चर्च

कठुआ के ‘बहादुर’ केरल के चर्चकाण्ड पर मुंह में दही जमाए क्यों बैठे हैं?

पिछले दिनों केरल में पादरी द्वारा नन से दुष्कर्म का मामला सामने आया। इसके बाद से ही देश में चर्चों के शोषण-साम्राज्य को लेकर आक्रोश का माहौल है। सोशल मीडिया पर भी इसलि आलोचना हो रही। लेकिन विडंबना है कि वे तथाकथित सेकुलर और वामपंथी गिरोह के लोग जो कठुआ प्रकरण पर हवा-हवाई ढंग से मंदिरों को बलात्कार का गढ़ कहते नहीं थक रहे थे, केरल के

हिन्दू संगठनों के वक्तव्यों पर शोर मचाने वाला सेक्युलर खेमा चर्च की अपील पर खामोश क्यों है?

गुजरात चुनाव में चर्च ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सीधा प्रयास किया है। गांधीनगर के आर्च बिशप (प्रधान पादरी) थॉमस मैकवान ने चिट्ठी लिखकर ईसाई समुदाय के लोगों से अपील की है कि वे गुजरात चुनाव में ‘राष्ट्रवादी ताकतों’ को हराने के लिए मतदान करें। यह स्पष्ट तौर पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय एवं चुनाव आयोग की आचार संहिता का उल्लंघन है।

गुजरात चुनाव : ‘राष्ट्रवादी ताकतों’ के खिलाफ चर्च की अपील का क्या होगा असर !

गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा जाति का मुद्दा उठाने के बाद अब ईसाई धर्मगुरु भी धर्म के नाम पर मतदाताओं को लुभाने की आखिरी कोशिश कर लेना चाहते हैं। जाहिर है, जब धर्म और जाति का घालमेल होता है तो विवाद खड़ा होता है। पिछले दिनों कुछ ऐसा ही हुआ जब गांधीनगर के आर्च बिशप थॉमस मैकवान ने इसाईयों के नाम खुला ख़त लिखकर उनसे “राष्ट्रवादी” ताकतों को हराने की अपील की।