गुजरात चुनाव : ‘राष्ट्रवादी ताकतों’ के खिलाफ चर्च की अपील का क्या होगा असर !

ईसाई समुदाय गुजरात की आबादी का महज 0.5 फीसद हिस्सा ही है, अतः इस अपील का प्रभाव सिर्फ अख़बारों के पन्नों पर दिखेगा। देश  के मतदाता अब बहुत सजग हो चुके हैं, वे वेटिकन और मौलानाओं की अपील पर आजकल कान नहीं धरते हैं, अतः गुजरात के छोटे से आर्च बिशप इस तरह की अपील कर खुद को जग हंसाई का पात्र ही बना रहे हैं।

गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा जाति का मुद्दा उठाने के बाद अब ईसाई धर्मगुरु भी धर्म के नाम पर मतदाताओं को लुभाने की आखिरी कोशिश कर लेना चाहते हैं। जाहिर है, जब धर्म और जाति का घालमेल होता है तो विवाद खड़ा होता है। पिछले दिनों कुछ ऐसा ही हुआ जब गांधीनगर के आर्च बिशप थॉमस मैकवान ने इसाईयों के नाम खुला ख़त लिखकर उनसे “राष्ट्रवादी” ताकतों को हराने की अपील की।

मैकवान ने समर्थकों से अपील करते हुए कहा कि गुजरात चुनाव में “राष्ट्रवादी ताकतों” को हराना ज़रूरी है, क्योंकि क्योंकि देश में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है, लोकतान्त्रिक ताना-बाना खतरे में है। वैसे मकवान ने अपने पत्र में सीधा-सीधा बीजेपी का नाम नहीं लिया है, लेकिन यह तो स्पष्ट हो ही चुका है कि उनके निशाने पर भारतीय जनता पार्टी है।

आर्च बिशप मैकवान

इस अपील के बाद एक और बहस शुरू हो रही है कि भाजपा अगर राष्ट्रवादी है तो इसमें बुरा क्या है? गलत क्या है? इस बात का एक अर्थ तो यह है कि चर्च ने बाकी राजनीतिक दलों को “गैर-राष्ट्रवादी” की श्रेणी में रख दिया है, जिससे शायद उनके समर्थक ही इत्तफाक नहीं रखेंगे। चर्च की गुजरात के आदिवासी इलाकों में कुछ उपस्थिति रही है, लेकिन इतनी नहीं कि वह चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर सके। हालाँकि, पिछले कई दशकों से चर्च की धर्मान्तरण सम्बन्धी गतिविधियाँ चर्चा के केंद्र में ज़रूर रही हैं। अब सवाल उठता है कि चर्च के आर्च बिशप का इस तरह अपील करना गुजरात में कितना असरकारक रहेगा? क्या इससे मतदाता भयभीत होकर कांग्रेस को वोट करने लगेंगे? कतई नहीं!

ईसाई समुदाय गुजरात की आबादी का महज 0.5 फीसद हिस्सा ही है, अतः इस अपील का प्रभाव सिर्फ अख़बारों के पन्नों पर दिखेगा। देश  के मतदाता अब बहुत सजग हो चुके हैं, वे वेटिकन और मौलानाओं की अपील पर आजकल कान नहीं धरते हैं, अतः गुजरात के छोटे से आर्च बिशप इस तरह की अपील कर खुद को जग हंसाई का पात्र ही बना रहे हैं।

थॉमस मैकवान ने 21 नवंबर एक आधिकारिक पत्र में इसाईयों से गुजारिश की थी कि गुजरात विधान सभा में ऐसे लोगों को चुनें जो भारतीय संविधान को लागू करने को लेकर प्रतिबद्ध हों। गुजरात के दलितों, ओबीसी और इसाईयों को खासकर सावधान रहने को कहा गया है जो आम तौर पर पिछले कुछ सालों में हमलों के शिकार हुए हैं। गौर करें तो कांग्रेस ने भी ऐसे ही दलितों, पिछड़ों को भय दिखाकर हमेशा उनका वोट हासिल किया है, अब आर्च बिशप भी अपनी अपील से वही करने का यत्न कर रहे हैं। 

गुजरात की बहुसंख्यक 89 फीसद आबादी हिन्दू धर्म का पालन करती है, इसलिए अगर चर्च द्वारा अल्पसंख्यकों को पोलाराईज़ करने का कोई भी प्रयास होता है, तो इसका सीधा-सीधा फायदा भाजपा को होने की संभावना है। चर्च द्वारा यह अपील केरल या तमिलनाडु में किया जाता तो शायद उसका असर वहां की सियासत पर कुछ हद तक पड़ता, हालांकि वहां भी यह असर हाल के दशकों में घट ही गया है।

केरल में ईएमएस नम्बूदरीपाद सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने में चर्च की बड़ी भूमिका रही थी, लेकिन इस तरह के उदहारण देश के अन्य हिस्सों में देखने को नहीं मिले हैं। ऐसे में गुजरात की सियासत में मैकवान द्वारा की गई अपील से “राष्ट्रवादी” ताकतों को एकजुट होने का मौका ही मिलेगा, इससे अधिक और कुछ होने की संभावना नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)