अरविन्द केजरीवाल

अब तो सुधर जाएं केजरीवाल, वर्ना मतदाता तो क्या इतिहास भी उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा !

आम आदमी पार्टी में इन दिनों सब कुछ अच्‍छा नहीं चल रहा है। बाहरी और आंतरिक दोनों मोर्चों पर पार्टी विषम हालातों से जूझ रही है। बाहरी मोर्चं पर जहां एक के बाद एक आए चुनाव परिणामों ने पार्टी के जनाधार को डगमगा दिया, वहीं भीतरी तौर पर भी उपजे विरोधों का सामना करना पड़ रहा है। अधिक समय नहीं बीता था कि कुमार विश्‍वास ने एक वीडियो जारी करके और विभिन्‍न मंचों पर कविताओं, बयानों के ज़रिये

आम आदमी पार्टी के ख़त्म होते जनाधार से बौखलाहट में केजरीवाल

आम आदमी पार्टी अपना जनाधार तेज़ी से खोती जा रही है। यदि इस पार्टी को अपना वजूद बचाए रखना है, तो उसे नाटकीयता और भ्रामक बातों, दावों, नारों से ऊपर उठना होगा। याद कीजिये 2014 में दिल्‍ली का मुख्‍यमंत्री बनने के बाद सत्‍ता छोड़कर जब अगले साल केजरीवाल दोबारा सत्तारूढ़ हुए तब उनके बड़े-बड़े वादों को देखते हुए दिल्ली के मतदाताओं ने उन्हें पूर्ण बहुमत दिया।

वैचारिक दिवालियेपन का शिकार हो गयी है आम आदमी पार्टी

दिल्ली में आम आदमी पार्टी को सत्ता में आए लगभग डेढ़ वर्ष का समय हुआ है, इस दौरान यह सरकार अपने जनहित के अपने सकारात्मक कामों के लिए कम, फिजूल के हंगामों के लिए बहुत अधिक चर्चा में रही है। कभी दिल्ली पुलिस की मांग के जरिये तो कभी राज्यपाल नजीब जंग से बिना बात जंग छेड़कर यह पार्टी बवाल करती रही है। आजकल यह अपने विधायकों की गिरफ्तारी को लेकर धरती-आकाश एक किए हुए है।