मजबूती से बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था, अप्रैल में मिला 88 लाख लोगों को रोजगार

सीएमआईई रिपोर्ट के अनुसार 88 लाख लोगों को रोजगार मिलना यह दर्शाता है कि अप्रैल महीने में कुछ ऐसे भी लोगों को रोजगार मिला है, जो पहले रोजगार पाने में सफल नहीं रहे थे। अप्रैल महीने में रोजगार के अवसरों में वृद्धि मुख्य रूप से उद्योग और सेवा क्षेत्रों में हुई। उद्योग क्षेत्र में इस महीने 55 लाख रोजगार के अवसर पैदा हुए, जबकि सेवा क्षेत्र में यह संख्या 67 लाख थी।

अप्रैल 2022 में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह 1.68 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुँच गया, जबकि मार्च महीने में यह 1.42 लाख करोड़ रुपये था। वर्ष 2017 में जीएसटी व्यवस्था लागू होने के बाद, पहली बार कर संग्रह 1.5 लाख करोड़ रुपये के स्तर से ऊपर पहुंचा है। इतना ही नहीं, 20 अप्रैल को 9.58 लाख के लेनदेन में 57,847 करोड़ रुपये का जीएसटी प्राप्त हुआ, जो एक दिन का सर्वाधिक जीएसटी संग्रह था।

अभूतपूर्व जीएसटी संग्रह मौजूदा भू-राजनीतिक संकट के बावजूद हुआ है, जो इस बात का संकेत है कि आर्थिक गतिविधियों में सुधार हो रहा है। जुलाई 2021 के बाद से जीएसटी संग्रह लगातार 1.10 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा है।

अप्रैल 2022 का जीएसटी संग्रह पिछले साल अप्रैल के 1.39 लाख करोड़ रुपये से 20 प्रतिशत अधिक है। इस दौरान केंद्रीय जीएसटी संग्रह 33,159 करोड़ रुपये, राज्य जीएसटी संग्रह 41,793 करोड़ रुपये और एकीकृत जीएसटी संग्रह 81,939 करोड़ रुपये रहा, जबकि उपकर संग्रह 10,649 करोड़ रुपये रहा।

अप्रैल में आयातित वस्तुओं से राजस्व 30 प्रतिशत अधिक संग्रहित हुआ और घरेलू लेनदेन से भी कर प्राप्ति 17 प्रतिशत बढ़ी। विश्लेषण से पता चलता है कि जीएसटी संग्रह में बढ़ोतरी का कारण कर के नियमों को सरल बनाना, जीएसटी चोरी पर रोक लगाना और फर्जी बिलों की रोकथाम है।

फरवरी, 2022 में 6.8 करोड़ ई-वे बिल जारी किए गए थे, जबकि मार्च महीने में इससे 13 प्रतिशत ज्यादा 7.7 करोड़ ई-वे बिल जारी किए गए। अप्रैल 2022 में जीएसटीआर-3 बी में 1.06 करोड़ जीएसटी रिटर्न भरे गए, जबकि मार्च में 97 लाख रिटर्न भरे गए थे।

अप्रैल में 84.7 प्रतिशत पंजीकृत कारोबारियों ने जीएसटीआर-3 बी भरकर कर भुगतान किया, जबकि एक साल पहले की समान अवधि में 78.3 प्रतिशत पंजीकृत कारोबारियों ने कर चुकाया था। अप्रैल महीने में सभी प्रमुख राज्यों में 9 से 25 प्रतिशत ज्यादा कर संग्रहित हुआ।

वित्त वर्ष 2021-22 की तीसरी तिमाही में निजी बैंकों में आईडीबीआई बैंक का प्रॉविजनिंग कवरेज अनुपात (पीसीआर) 97.10 प्रतिशत है, जो सबसे बेहतर है।  सरकारी बैंकों में बैंक ऑफ महाराष्ट्र का पीसीआर 93.77 प्रतिशत है, जो सबसे अधिक है। दूसरे नंबर पर इंडियन ओवरसीज बैंक का पीसीआर 92.33 प्रतिशत है। भारतीय स्टेट बैंक का पीसीआर 88.32 प्रतिशत है।

वहीं, पिछले वित्त वर्ष की दिसंबर तिमाही में निजी बैंकों में आईडीबीआई का गैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) सबसे अधिक 20.56 प्रतिशत है, जबकि यस बैंक का एनपीए 14.65 प्रतिशत और बंधन बैंक का एनपीए 10.81 प्रतिशत है। सरकारी बैंकों में सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया का एनपीए 15.16 प्रतिशत है, जबकि पंजाब एंड सिंध बैंक का एनपीए 14.44 प्रतिशत और पंजाब नेशनल बैंक का एनपीए 12.88 प्रतिशत है।

विगत वित्त वर्ष की दिसंबर तिमाही में निजी बैंकों में बंधन बैंक का शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) 7.8 प्रतिशत के साथ अधिकतम था। आईडीएफसी बैंक का एनआईएम  5.9 प्रतिशत और कैथलिक सीरियन बैंक का एनआईएम 5.46 प्रतिशत था।

सरकारी बैंकों में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का एनआईएम 3.77 प्रतिशत के साथ अधिकतम था, जबकि भारतीय स्टेट बैंक का एनआईएम 3.15 प्रतिशत था। एनआईएम जमा पर दिए जा रहे ब्याज और ऋण पर वसूले जाने वाले ब्याज का अंतर है और इस अंतर से बैंक का मुनाफा निर्धारित होता है।

वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान भारतीय स्टेट बैंक का शुद्ध मुनाफा 31,676 करोड़ रुपए, बैंक ऑफ़ बड़ौदा का 7,272 करोड़ रुपए, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का 5,265 करोड़ रुपए, यूको बैंक का 930 करोड़ रुपए, बैंक ऑफ महाराष्ट्र का 1,151 करोड़ रुपए, केनरा बैंक का 5,678 करोड़ रुपए, इंडियन बैंक का 3,945 करोड़ रुपए, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का 1,045 करोड़ रुपए और पंजाब नेशनल बैंक का 3,456 करोड़ रुपए रहा, जो सरकारी बैंकों के प्रदर्शन में आ रहे सुधार के संकेत हैं।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के अनुसार अप्रैल में भारत का श्रमबल 88 लाख बढ़कर 43.72 करोड़ पर पहुंच गया, जो महामारी की शुरुआत के बाद से सबसे अधिक वृद्धि है, जबकि मार्च 2022 में यह आंकड़ा 42.84 करोड़ था। आंकड़ों के विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान देश के श्रमबल में औसत मासिक वृद्धि दो लाख रही।

सीएमआईई रिपोर्ट के अनुसार 88 लाख लोगों को रोजगार मिलना यह दर्शाता है कि अप्रैल महीने में कुछ ऐसे भी लोगों को रोजगार मिला है, जो पहले रोजगार पाने में सफल नहीं रहे थे। अप्रैल महीने में रोजगार के अवसरों में वृद्धि मुख्य रूप से उद्योग और सेवा क्षेत्रों में हुई। उद्योग क्षेत्र में इस महीने 55 लाख रोजगार के अवसर पैदा हुए, जबकि सेवा क्षेत्र में यह संख्या 67 लाख थी।

सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दी गई जानकारी में भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के 12 बैंकों के 81,921.54 करोड़ रुपए धोखाधड़ी के कारण फंस गए। वहीं, इन बैंकों में वित्त वर्ष 2021-22 में धोखाधड़ी के 7,940 मामले सामने आए, जबकि वित्त वर्ष 2020-21 में यह संख्या 9,933 थी। इसतरह, वित्त वर्ष 2020-21 के मुक़ाबले वित्त वर्ष 2021-22 में धोखाधड़ी के मामलों में कमी आई है।

वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान धोखाधड़ी के मामलों में सर्वाधिक 9,528.95 करोड़ रुपये पंजाब नेशनल बैंक के फंसे थे और वहाँ धोखाधड़ी के 431 मामले दर्ज हुए। इस अवधि में भारतीय स्टेट बैंक में धोखाधड़ी के 4,192 मामले दर्ज हुए थे, जिनमें बैंक के 6,932.37 करोड़ रुपये फंसे।

वित्त वर्ष 2021-22 में बैंक ऑफ इंडिया में धोखाधड़ी के 209 मामलों में 5,923.99 करोड़ रुपये, बैंक ऑफ बड़ौदा में धोखाधड़ी के 280 मामलों में 3,989.36 करोड़ रुपये, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में धोखाधड़ी के 627 मामलों में 3,939 करोड़ रुपये और केनरा बैंक में धोखाधड़ी के 90 मामलों में 3,230.18 करोड़ रुपये फंसे, जबकि इंडियन बैंक में धोखाधड़ी के 211 मामलों में 2,038.28 करोड़ रुपये, इंडियन ओवरसीज बैंक में धोखाधड़ी के 312 मामलों में 1,733.80  करोड़ रुपये, बैंक ऑफ महाराष्ट्र में धोखाधड़ी के 72 मामलों में 1,139.36 करोड़ रुपये,  यूको बैंक में धोखाधड़ी के 114 मामलों में 611.54  करोड़ रुपये और पंजाब एंड सिंध बैंक में धोखाधड़ी के 159 मामलों में 455.04 करोड़ रुपये फंसे हैं। इन आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि बैंक में धोखाधड़ी के ज़्यादातर मामले कम राशि के हैं।

विगत 2 सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी की वजह से थोड़ी कमजोर हुई है, लेकिन जल्द ही यह सुधार की राह पर अग्रसर हो गई। जीएसटी संग्रह में अप्रैल महीने में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई और यह 1.50 लाख करोड़ रुपए के आंकड़े को पार कर गई। प्रत्यक्ष कर में भी वृद्धि हुई। रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि हुई। धोखाधड़ी के मामलों में कमी दर्ज की गई। भारतीय बैंकों के प्रदर्शन में भी सुधार आया।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि चूंकि, भारतीय अर्थव्यवस्था अनेक आर्थिक मानकों पर अच्छा प्रदर्शन कर रही है, इसलिए अर्थव्यवस्था की आगे बढ़ने की गति भले ही कुछ इधर-उधर हो जाये, लेकिन वह रुकेगी नहीं। आगे बढ़ती ही रहेगी।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)