जनसंघ

भाजपा : एक विचारधारा के फर्श से अर्श तक पहुँचने की संघर्षपूर्ण यात्रा !

आज भारतीय जनता पार्टी का स्थापना दिवस है, 6 अप्रैल, 1980 को भाजपा की स्थापना हुई थी। इन 38 वर्षों की यात्रा को कुछ शब्दों में पिरोना आसान नहीं होगा, क्योंकि इतना बड़ा संगठन कभी भी एक व्यक्ति की मेहनत का नतीजा नहीं होता, बल्कि इसके पीछे हजारों-लाखों कार्यकर्ताओं के खून और पसीने का योगदान होता है, जिनके चेहरे कभी अख़बारों में या टेलीविज़न के परदे पर नहीं नज़र आते। भाजपा की

जयंती विशेष : भारतीयता के चिंतक दीन दयाल उपाध्याय

राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास को लेकर दुनिया के तमाम विद्वानों ने अलग-अलग वैचारिक दर्शन प्रतिपादित किए हैं। लगभग प्रत्येक विचारधारा समाज के राजनीतिक, आर्थिक उन्नति के मूल सूत्र के रूप में खुद को प्रस्तुत करती है। पूँजीवाद हो, साम्यवाद हो अथवा समाजवाद हो, प्रत्येक विचारधारा समाज की समस्याओं का समाधान देने के दावे के साथ

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए लोकमत के परिष्कार को आवश्यक मानते थे दीनदयाल उपाध्याय

पं. दीनदयाल उपाध्याय ने स्वस्थ लोकतंत्र के लिए लोकमत के परिष्कार का सुझाव दिया था। उस समय देश की राजनीति में कांग्रेस का वर्चस्व था। उसके विकल्प की कल्पना भी मुश्किल थी। दीनदयाल जी से प्रश्न भी किया जाता था कि जब जनसंघ के अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो जाती है, तो चुनाव में उतरने की जरूरत ही क्या है। दीनदयाल उपाध्याय का चिंतन सकारात्मक था। उनका कहना था कि चुनाव के

दीनदयाल उपाध्याय : जिनके लिए राजनीति साध्य नहीं, साधन थी !

भारतीय राजनीति में दीनदयाल जी का प्रवेश कतिपय लोगों को नीचे से ऊपर उठने की कहानी मालुम पड़ती है। किन्तु वास्तविक कथा दूसरी है। दीनदयाल जी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में रहकर जिस आंतरिक व महती सूक्ष्म भूमिका को प्राप्त कर लिया था, उसी पर वे अपने शेष कर्म शंकुल जीवन में खड़े रहे। उस भूमिका से वे लोकोत्तर हो सकते थे, लोकमय तो वो थे ही। देश के चिन्तक वर्ग को कभी-कभी लगता है कि

भाजपा की अध्ययन परंपरा और वर्तमान परिदृश्य

गोयबल्स थ्योरी कहती है कि एक झूठ को सौ बार बोलो तो वह सच लगने लगता है। इस देश के तथाकथित बुद्धिजीवी जमात ने ऐसे अनेक झूठ हजार बार बोले हैं। उन्हीं में से एक बड़ा झूठ यह भी कि राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग, खासकर संघ और भाजपा वाले, पढ़ते-लिखते नहीं है। यह कोरा झूठ कम से कम हजार बार, सैकड़ों तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा बोला गया होगा। 21 दिसंबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष

जब नेहरु सत्ता में थे तब आजादी की एक जंग लड़ रहा था ‘जनसंघ’

आज जब हम आजादी की सत्तरवीं सालगिरह मना रहे हैं तो हमें ये भी याद रखना चाहिए कि भारत कोई एक दिन में आजाद भी नहीं हुआ था। आज जिस भूभाग को हम नक़्शे पर देखते हैं वो 1947 में बनना शुरू हुआ था। धीरे धीरे करीब 15 साल का समय बीतने के बाद, हमारे उस नक़्शे ने अपनी वो शक्ल ली जिसे हम आज देखते हैं।