानूनी प्रक्रिया का सम्यक प्रकार से पालन हुआ है या नहीं। किसी एक घटना या मामले को आधार मानकर एक ऐतिहासिक सामाजिक विषय को एक आदेश द्वारा निरस्त कर देना कभी न्यायपूर्ण निर्णय की कसौटी पर उचित सिद्ध नहीं होता।

जिनको भी देश की संवैधानिक शक्तियों पर विश्वास है, वे संवैधानिक मूल्यों के प्रचार-प्रसार को नैतिक दायित्व मानते हैं। पर, आज विपक्ष का राजनीतिक विरोध इतना नकारात्मक हो चुका है कि संवैधानिक संस्थाओं से जुड़े प्रत्येक मुद्दे को, जिस पर कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है, नजरअंदाज कर उसे सामाजिक तनाव के रूप में परिणत कर सरकार पर थोपने की नकारात्मक राजनीति विपक्ष द्वारा की जा रही है। न्यायपालिका का निर्णय उसका स्वतंत्र निर्णय है, जिस पर निश्चित रूप से सरकार द्वारा यथासंभव कार्रवाई की जा रही है।

सांकेतिक चित्र

जब जेएनयू में देश-विरोधी नारे लगे, तब विपक्ष के नेताओं द्वारा छात्रों को समझाए जाने की जरूरत थी कि नारे देशहित में लगाने चाहिए, पर वे देश-विरोधी नारे लगने को ही सरकार की विफलता के रूप में प्रचारित करने लगे। जब कुछ लेखकों ने सोची-समझी रणनीति के तहत पुरस्कार वापसी का अभियान चलाया, तब विपक्ष को सकारात्मक भूमिका निभाते हुए आगे आकर कहना चाहिए था कि यह साझा संस्कृति का देश है, पर विपक्ष ने उसे भी सामाजिक तनाव का विषय बना दिया।

125 करोड़ लोगों के इस देश में हम एक बड़ी सांस्कृतिक परंपरा को लेकर चल रहे हैं। आने वाला समय भारत में एक ऐसा समय होना चाहिए, जिसमें हम नवीन प्रौद्योगिकी और तकनीक के साथ अपने सांस्कृतिक मूल्यों को लेकर आगे बढ़ें। दुनिया भारत को देखने इसलिए नहीं आती कि इसने बड़ी भौतिक तरक्की कर ली है, बल्कि भारत के पास जो एक सांस्कृतिक जीवन धारा है, वह दुनिया को अपनी ओर खींचती है।

आज स्वस्थ परंपरा के विषय हमारे विश्वविद्यालयों से गायब होते जा रहे हैं। आज की सबसे बड़ी समस्या तरक्की की नहीं, साधनों के समान बंटवारे की है। केंद्र सरकार ने इसका ध्यान रखा है कि साधनों का बंटवारा अंतिम व्यक्ति तक समान रूप से हो। बिजली के लिए सौभाग्य योजना, चिकित्सा के लिए इंद्रधनुष योजना, आर्थिक सशक्तिकरण के लिए जन-धन योजना, सरकारी सहायता में भ्रष्ट्राचार रोकने के लिए ‘आधार’ योजना आदि साधनों के समान वितरण हेतु बहुत-सी योजनाएं इस सरकार द्वारा लागू की गई हैं।

अनेक कर के बजाय एक कर हो, इसके लिए जीएसटी लाया गया। पर इन मुद्दों पर विपक्ष की तरफ से कभी कोई तार्किक चर्चा प्रस्तुत नहीं की गई। विपक्ष ने उन्हीं विषयों को मुद्दा बनाया, जो समाज में तनाव पैदा करते हों। लेकिन, देश में नकारात्मक प्रचार न हो, इसलिए प्रधानमंत्री ने हर साल संविधान दिवस मनाने का निर्णय लिया।

कुल मिलाकर वर्तमान समय में तथ्य यह है कि देश कांग्रेस की कुरीतियों से आगे बढ़ चुका है और आगे बढ़ चुके इस देश में सबको साथ मिलकर आगे बढ़ना चाहिए। संसद सब विषयों का सही तरीके से सकारात्मक जवाब दे सकती है, पर दुर्भाग्यवश विपक्ष उसको भी नहीं चलने दे रहा। संसद चले, विषयों पर चर्चा हो और अपनी ऐतिहासिक-सामाजिक विरासत को हम आगे बढ़ाएं, यही देश की अपेक्षा है।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव एवं राज्यसभा के सांसद हैं।)